हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाओं का दायित्व


डाॅ. रेशमी पांडा मुखर्जी, कोलकाता, मो. 09433675671


भारत में मुद्रित पत्रकारिता का आरंभ सन 1780 में हुआ जब कलकत्ता में पहला अंग्रेज़ी साप्ताहिक पत्र कलकत्ता जनरल एडवटाइजर निकला। हिंदी पत्रकारिता जगत में सूर्य की पहली किरण पंडित युगल किशोर के संपादकत्व में कलकत्ता से सन  1826 में उदंत मार्तण्ड के रूप में निकली। हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाएं जैसे कविवचन सुधा, हरिश्चंद्र चंद्रिका, सुधा, चांद, इंदु, प्रभा, कर्मवीर, मतवाला, सरस्वती, विशाल भारत आदि ने स्वाधीनता आंदोलन में महत भूमिका निभायी।


आज के प्रतियोगिता व बाज़ारवाद से प्रभावित इस युग में हिंदी की साहियिक पत्रिकाएं पूरी निष्ठा व गंभीरता से प्रकाशित की जा रही है। कई एक साहित्यिक पत्रिकाएं उच्च कोटि का साहित्य व रचनाएं प्रकाशित करने के लिए कटिबद्ध व प्रसिद्ध हैं। अहिंदी भाषी प्रदेशों से भी वागर्थ - कोलकाता, संगम - पटियाला, नूतन भाषा सेतु - अहमदाबाद, मैसूर प्रचार पत्रिका - मैसूर, चिंतन दिशा - मुंबई आदि का निरंतर प्रकाशन हिंदी पत्रिकारिता के सुखद भविष्य का सूचक हैं। हिंदी प्रदेशों से कई एक ऐसी महत्वपूर्ण व बहुपठित साहित्यिक पत्रिकाएं प्रकाशित हो रही हैं जो नए साहित्यकारों की कलम से पाठक का परिचय बढ़ाने का गुरु दायित्व निभा रही हैं जिनमंे आलोचना - राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, अभिनव इमरोज़ - सभ्या प्रकाशन, नई दिल्ली, नया ज्ञानोदय - भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली, वर्तमान साहित्य, अभिनव प्रसंगवश - अलीगढ़, मधुमती - राजस्थान आदि अनेकानेक पत्रिकाओं की गणना की जा सकती है ।


हिंदी की साहियिक पत्रिकाएं एक तरफ जहां वर्तमान लेखन को उजागर व प्रसारित कर रही हैं वहीं दूसरी तरफ अतीत के कालजयी व प्रेरणादायी रचनाकारों के कृतित्व को उनके जन्मशताब्दी वर्ष, जयंतियों, अन्य शीर्षकों के बरक्स प्रचारित करती हैं। 2011-12 के दौरान हिंदी की अधिकाधिक साहित्यिक पत्रिकाओं ने अज्ञेय, शमशेर, केदारनाथ, नागार्जुन, 2012-13 में रामविलास शर्मा की जन्म शताब्दी के पुण्य अवसर पर उनके साहित्यिक अवदान पर महत्वपूर्ण व जानकारीमूलक सामग्री प्रस्तुत की।


इन पत्रिकाओं के माध्यम से हिंदी पाठकों को अन्य भारतीय भाषाओं व विदेशी भाषाओं में रचित उच्च स्तरीय रचनाओं का अनूदित रूप भी मिलता है। भारत में अपनी सहोदरा भाषाओं के साथ हिंदी की कड़ी को मज़बूत करने में इन पत्रिकाओं के अमूल्य योगदान को अस्वीकारा नहीं जा सकता है। शोधार्थियों को तथ्यपरक जानकारी दिलवाने में हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाएं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।


हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाओं में विशेषांक निकालने की प्रवृत्ति से परीक्षार्थी, शोधार्थी, अध्ययन-अध्ययापन से जुड़े लोगों को काफी सहायता मिलती है। उपन्यास अंश, कभी-कभार संपूर्ण उपन्यास, कहानी, कविता, निबंध, यात्रा-वृत्तांत, पुस्तक-समीक्षा, व्यंग्य, डायरी-अंश, हाइकु, नवगीत, गज़ल, पत्र-साहित्य आदि को सुरुचिपूर्वक एवं बौद्धिक धरातल पर प्रस्तुत करनेवाली हिंदी की वर्तमान साहित्यिक पत्रिकाएं निश्चित रूप से साहित्य की धारा के प्रवाहमान स्रोत को और उर्जस्वी व बलवती बना रही है। साथ ही देश भर में आयोजित साहित्यिक गोष्ठियों, कवि सम्मेलनों, पुस्तक लोकार्पण समारोह, साहित्यिक प्रतियोगिताओं, पुरस्कार समारोहों, संगोष्ठियों आदि के समाचारों से पाठकों को अवगत कराया जाता है। इसके अलावा समाज कल्याण, कला, संगीत-नृत्य, फिल्म व नाट्य जगत से जुड़े महत्वपूर्ण कलाकारों के साक्षात्कार व उनके योगदान की मीमांसा करने से भी ये साहित्यिक पत्रिकाएं पीछे नहीं हटतीं।


इस क्रम में बाल-साहित्य को प्रकाशित करने वाली साहित्यिक पत्रिकाओं जैसे बालहंस व बच्चों का देश - राजस्थान, आदि के महत्व की ओर भी ध्यान देना चाहिए जिनके बल पर हमारी अगली पीढ़ी को भी स्वस्थ साहित्य से जोड़ा जा सके। हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाएं किसी विमर्श व आंदोलन को भी मंच प्रदान करने की ओर सजग हैं। कई पत्रिकाएं किसी मसले पर विचारशील लेखकों व बुद्धिजीवियों के विचारों एवं प्रतिक्रियाओं को प्रकाशित करती हुई किसी निष्कर्ष तक पहुंचने में प्रयासरत रहती हैं। ये पत्रिकाएं आजकल अनिवार्य रूप से साहित्य शिल्पियों के साक्षात्कार के माध्यम से पाठकों को लेखकों से जोड़ने के सेतु निर्माता की भूमिका निभा रहे हैं।


हिंदी की साहित्यिक पत्रिकाओं का इतिहास यह दर्शाता है कि भारतेंदु, प्रेमचंद, निराला, माखनलाल चतुर्वेदी, हरिशंकर परसाई, राजेंद्र यादव, नामवर सिंह आदि ने अपने जीवन का अनमोल समय, प्रयास, लगन व निष्ठा साहित्यिक पत्रिकाओं की नींव को दृढ़ करने में लगा दिया। आज का समय इस बात का गवाह है कि साहित्यिक पत्रिकाओं की बिक्री व प्रकाशन के मार्ग में आनेवाली समस्याओं से जूझते हुए प्रकाशकगण व संपादकगण का दायित्व समाज के उच्चतम व श्रेष्ठतम दायित्वों में से एक है।


 


Popular posts from this blog

अभिशप्त कहानी

हिन्दी का वैश्विक महत्व

भारतीय साहित्य में अन्तर्निहित जीवन-मूल्य