भारत की वीरागना : बूंदी की ललना : हांडी रानी
प्रभा कश्यप डोगरा, पंचकूला, मो. 9872577538
फ़ौज उमड़ती औरंगज़ेब की-
थी चल पड़ी, मेवाड़ ओर!
था युद्ध छिड़ा घनघोर; -
राणा राज सिंह तब,-
घेर लिया था लश्कर को!!!!
चारों ओर से घिरे मुग़ल ने,-
भेजा हरकारा दिल्ली को;-
तब राव रतन सिंह, चूडावत को भी,-
आया संदेशा राणा का,-
जितनी जल्दी हो, सेना लेकर,-
पहुँचो मातृ-भूमि की रक्षा को !!
राव रतन सिंह चूडावत को जब,-
देखा केसरिया धारण किए;-
समझ गई नवेली दुल्हन तब,-
चले वीर रण-भूमि ओर !!!
अपने मन का संधान किया, -
तिलक लगा, आरती करके ;-
था कहा नवेली दुल्हन से राव ने;-
"आऊँगा रण-खेत पाट के,-
सजी सेना, सजे सेनाणी-!"
रण-भेरी का निनाद हुआ ,-
घोड़ों की टापों से था तब,-
सारा अम्बर लाल हुआ !!!
कुछ दूर पहुँच कर ही,-
चंन्द्रमुखी रानी का चेहरा ,-
चूडावत को याद हुआ !!
कहीं भूल न जाए, प्रियसी,-
रतन सिंह चूडावत के मन में ,-
फिर यह विचार उठा !!
भेजा दूत पत्रिका देकर,-
जिसमें था यह लिखा हुआ !
चंन्द्रमुखी मुखड़ा तुम्हारा-
"रह रह आता याद मुझे,-
भेज देना तुम निज मुद्रिका,-
रण-खेत पाटना है मुझे !!"
रानी ने जब पढ़ी पत्रिका,-
बोली- "हूँ दूँगी संदेसा, दे देना,-
चूडावत को! कह देना मातृ भूमि,-
रक्षा में रण-खेत पाटना है तुमको!!"
शीश दियो काट निज क्षत्राणी,-
थाल सजा ले चला सैनानी,-
चूडावत को सौंप दियो !!
देखा मस्तक जब, कर विलाप तब,-
जूझा रण में जब, हो गया निछावर,-
दे दी विजय-श्री, मातृ-भूमि, मेवाड़ देश को!!!