कविताएँ
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’,
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Mob. 9313727493
जगमग तारे
अम्बर में थे
अब तक हँसते
जगमग तारे
आज उतरकर
खेल रहे
धरती पर सारे
बहुत घना
फैला अँधियारा
दीपक लाए
हैं उजियारा
द्वार हमारे
उड़त-उड़ते
नील गगन में
जैसे उतरें
हंस सुनहरे
पंख पसारे ।
***
जंगल में
बहुत भीड़ ये जब से आई जंगल में
जमकर सबने धूल उड़ाई जंगल में
हुआ रात भर धूम-धड़ाका होटल में
नाचे-गाए छुटे पटाखे होटल में
शोर बहुत था पेड़-पहाड़ी काँप उठे
बाघ घड़ीभर सो न पाए जंगल में
झीलों में भी कूड़ा-कचरा भर डाला
बोलो कैसे प्यास बुझाएँ जंगल में
छुपें कहाँ हम पेड़ घने सब काट दिए
झाड़ी तक भी नजर न आए जंगल में
भूखा-प्यासा बाघ सभी से पूछ रहा
'मेरा घर था- तुम क्यों आए जंगल में?’
***
नन्हे बच्चे
सूरज मुझको लगता प्यारा
लेकर आता है उजियारा
सूरज से भी लगते प्यारे
टिम-टिम करते नन्हे तारे
तारों से भी प्यारा अम्बर
बाँटे खुशियाँ झोली भर-भर
चन्दा अम्बर से भी प्यारा
गोरा-चिट्टा और दुलारा।
चन्दा से भी प्यारी धरती
जिस पर नदियाँ कल-कल करतीं
पेड़ों की हरियाली ओढ़े
हम सबके है मन को हरती
हँसी दूध-सी जोश नदी-सा
भोले मुखड़े मन के सच्चे
धरती से प्यारे भी लगते
खिल-खिल करते नन्हे बच्चे
इन बच्चों में राम बसे हैं
ये ही अपने किशन कन्हाई
इन बच्चों में काबा-काशी
और नहीं है तीरथ है भाई