कतार से कटा घर


गंगा शरण सिंह, मुम्बई, मो. 9833885952


 


कहानी संग्रह : कतार से कटा घर


कथाकार : अनिलप्रभा कुमार


प्रकाशक : भावना प्रकाशन, दिल्ली


पृष्ठ  : 128


मूल्य : ` 350


यह सदी मनुष्य के निरन्तर अकेले पड़ते जाने की सदी है। पिछले पचास वर्षों में हासिल भौतिक उपलब्धियों के समानांतर यह एक बहुत बड़ी विफलता भी इंसान के हिस्से आयी है। ताज़्जुब की बात ये है कि इस अकेलेपन के निर्माता भी हम ही हैं। सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था के परिचालन में हमसे कहीं न कहीं बहुत बड़ी चूक हुई है। निजत्व की तलाश में भागता इंसान इतना दूर निकल आया कि वापसी की गुंजाइश ही न रही।


अनिलप्रभा कुमार के कहानी संग्रह "कतार से कटा घर" को पढ़ते समय ऐसे तमाम विचार आवाजाही करते रहे। एकाकीपन, ऊब, संत्रास, सामाजिक असमानता और मनुष्य के अमानवीयता अत्याचारों के डरावने दृश्य उनकी कहानियों में बार बार आते हैं। जो कहानियां सत्य के ज़्यादा करीब होती हैं उनका प्रभाव उतना ही तीव्र होता है।


संग्रह की पहली कहानी "बे-मौसम की बर्फ़" में तीन मुख्य पात्र हैं-- माँ बाप और बड़ी बीमारी से जूझती एक जवान बेटी। मौसम बेहद खराब, बर्फ़ की बारिश, अचानक गुम हुई बिजली के कारण माँ बाप बेटी को लेकर मित्र के घर चले जाते हैं और जब कुछ समय बाद वापस लौटते हैं तो इस तूफान में वह पेड़ गिरा दिखाई देता है जो उनकी बेटी को बहुत प्रिय था और वह दिन भर उसे देखती रहती थी। बेटी की निरंतर बिगड़ती दशा और उस वृक्ष का धराशायी होना जैसे आगत भविष्य का कोई बुरा संकेत! अनिल जी ने इस बिम्ब को कहानी में बड़ी कुशलता से रचा है। कहानी की अंतिम पंक्ति इंसान की दुर्दम्य जिजीविषा का जबर्दस्त उदाहरण प्रस्तुत करती है।


क़तार से कटा घर : महिला समलैंगिकता जैसे कठिन विषय पर इतने मानवीय दृष्टिकोण से कोई कहानी शायद ही लिखी गयी हो। यह उस कालखण्ड की कहानी है, जब इस बिरादरी के साथ हो रहे हिंसात्मक व्यवहार को अघोषित सामाजिक स्वीकृति प्राप्त थी और समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता दिलाने के लिए विश्व के तमाम बड़े देशों में आंदोलन हो रहे थे। संवेदनात्मक स्तर पर जुड़ी दो महिलाओं के संघर्ष और विजय की यह दास्तान उनके उस बच्चे की दृष्टि से कही गयी है जो स्कूल में अपने सहपाठियों द्वारा लगातार उपेक्षित और अपमानित होता रहता है।


बस पाँच मिनट : संग्रह की श्रेष्ठ कहानियों में से एक!  दहेज और कालांतर में बीमा के पैसे हड़पने के लोभ में पति द्वारा जलाई गई इस खूबसूरत महिला को बचाने में जी जान से लगे डॉक्टर्स सफल हो जाते हैं। अपने शारीरिक सौंदर्य को खो चुकी नायिका बचने के बाद इतनी कुरूप हो गयी है कि स्वयं को आईने में देखने का भी साहस न रहे।


एक बेहद मुश्किल और कठिन जीवन सामने था, किन्तु अपने जीवन दाता चिकित्सकों के प्रति कृतज्ञ वह लड़की ग़ज़ब के आत्म साहस का परिचय देती है। इन हौसलों को धीरे धीरे परवाज़ मिलती है। कुछ ऐसे ही प्रताड़ित, शोषित और विस्थापित साथी मिलते जाते हैं और जीवन से कम से कम आर्थिक दुश्वारियाँ कम होती जाती हैं।


"मन्दिर तब बनते हैं, सती का दाह तब पूजनीय होता है जब कोई शिव उस दाह को अपने कंधों पर उठाए सृष्टि में डोलता है।"


दीवार के पार : पुरुष समलैंगिकता पर केन्द्रित एक बेहद मार्मिक कहानी। दबंग किस्म के एक सहपाठी द्वारा अंतरंग क्षणों को इंटरनेट पर सार्वजनिक कर दिए जाने के बाद एक माँ की नज़र से बयान होता यह घटना चक्र पाठकों को अन्दर तक व्यथित कर जाता है। यह एक माँ की संवेदना ही है कि अपने बच्चे की मृत्यु का कारण बने युवक को दंड मिलते देखकर वह ख़ुश नहीं, बल्कि दो भावी ज़िन्दगियों के इस त्रासद अंत पर दुखी है।


वायवी : यह कहानी सरबजीत जैसी उन दुर्घटनाओं से प्रेरित है जब राजनैतिक दाँव पेंचों के तहत किसी बेगुनाह को जबरन बंदी बना लिया जाता है और पीछे छूट गए उन परिवार जनों की परवाह किसी को नहीं रहती जिनके लिए ज़िन्दगी के मायने ही ख़त्म हो जाते हैं।


समकालीन जीवन स्थितियों और सामाजिक विडंबनाओं का बयान करती ये कहानियाँ एक रचनाकार की सजग, संतुलित और मानवीय दृष्टिकोण का सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।


अनिलप्रभा कुमार की परिष्कृत भाषा, शिल्प और संवेदना इन कहानियों को यादगार बना जाती है।


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