कविताएँ
डॉ. कविता भट्ट, email : kavaypriya@gmail.com
वीरांगना तीलू रौतेली
साढ़े तीन सौ साल पुरानी,
यह गढ़वाल की है कहानी।
सुनकर रखना बच्चो ध्यान,
तीलू रौतेली गाथा महान।
धम्मशाही एक राजा दुष्ट,
खैरागढ़ की प्रजा हुई रुष्ट।
तीलू पिता-भुप्पू गोराला
जिन्होंने रणबिगुल बजा डाला।
युद्ध में दो पुत्रों को लेकर
भुप्पू माने प्राण ही देकर।
धम्मशाही का बड़ा अहम,
अन्याय नहीं हो पाया खत्म।
चौदह बरस की छोटी उमर,
मन में तीलू के नहीं था डर।
‘कांडा मेले जाना’ हठ करे;
वही मैदान जहाँ पिता मरे।
माँ ने उसको बहुत समझाया;
लेकिन तीलू को नहीं भाया।
वीरबाला तीलू ने ठाना-
पिता का हर शत्रु हराना।
सखी-साथियों को संग लेकर,
सेना एक बनाई भयंकर।
जीता तीलू ने खैरागढ़;
मातृभूमि के बड़े कई गढ़।
तीलू को रण की चढ़ी थकान;
नयार नदी में ज्यों किया स्नान।
घात लगाए सैनिक दो-चार;
किया निहत्थी तीलू पर वार।
नयार खून से हो गई लाल
घायल तीलू हो गई निढाल।
देवी-रूप वीरांगना वह महान
याद रखना तीलू का बलिदान।
तुम भी ऐसे ही बन जाना,
हर शत्रु को यों मार भगाना।
कभी न युद्ध में पीठ दिखाना
मातृभूमि की शपथ निभाना।
***
गुड़िया अलबेली
मैया! खिली कलियाँ केली की;
ज्यों डोली गुड़िया अलबेली की।
नन्ही चिड़िया उड़ती फूलों पर;
झूलती टहनी के झूलों पर।
केली पर लटकी बेल चमेली,
झूमर बारात सजी सहेली।
मेरी गुड़िया है आज उदास;
जाना उसको गुड्डे के पास।
वहाँ नहीं मिलेगा ये बिस्तर;
मोबाइल, गेम ना कम्प्यूटर।
फिर यह कैसे वहाँ रहेगी।
मुझसे दूरी कैसे सहेगी?
इसे तो मैं खूब पढाऊँगी,
अपने हाथों से सजाऊँगी।
पढ़ाई करके बड़ी बनेगी
सबके भलाई सदा करेगी।