ग़ज़ल


डाॅ. भावना, मुजफ्फरपुर, मो. 9546333084


1.


धन से बिकती डिग्री देख
ऐसा करके तू भी देख

घर के भीतर घर कितने
क्या असली क्या नकली देख

घर की बात गई बाहर
लुढ़की सर की पगड़ी देख

मेरे दुख के दर्पण में
सूरत -आभा अपनी देख

मस्जिद के स्वर से मिलता
है मंदिर की घंटी देख

जितने मुख उतनी बातें
दुनिया है तो कहती देख

नज़रें ऊंची रख लेकिन
पांव के नीचे धरती देख

किसके पीठ पड़े कोड़े
किसकी उघड़ी चमड़ी देख


2.


हवा को आज़मा कर देखना था
कोई दीपक जला कर देखना था

कभी खुद को सता कर देखना था
जरा-सा छटपटा कर देखना था

वो कैसी चीख थी गलियों में उसकी
दरीचे में भी जाकर देखना था

कहीं बैठा न हो चंदा फ़लक पर
ज़रा बादल हटा कर देखना था

तुझे आती न कैसे नींद गहरी
पसीने को बहाकर देखना था

बदलती करवटों में रात को भी
ग़ज़ल इक गुनगुनाकर देखना था


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