अगले जनम मुझे बिटिया नहीं पुरुष कीजो

आज फिर मेधावी जैन जी की रचना ,"अगले जनम मुझे बिटिया नहीं पुरुष कीजो" मुझे अभी अभी मिली। पढ़ कर विषय कुछ हट के लगा ; हट के इसलिए की स्त्री होने के कारण जिन प्राकृतिक और सामाजिक कठिनाइयों से एक कन्या गुज़रती है उस मुद्दे को सीधे बिना लाग -लपेट के बावजूद कलात्मकता से कहा गया है । ये मुद्दे कुछ नए नहीं पर अंदाज़ -ए- बयां नया है ! मेधावी जी को इस बात की बधाई देती हूँ; फिर भी इतना कहने का मोह संवरण नहीं कर पा रही कि स्त्री को प्रारंम्भिक जीवन से लेकर अंत तक अनेक उहापोह और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, विशेषकर सामाजिक परिवेश में  पर यही परिस्थितियाँ उसे हर हाल में जी कर उभरने, आगे बढ़ने और जीवन का आनन्द लेते हुए जीत - हाँ जीत - जाने की शक्ति देती है । आत्म संतोष का भाव   हर हाल में अगर स्त्री और पुरूष में कोई पा लेता है तो वह सुख व ख़ुशी अधिकांशत: स्त्री के हिस्से ही आती है। अत: मेरे अनुसार "अगले जन्म मुझे बिटिया ही कीजो " ... धृष्टता के लिए क्षमा !!....



प्रभा कश्यप डोगरा


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