अभिनव इमरोज़ कवर पेज - 2


अमृता जी की पुण्य तिथि पर मैं जब भी अमृता जी को मिलने जाती वह कहती, ‘‘उमा, कुछ सुना, ग़ज़ल गा या फिर कोई नज़्म सुना’’ आज उनकी पुण्य तिथि पर उन्हें एक नज्म पेश करती हूं शायद उन्हें पसंद आए।


सांझेदारी


अभी अभी
मैंने शरत चन्द्र को सुना है
या शायद वह चेखव था
उत्सव की चकाचैंध में
या तालियों की गड़गड़ाहट में
नाम खो गया है


बस
इतना याद है कि
उन शब्दों में
किसी पारो की पाजेब की
टीस थी
‘बड़ी दीदी’ की सिसकियां और
कहीं कहीं ‘श्रीकांत’ भी
उन शब्दों में
चेखव की प्रेमिका लीडिया इविलोव की
दबी दबी आवाज भी थी
और पृष्ठ भूमि में
अमृता के दिल की धड़कन और
दर्द के धधकते अंगार


इन दर्द की कड़ियों में
यकीनन कोई सांझेदारी है


हैरान हूं
कि कहीं ऐसा तो नहीं
कि मेंने भी
कोई एक कड़ी
इस में जोड़ दी है


उमा त्रिलोक, मोहाली, चंडीगढ़, मो. 9811156310 


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