"फ़िल्मी गीतों की धड़कनों [रागों] को गिनता हुआ एक फ़िल्मी कोष"


श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ, मुम्बई, मो. 09925534694, e-mail : kneeli@rediffmail.com


फ़िल्मी गीतों की हर जगह धूम रहती है चाहे वह घर हो, बाज़ार हो, कोई कार में जा रहा हो, होटल हो, रेडियो हो, दूरदर्शन यहाँ कि मोबाइल हो। ये इतने सुगम होते हैं कि बार बार सुनने से सबकी ज़ुबान पर आसानी से मचलने लगते हैं। बाथरूम सिंगर भी इन्हें गाने से नहीं हिचकते। मज़े की बात ये है कि एक आम फ़िल्मी गीत पसंद करने वाला व्यक्ति शास्त्रीय संगीत की तरफ देखता भी नहीं है या कहना चाहिए उसकी दुरूहता से डरता है। शास्त्रीय संगीत व फ़िल्मी गीत अलग अलग समानान्तर धाराओं में चलते जाते हैं। शास्त्रीय संगीत को प्यार करने वाले मुठ्ठी भर होते हैं जबकि फ़िल्मी गीत पूरी दुनिया पर राज करते हैं। इन गीतों को गुनगुनाने वाले अधिकाँश लोग जानते भी नहीं हैं कि बिना शास्त्रीय रागों के इन गीतों की रचना संभव नहीं थी। इन दो समानान्तर धाराओं के बीच एक सेतु निर्माण में लगे थे श्री के. एल. पांडेय या कहना चाहिए सात आठ वर्ष से तपस्या कर रहे थे कि इन फ़िल्मी गीतों में बसी शास्त्रीय रागों की धड़कने पहले समझी जाएँ फिर लिपीबद्ध की जाएँ जिससे आम आदमी के मन में बसा शास्त्रीय संगीत की  कठिनाई का डर दूर हो। जब वह कोई फ़िल्मी गीत गुनगुनाये तो उसे पता हो कि वह कौन सी राग गारहा है


इन्होंने बचपन में शास्त्रीय संगीत बाकायदा सीखा भी व बचपन से शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम देखने भी जाते थे। एक बार खेरागढ़ के संगीत विद्ध्यालय में इन्होने देखा कि एक शिक्षक हारमोनियम पर फ़िल्मी गीत गाकर बच्चों को शास्त्रीय राग सिखा रहे हैं। ये बात इन्हें बहुत अद्भुत लगी थी। हो सकता है बाद में अवचेतन में बसी इसी घटना ने इन्हें ये रास्ता दिखाया हो। 


"आपकी फ़िल्मी गीतों में रागों को खोजने की प्रक्रिया क्या थी ?"


"हम ऑफ़िस से आकर दो तीन वाद्यकारों के साथ बैठकर एक एक फ़िल्मी गीत दोहराते थे व उनमें राग खोजते थे व उसे लिपिबद्ध करते जाते थे"  


एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं- पूरे 17,000 फ़िल्मी गीतों की रागों को सात आठ वर्ष के घनघोर परिश्रम से लिपिबद्ध किया गया। इस असंभव से लगते काम को कोई जूनून ही अंजाम दे सकता है और ये शास्त्रीय संगीत व रागों के प्रति जुनून है अक्टूबर में रेलवे मंत्रालय  से रिटायर हुए मेंबर ऑफ़ बोर्ड, जो कि भारतीय रेल यातायात सेवा [आई.आर टी.एस.] के बैच 1977 से सबंधित  हैं श्री के.एल.पांडेय जी का। इन्होंने सन 1974 में जीव रसायन विज्ञान से  लखनऊ से  एम. एससी. किया था .


संगीत निदेशक आनंद जी ने 1 मई 2017 को  मुम्बई में संगीत शिल्प प्रकाशन से प्रकाशित `हिंदी सिने राग एनसायक्लोपीडिया` का विमोचन किया जिसमें सन 1931 से 2017 तक की 5700 फ़िल्मों के 17,000 गीतों की रागों का विश्लेक्षण है। इसमें एक तालिका दी हुई है जिसमें गीत का मुखड़ा अल्फ़ाबेटिकली है यानि कि गीत की प्रथम पंक्ति। इनके साथ है गायक, फिल्म, गीतकार व संगीतकार का नाम। इस तालिका में है गीत की ताल, गीत का स्केल व जिस क्रम से इसमें रागों का प्रयोग हुआ है, वह भी इसमें बताया गया है। अभी इस योजना के 600 पृष्ठ वाले तीन वॉल्यूम्स, जो लैंडस्केप फ़ॉर्मेट में प्रकाशित हैं, एक हिंदी, एक इंग्लिश व एक दोनों भाषाओं में विमोचित किये गये हैं। हैरानी की बात ये है कि अभी ऐसे ही सात वॉल्यूम्स प्रकाशाधीन हैं। इन्होंने इस वॉल्यूम्स को बहुत सुन्दर आकर्षक नाम दिया था-`रागोपीडिया `लेकिन बाद में पता लगा कि ये नाम किसी और ने रजिस्टर्ड करवा लिया था। 


काव्य संग्रह `बांसुरी`, भीगी हवाएं `व एक अन्य, लघुकथा संग्रह `तिनके`, व्यंग संग्रह सहित अनेक पुस्तकों के लेखक श्री पांडेय जी की देश की विभिन्न पत्रिकाओं में कवितायें, लघु कथाएं, बाल कथाएं, व्यंग व लेख प्रकाशित हो चुके हैं। रेल मंत्रालय से मैथलीशरण गुप्त पुरस्कार सहित अनेकों साहित्यिक पुरस्कार प्राप्त पांडेय जी को बचपन से शास्त्रीय संगीत से प्रेम था लेकिन इन्होने भी कभी नहीं सोचा था कि इन्हे फ़िल्मी गीतों की धड़कनों में बसी रागों की लहरों को सहेजने का जूनून हो जाएगा। वह भी उस हद तक सारे दिन ज़िम्मेदार रेलवे के प्रशासनिक पद की ज़िम्मेदारी निबाहने के बाद आप रात को वाद्यकारों के साथ एक एक फ़िल्मी गीत को दोहराकर उसमें रची बसी रागों को खोजेंगे। वह भी सात वर्षों से भी अधिक समय तक।


आप प्रकाश व ध्वनि कार्यक्रम का संयोजन कर चुके हैं व साथ ही सांस्क्रतिक कार्यक्रम आयोजन व कलाकारों को प्रोत्साहित करने में आपकी अभिरुचि है। आपके पास डेढ़ लाख फ़िल्मी गीतों का निजी संग्रह है यदि कभी बी बी सी या आकाशवाणी को कोई पुराना फ़िल्मी गीत चाहिए तो वो इनसे संपर्क करते हैं। सन 2012 में रिलीज़ होने वाली फिल्म `मैरिड टु अमेरिका` में इनका लिखा एक गीत भी है `सांझ लजा गई अँखियाँ`।


वे जानकारी देते हैं,``सारे विश्व का संगीत बारह रागों में ही रचा बसा होता है। सात शुद्ध स्वर यानि सरगम के सात स्वर व पांच विकृत स्वर।``


``कुछ फ़िल्मी गीतों की रागों को खोजने में कठिनाई भी हुई होगी?``


``हाँ, जैसे` मुगले आज़म `व` वीर ज़ारा` व कुछ अन्य फ़िल्मों के गीतों के रागों को खोजने में समय तो लगा लेकिन हमने हार नहीं मानी।``


``फ़िल्मी गीतों में अक्सर कौन सी रागों का प्रयोग अधिक होता है?``


``सबसे अधिक पहाड़ी व खमाज राग पर गीत बनाये जातें हैं। मेरी इन पुस्तकों में 17,000 गीतों में से 4,400 गीत तो पहाड़ी राग पर आधारित हैं। राग खमाज के 3400 लेकिन यदि भैरवी या नट भैरवी रागों के गीतों को मिला दिया जाए तो ये पहाड़ी से भी आगे निकल गये हैं।``


``क्या आइटम सांग्स में भी शास्त्रीय संगीत छिपा होता है?``


``जी हाँ, जैसे `धूम मचा दे-,` मुन्नी बदनाम हुई `---` या `शीला की जवानी--- ``इनके शब्दों पर ना जाकर इनके सुन्दर शास्त्रीय संगीत का आनन्द लेना चहिये ।``     


इन एनसायक्लोपीडिया या रागोपीडिया की श्रृंखला ने एक रास्ता खोला है कि फ़िल्मी गीतों के माध्यम से भारतीय  शास्त्रीय संगीत जो भारत की ही नहीं विश्व की धरोहर है, भी सिखाया व सीखा जा सकता है क्योंकि फ़िल्मी गीतों में सबकी रूचि होती है। एक तरह से आपने शास्त्रीय रागों का संरक्षण भी किया है। पूना की एक संस्था ने संगीत मर्मज्ञ पांडेय जी को उनकी पत्नी आभा पांडेय सहित आमन्त्रित कर उनके संगीत के अथाह ज्ञान के लिए गुरु पूजा की थी। ये तो तय है कि इतना विशिष्ट व वृहद कार्य पत्नी के सहयोग के बिना संभव नहीं है।   


``आज का ये दौर बेहतरीन फ़िल्मी गायकों का है। आपको कौन सा गायक सर्वश्रेष्ठ लगता है ?`` 


``ये सच है कि आज बहुत से बेहतरीन गायक गायिकाएं हैं लेकिन अभिजीत सिंह पूरी तैयारी के साथ यानि कि शास्त्रीय संगीत सीखकर फ़िल्म जगत में आये हैं इसलिए उनकी गायकी में बहुत गहराई है। गाने में उनकी  मुर्कियाँ प्रस्तुति लाजवाब है। ``


``क्या आप भी महफ़िलों में गीत गाना पसंद करते हैं ?``


``हम गीत तो नहीं गाते लेकिन कोई कहीं भी गीत गाते हुए बेसुरा होता है तो उसकी गलती पकड़ लेते हैं।`` 


सुप्रसिद्ध संगीतकार आनंद जी ने इनका विमोचन करते हुए कहा,``एक ज़िम्मेदार रेलवे के प्रशासनिक पद पर होते हुए अपनी व्यस्तताओं में मेरे बरसों से परिचित श्री के एल. पांडेय कैसे इतना समय निकाल कर एक अभूतपूर्व कार्य किया है कि जो इन्होंने 17,000 फ़िल्मी गीतों की रागें खोज डालीं। ये आगामी पीढ़ियों के लिए एक शास्त्रीय व सरल धरोहर है जो शास्त्रीय संगीत सीखना चाहेगी या जो इसका सुनकर आनंद लेने में रूचि रखती हो।``


 


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