कौन हूं मैं
मीनाक्षी मैनन, होशियापुर, मो. 9417477999
अटपटा सा लगा था तुम्हें,
जब तुम्हारे परिचय पूछने पे
कह दिया था मैंने यकायक,
कि, "मैं तो हूं एक बंजारन"
साफ़ जा़हिर था तुम्हारे चेहरे से,
राजी़ ना था इस जवाब से तुम्हारा मन।
एक बंजारन ही तो हूं मैं, मेरे दोस्त !
एक रूह हूं, जो है; खानाबदोश !
पर चूँकि, एक पता लिखा है मेरे आधार कार्ड पर,
सो तुम्हारा शक भी था जायज़ और निर्दोष ।
मेरी रिहायश ना समझ लेना मेरे जिस्म के ठिकाने को,
रूह हूं, मैं तो एक; जो है आजाद कहीं भी आने-जाने को।
कभी तितलियों संग मंडराती हूं तो कभी,
चिरैया संग दूर गगन छू आती हूं ।
झूल जाती हूं शोख कलियों संग कभी,
लटकती डाली पर;
और सदके जाती हूं कभी डूबते सूरज की सिंदूरी लाली पर ।
नाचती हूं कभी बारिशों में होकर मदमस्त बावरे मोर के संग,
अलविदा करती हूं कभी अँधेरी रातों को, बैठकर उजली भोर के संग ।
बोसा हूं, कच्ची धूप का मैं कलियों पर गिरी शबनम के लिए ।
खिल उठती हूं बनके चांदनी, जब बुझते हैं कभी उम्मीदों के दिए।
बरस -बरस जाती हूं कभी बनके घटा सावन की ;
जोहती हूं बाट ,कभी रेतीले मरू में मेघ के आवन की।
पूछते हो मेरे दोस्त तुम मुझसे ,कि "कौन हूं मैं ?"
कृष्ण के अधरों की बांसुरी की मधुर तान हूँ कभी ,
तो राधा के मन का मौन हूं मैं।
धूप छाँव सी जिंदगी...