“और चंपा जीत गयी”


डॉ. करुणा पाण्डेय, लखनऊ, मो. 09897501069
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“माँ-माँ देखो दीदी ने अपना काम नहीं किया। मैंने अपना काम कर लिया तो कह रही है कि मेरा काम कर वर्ना माँ से शिकायत कर दूंगी।”


चंपा ने माँ से कहा तो माँ ने डाँटते हुए कहा– “कर क्यों नहीं देती, दीदी जो कहती है वह तुझे करना होगा, जा बर्तन साफ़ कर। बेटा कुमुद आ, मैं तेरे सिर में तेल डालकर चोटी कर दूँ।” माँ ने लाड़ से कुमुद को अपने पास बैठा लिया। चंपा बड़ी हसरत से माँ को देखने लगी। थोड़ी देर बाद चंपा बर्तन साफ़ कर के माँ के पास आई और बोली–“माँ मेरे सर में तेल डाल कर चोटी कर दे, बहुत उलझे बाल हैं।”


“चल हट, जा तू खुद अपने बाल बना। मेरे पास समय नहीं है, बहुत सारे काम करने हैं।”


चम्पा उदास हो गयी। तभी उसकी दूसरी बहन लक्ष्मी आई और उसके हाथ से किताब छीनकर भाग गयी। सामने बाबूजी को देखकर चंपा ने शिकायत कर दी, पर बाबूजी बोले–“अरे चंपा तू छोटी– छोटी बातों में शिकायत करती रहती है, जा काम कर किताब लेकर ऐसे घूमती है जैसे स्कूल में टांप करेगी।” और अन्दर चले गए।


ऐसा अक्सर होता था। चंपा का बालमन हाहाकार कर उठा। आखिर सब मुझ से इस तरह का व्यवहार क्यों करते हैं, वह अक्सर सोचती थी।


एक दिन चंपा स्कूल में उदास बैठी थी तो उसकी कक्षा अध्यापिका बिंदु मैम बोली– “चंपा तुमको मैंने अक्सर उदास देखा है, बेटा क्या बात है। क्यों इतना उदास रहती हो?”


“मैम कोई खास बात नहीं है। पर घर में हर कोई मुझे परेशान करता है, कोई मुझे प्यार नहीं करता है। बड़ी दीदी को माँ प्यार करती है, छोटी दीदी को बाबूजी प्यार करते हैं। मैं कुछ कहती हूँ तो सभी झिड़क देते हैं। ऐसा मेरे साथ क्यों करते हैं कुछ समझ में नहीं आता। मैं तो किसी को तंग भी नहीं करती हूँ। घर और विद्यालय का काम भी समय से करती हूँ” और चंपा रोने लगी।


बिंदु मैम ने चंपा के सिर पर प्यार से हाथ रखा और कहा–“बेटा, यह दुनियां उगते हुए सूरज को नमन करती है, अस्त होते सूरज की तरफ कोई देखता ही नहीं है। तुम इतनी मेहनत से पढ़ो कि एक दिन तुम्हारी पढाई की धाक सारे शहर में जम जाए और जब सारा शहर सारे लोग तुम्हारी इज्ज़त करेंगें तो घर वालों को अपनी गलती का अहसास होगा। बेटा तुममे वह ताकत है कि तुम अपनी अच्छाइयों से और अपनी पढाई से बुलंदियों को छू सकती हो, बस अपना मन सिर्फ पढाई में लगाओ। जानती हो बेटा, ज्ञान की रौशनी जब फैलती है तो चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश होता है । तुम पढ़ो ,अगर कोई परेशानी हो तो मुझे बताना।”


मैम की बात और प्यार पाकर चंपा को राहत मिली। अब उसने अपना पूरा ध्यान अपनी पढाई पर लगा दिया।


एक दिन मैम को चंपा के माँ और बाबूजी स्कूल में मिल गए तो उन्होंनें पूछा–“ सर, चंपा इतनी उदास क्यों रहती है?”


चंपा के बाबूजी ने कहा–“ मैम, वह बहुत मनहूस है, चौथी सन्तान वह भी लडकी हो तो किसे पसंद आयेगी। यह तो डायन है डायन। पैदा होते ही यह अपने सात माह के भाई को खा गयी। एक तो लडकी ऊपर से मनहूस है यह। आप ही बताये कि जो भाई को खा जाए ,उसे हम कैसे प्यार कर सकते हैं।”


“देखिये सर, भाई की मौत पर चंपा का क्या दोष, अरे भाई कमज़ोर होगा या उसकी देखरेख में कुछ कमी रह गयी होगी तो वह मर गया होगा। मुझे आपसे सहानुभूति है पर मैं इसमें चंपा का कोई दोष नहीं मानती। कुपोषण का शिकार होने पर भी बच्चे मृत्यु को प्राप्त होते हैं, इसमें चंपा का कोई दोष नहीं है उसको जिम्मेदार मानकर आप उसे हीनता की भावना से ग्रसित कर रहे हैं। यह तो अन्याय है उसके प्रति” मैम ने समझाया।


यह सुनते ही चंपा के घरवालों का पारा चढ़ गया और गुस्से भरी आवाज़ में बाबूजी बोले–“ देखिये मैडम ,यह हमारे घर का मामला है। आप बीच में न बोले तो बेहतर होगा। देख चंपा की माँ, अब चंपा की इतनी हिम्मत बढ़ गयी कि घर की बातें स्कूल में मैम को बताने लगी है, अभी जाकर उसकी खबर लेता हूँ और इसका स्कूल बंद करता हूँ।”


“नहीं सर चंपा ने मुझसे कुछ नहीं कहा है। मेरी ही गलती है कि मैं आपके घरेलू मामले में बोली । मुझे माफ़ कर दिजीये। चंपा का स्कूल मत छुडाईये। उसका कोई दोष नहीं है।” मैम डर गयी कि कहीं गुस्से में आकर ये लोग चंपा का स्कूल से नाम न कटा दें। इसलिए सारा दोष अपने ऊपर लेकर मैम ने चंपा के माँ बाबूजी को विशवास दिला दिया कि चंपा निर्दोष है।


समय बीतने लगा। मैम चंपा को प्रेरित करती रहती। कुछ समझ नहीं आता तो समझाती रहती। मैम का प्यार और सहारा पाकर चंपा ने हर कक्षा में अच्छे नम्बर पाए। अब उसने दसवीं की परीक्षा दी थी। और परीक्षा परिणाम का इंतज़ार कर रही थी। चंपा आश्वस्त थी क्योंकि उसके पेपर अच्छे हुए थे। उसको उम्मीद थी कि वह कक्षा में प्रथम आयेगी और उसे वजीफा मिल जाएगा तो वह आगे की पढाई जारी कर सकेगी। जब भी उसे माँ बाबूजी और बहनों का व्यवहार याद आता, उसकी आँखों में आँसू आ जाते पर मन में एक दृढ़ता आती कि चाहे कुछ भी हो मुझे कुछ करना है। एक अच्छे इंसान के रूप में खुद को ढालना है। अपनी अच्छाइयों से सब पर विजय पानी है, और मैं यह कर के रहूँगी।


चंपा अपने ही ख्यालों में गुम थी कि रशीद चाचा ने घर में कदम रखा और चहचहाते हुए बोले–“भई तिवारीजी आज तो हम सिर्फ मिठाई से ही नहीं मानेंगे । आज तो हम बड़ी दावत लेंगें और वह आपको देनी ही होगी।”


“भई रशीद मियाँ ऐसा क्या हो गया है कि हम आपको मिठाई खिलाएं और दावत दें” तिवारीजी कुरता पहनते हुए बोले।


“ये पूछो क्या नहीं हुआ, पता हमारी चंपा बिटिया ने केवल अपने स्कूल में ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश में टाप किया है “रशीद मियां अखबार हवा में लहलहाते हुए बोले।


तभी चंपा की माँ आई और खुशी से उन्होंनें चम्पा को गले से लगा लिया। चंपा की इस सफलता पर वह जिन्दगी भर का प्यार लुटा देना चाहती थी। चंपा ने झुककर माँ बाबूजी और रशीद चाचा के पैर छुए तो रशीद चाचा के आँखों में आंसूं आ गए।


“यार तिवारी, तेरी चंपा जैसी अगर मेरी बेटी होती तो मैं उसकी पूजा करता। इतनी छोटी सी उम्र और कितनी समझदार है, कितना काम करती है, घर बाहर की जिम्मेदारी सभाँलती है और फिर मेहनत से पढ़ती है। आज तो इसने सफलता के सारे मानदण्ड ही तोड़ दिए। आज तक इस शहर से किसी ने टाॅप तो दूर की बात है, किसी ने प्रथम स्थान भी प्राप्त नहीं किया है। वाकई तू धन्य है। तेरे ना जाने कौन से पुन्य हैं जो चंपा जैसी बेटी मिली है। एक मेरी फरजाना है– तीन साल से दसवीं में फेल हो रही है । बिगड़ी हुई महारानी को हर समय ऐश की ही सूझती है । मैं तो उसकी मांगों से तंग आ गया हूँ। पता नहीं मेरे कौन से बुरे कर्मों का फल है, कहते–कहते रशीद चाचा की आँखों के कोर गीले हो गए।


तभी अखबार और टी.बीचैनल वाले आ गए और चंपा की फटाफट फोटो लेने लगे और प्रश्न पूछने लगे। यह देखकर मोहल्ले, पड़ौस और घर के सभी लोग आश्चर्य से चंपा को देखने लगे।


टी.बी.वालों ने चंपा से पूछा–“आप अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहती हैं?”


“मेरी सफलता का श्रेय मेरे परिवार और मेरी प्रिय बिंदु मैम और विद्यालय को जाता है। मेरे परिवार ने मुझे ऐसा माहौल दिया जिससे कुछ करने के लिए मेरा मन छटपटाता रहता था। विद्यालय में मेरी मैम ने बताया कि शिक्षा मनुष्य को ऊचाई तक ले जाने वाला पावन मार्ग है। यह एक ऐसी सम्पत्ति है जिसे कोई छीन नहीं सकता है। बस उसी दिन से मेरे मन में पढाई के लिए निष्ठां जागी और मैंने निश्चय किया कि मैं सबसे ज्यादा अंक लाकर अपनी एक नई पहचान बनाऊँगी।”


“आपने पढाई के दौरान आने वाली कठिनाईयों को किस तरह दूर किया?” टी.बी. वालों का प्रश्न था।


“बिना मेहनत किये किसी काम में सफलता नहीं मिलती है। कुछ पाने के लिए हर किसी को कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। जब भी कठिनाई आई मेरी बिंदु मैम ने मुझे सहारा दिया और प्रेरित किया, और अगर लक्ष्य को पाने की लगन मन में होती है तो सारी मुसीबतें हल करने का ज़ज्बा खुद ही आ जाता है।”


“आपको इतनी मेहनत करने की प्रेरणा कहाँ से मिली?”


“कभी–कभी उपेक्षा भी प्रेरणा का काम करती है। कुछ ऐसी ही परिस्थिति ने मुझे आगे बढ़ने का साहस और प्रेरणा दी, और मैंने अपने को सिद्ध करने के लिए जी तोड़ मेहनत की और यह मुकाम पाया। वैसे मेरी प्रेरणा स्रोत मेरी बिन्दु मैम हैं।”


चंपा के माँ बाबूजी अपने व्यवहार के लिए मन ही मन बहुत लज्जित हो रहे थे पर फिर भी उन्हें गर्व था कि उनकी बेटी ने उपेक्षा से भी प्रेरणा ली और गलत मार्ग न अपनाकर मेहनत की और एक ऊँचाई हासिल की।


“अच्छा चम्पाजी आप क्या बनना चाहती हैं ?” टी.बी.वालों का प्रश्न था


“मैं एक शिक्षिका बनना चाहती हूँ क्योकि शिक्षक समाज को बनाने वाला होता है। एक अच्छा शिक्षक हजारों डाक्टर, इन्जीनियर और अफ़सर पैदा कर सकता है परन्तु हजारों डाक्टर, इंजीनियर एक अच्छा शिक्षक तैयार नहीं कर सकते हैं। इसलिए सकारात्मक सोच वाले व्यक्ति को शिक्षा के क्षेत्र में आना चाहिए।”


“वाह, आप इतनी छोटी सी आयु में भी इतनी गंभीर और गहरी बात कर रही हैं, निश्चित तौर पर आप समाज को सही दिशा देंगी। आपको हम सब चैनल वाले सलाम करते हैं।”


सारे मोहल्ले वालों और घर के लोगों ने तालियाँ बजाईं। धीरे–धीरे सभी लोग चले गए। सबके जाने के बाद चम्पा के पिताजी ने रोते हुए चम्पा को गले से लगा लिया। आज जीवन में चम्पा ने पहली बार अपने पिता का प्यार पाया था। वह खुश थी।


पिता ने सिर पर हाथ रखते हुए कहा– “चम्पा बेटा मुझे तुम पर नाज़ है, तुम से बढ़कर मेरे लिए इस संसार में कुछ नहीं है ।” आज चम्पा को हर खुशी मिल गयी ।



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