अगले जनम मोहे बिटिया नहीं पुरुष कीजो
मेधावी जैन, गुरुग्राम
ओ जीव, स्वागत है
तुम यहाँ स्त्रीत्व कर्मों से भ
जो ग्यारह बारह वर्ष की कच्ची उ
खुलनी शुरू हो जाएगी
जब इस नन्ही, बचकानी उम्र में ही
तुम चाहे तन-मन से न हो
किंतु तुम्हारी योनि माँ बनने यो
जब वह माह के पाँच दिन स्वतः ही
रक्त स्त्रवित करने लग जाएगी
तुमसे यह सब नहीं संभलेगा
तुम रोओगी, खीझोगी
माँ से, ख़ुद से, पूछोगी कि मे
किंतु तुम्हारे धैर्य की परीक्षा यहीं से आरंभ हो जाएगी
अभी तुम स्वयं को संभालने की चे
होंगी
कि पाओगी कि छाती के उभार भी प्रत्यक्ष नज़र आने लगे हैं
तुम्हें चाहे चिढ़ा जाएं
किंतु वे ज़माने की निगाहों में
तुम्हारी देह कुछ नियत स्थानों
चर्बी, देह के कुछ स्थान विशेषों पर जमने लगेगी
तुम्हें भी यही, सौंदर्य की परि
यह तुम्हारी यौन सक्रियता के लग
चार दशकों की शुरुआत होगी
और इस दौरान जब तुम इस विचित्
रच बस जाओगी
इसे अपनी नियति मान अपने सौंदर्
तब, हाँ तब... वह समय आएगा
जब तुम्हारा यह रजस्वला होने का
तुमसे छीन लिया जाएगा
प्राकृतिक होगा, इसलिए पुनः तुम
इसे भी अपनी नियति मान धैर्य का
जाओगी
इस दौरान जो जो तुम्हारे साथ घटि
तुम्हारे घुटने हिलेंगे, शरीर का पोर पोर दुखेगा
शुक्र मनाना कि तुम्हारा गर्भा
और निकालना भी पड़े तो भी तुम क्या ही कर पाओगी
शायद एक समय ऐसा आएगा
जब तुम स्वयं को स्वयं से कहती
हे दाता, इतनी अरज सुन लीजो
अगले जनम मोहे बिटिया नहीं
पुरुष कीजो...