‘किस्सा जाम का’ के संदर्भ में: डा. जसविन्दर कौर बिन्द्रा

 
डा. जसविन्दर कौर बिन्द्रा, नयी दिल्ली, मो. 9868182835 (हिन्दी व पंजाबी की लेखिका, समालोचक व अनुवादिका)


जन मानस की चेतना/अवचेतना का भंडार: लोक कथाएँ


किसी देश की समृद्धि को जानना हो तो उस की भूगौलिक परिधि के साथ उसकी जनसंख्या के रहन-सहन और कार्य शैली के द्वारा परख करनी चाहिए, लेकिन किसी देश की साहित्यिक गुणवत्ता को जांचना हो तो उस के लोक साहित्य की ओर देखना चाहिये। जितना बड़ा भंडार उस देश के पास अपनी लोक कथाओं, लोक गीतों, दंत कथाओं और मिथक पात्रों और कहानियों का होगा, उतनी ही गहरी जड़ें उस देश की मानी जाती है। प्रत्येक देश की सांस्कृतिक विरासत ही असल में उस देश का ऐसा खज़ाना होती हैं, जिस में बार-बार डुबकी लगाई जा सकती है। डुबकी लगाने पर यकीनन हर बार कुछ न कुछ हासिल अवश्य होता है। इन लोक कथाओं के माध्यम से इतिहास, मिथ्हास को ही नहीं जाना जा सकता, वर्तमान समय और आने वाले भविष्य के गहरे भेद भी इन कथाओं में छिपे मिलते हैं। भारत के समान विश्व में कुछ ही संस्कृतियां ऐसी रही हैं, जिनका लंबा इतिहास रहा हैं। ऐसे देश भले कुछ समय के लिए विश्व पटल में धुंधले से नज़र आने लगे, परन्तु समुद्र की गहराई में और वक्त के तूफान में तेज़ हिचकोलें खाते हुए भी ऐसी सभ्यताएँ कभी लुप्त नहीं हो सकती। उनकी पुरातन संस्कृति की जड़ों की गहराई और पकड़ उन्हें सदैव जीवित रखने योग्य होती है। अपने देश के लोक साहित्य का विशाल और बृहत् विस्तार जहां मन को अत्यन्त सुकून और भरपूर होने का एहसास देता है, वहीं उस पर गर्व भी होता है। ऐसी भावना हम भारतीयों से अधिक कौन जान सकता है।


भारत के समान ही ईरान ने भी विश्व में सदा अपनी संस्कृति का लोहा मनवाया ही नहीं, उसे हर खतरों से बचाकर जीवित भी रखा है। आज के दौर में जब संपूर्ण विश्व आतंकी गतिविधियों के कारण जान-माल का अत्यधिक नुकसान झेलने पर मज़बूर और विवश हो रहा हैं, ऐसे में अपनी विरासती धरोहरों को विध्वंस होने से बचाने का खतरा अधिक बड़ा नज़र आने लगा है। गोले-बारूद के ढ़ेर ये नहीं जानते, वे सिर्फ़ इमारतों को धराशयी कर अपने वहशी जुनूनीपन का पता नहीं देते, वे विनाश की ऐसी लीला खेल रहे हैं, जिससे सभ्यताएँ को ही खतरा होने लगा है।


हिन्दी साहित्य की विशिष्ट साहित्यकार नासिरा शर्मा ने हमेशा अपनी लेखनी के द्वारा हिन्दी साहित्य को मालामाल किया, जिसमें दूसरे देशों की भाषाओं के साहित्य और उनके सामाजिक-राजनैतिक जन-जीवन का उल्लेख भी मिलता है, विशेषकर, ईरान संबंधी। ईरान की क्रांति, वहां के लोगों से जुड़ी कहानियों इत्यादि के साथ खुरासान की लोक कथाओं का समावेश भी उन्होंने हिन्दी साहित्य में इतनी खूबसूरती से किया कि ये अब उसी का अभिन्न अंग बन गई हैं। ‘किस्सा जाम का’ ऐसा ही एक संग्रह हैं, जिस में उन्होंने ईरानी संस्कृति के मज़बूत स्तंभ रहे खुरासान की लोक कथाओं का संकलन प्रस्तुत किया हैं। वह यह मानती है कि ईरान में अपने प्रवासकाल को संस्मरणों में बांधने की बजाय उसने कुछ ऐसा लिखना चाहा, जिसमें ईरान की आत्मा छिपी हो। उस लिहाज़ से भले उसने वहां की लोक कथाओं का फारसी से हिन्दी में अनुवाद किया, लेकिन अध्ययन के समय इस बात का कहीं आभास नहीं होता कि पाठक कोई अनुवादित रचना पढ़ रहे हैं। इसका सारा श्रेय लेखिका नासिरा शर्मा को जाता है, क्योंकि उसने इन लोक कथाओं को पूर्णतया हिन्दी मुहावरे में ढ़ाल कर प्रस्तुत किया हैं।


इस संग्रह में कई अनेक कथाएँ हैं, जो आकार में अत्यन्त छोटी नहीं हैं, बल्कि कुछ का आकार कहानी के समान बड़ा हैं। ऐसी कहानियों में कथानक का विस्तार अधिक मिलता है, और घटनाएँ फैलती जाती हैं। कथाओं के अधिकतर किरदारों में बादशाह, परियों और देवों के साथ जीव-जंतु, पशु-पक्षी भी शामिल हैं। कहने का तात्पर्य है कि लोक कथाओं में लौकिक व परालौकिक तत्वों का समावेश मिलता है। जिस से स्पष्ट होता है कि पुरातन समय में सृष्टि को उसकी समग्रता के साथ ही देखा जाता था। जीव-जंतु, पशु-पक्षी या प्रकृति के सभी स्रोत मनुष्य के साथ तालमेल बना कर चला करते थे। ये सभी सृष्टि के आरंभ से मनुष्य के मददगार रहे हैं, लेकिन आधुनिक और उन्नति के नाम पर मनुष्य ही इन प्राकृतिक जीवों और स्रोतों से दूर जाने लगा है। जिस कारण यह आपसी तालमेल अवरूद्ध होने लगा और मनुष्य ने समझदारी और शरीरिक बल के नाम पर सृष्टि के अन्य जीवों और स्रोतों को सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने हित, स्वार्थ और लोभ के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। इसी कारण ‘कथित तौर पर’ आधुनिक युग में सृष्टि की समग्रता को मनुष्य ने ही बांट दिया और सभी ओर सर्वसर्वा बन गया। इसमें कोई दोराय हो ही नहीं सकती कि मनुष्य श्रेष्ठ और लासानी जीव है, प्रकृति ने उसे जो बख्शा है, वो अन्य किसी जीव को प्राप्त नहीं, परन्तु मनुष्य की अत्यधिक बुद्धिमता तब और भी सराहनीय कही जाती, जब वह प्रकृति की सभी शक्तियों को अपने साथ लेकर आगे बढ़ता, नाकि उनका दुरुपयोग अपने स्वार्थ साधने के लिए करता। सभी लोक कथाओं में हम देखते हैं कि सृष्टि के सभी जीव हर तरह से मनुष्य की सहायता ही करते हैं। चाहे वह ‘करामाती घोड़ा’ हो या ‘ज़ीनदोज़’ का समुद्र, नदी या गधा हो, ‘सात बहनों’ में भेड़े या पेड़ हों। कहने का अर्थ है कि ये सभी किसी भी कथा में जब पात्र के रूप में सामने आते हैं तो उसी प्रकार पात्रों समान व्यवहार भी करते हैं।


इन लोक कथाओं के अध्ययन से यह भी सामने आता है कि अपने जन्म के साथ ही मनुष्यों में बहुत अधिक पाने की लालसा रही है। उसकी अभीष्ट प्यास अत्यधिक धन-प्राप्ति, हीरे-जवाहरात और सुख-सुविधाओं की प्राप्ति में रही हैं। लगता है, यह लालसा समय के साथ बढ़ी अधिक हैं, आज भी इसमें कमी नहीं आयी हैं। इन किस्सों के द्वारा इस बात का अन्दाज़ा भी होता हैं कि सृष्टि की रचना के साथ ही मनुष्य का सफ़र भी आरंभ हो गया। उसे सीमित दायरे से निकल कर, जोकि उस का घर या नगर, कस्बा या कोई भी स्थान हो सकता है, से बाहर निकल कर, अपना भाग्य अज़माने के लिए जाना पड़ा हैं। घर पर हाथ पर हाथ धरे बैठने से किसी को कुछ भी हासिल नहीं हुआ। अपने आस-पास के जाने-पहचाने माहौल और सीमितता से बाहर जाकर ही कुछ नया, अद्भुत और भयानक भी दीखता है। ये हित और अहित दोनों प्रकार की परिस्थितियों का साहस से सामना करने और जूझने का बल भी पैदा करती हैं। लगता है, सृष्टि के चक्र में कुछ भी नहीं बदला। ये सभी बातें आज भी उतनी ही सत्य और सार्थक है, जितनी व्यक्ति की जिजीविषा शश्वत है, जो समय के आरंभिक काल में रही होगी। अभीष्ट प्यास की चाह और जूझने का सामर्थ्य दोनों ही, मनुष्य की ऐसी विशेषताएँ हैं, जो उसे अन्य जीवों से एकदम भिन्न करती हैं और उसे श्रेष्ठता का ताज पहनाती है। कहने को ये कथाएँ ईरान की है, लेकिन उस में शामिल लोकशब्द इसे सारी मानव जाति से जोड़ देने के लिए काफी है। लोग सारी दुनिया में थोड़े-बहुत अंतर से भिन्न होते हैं, लेकिन अधिकतर एक जैसे ही होते हैं। यह सत्यता इन कथाओं से भी सामने आती हैं।


एक बात और, इन्हें लोक कथाओं की बजाय ‘किस्से’ कहा गया है। कथाओं की बजाय किस्सों में सच से ज्यादा झूठ की मात्रा विद्यमान होती हैं। कथाएँ आमतौर पर जब पीढ़ी दर पीढ़ी सफ़र तय करती हैं तो उन में पात्रों के नाम स्थानीय बोलियों और बात करने के ढ़ंग कुछ-कुछ बदल जाते हैं, लेकिन कथा की मूल घटना में कोई परिवर्तन नहीं आता है। जबकि किस्सों में बात में से बात निकलने लगती हैं। प्रत्येक किस्साकार इन किस्सों को सुनाते समय उस में अपने मूड और सामर्थ्य अनुसार कोई घटना जोड़ कर इसे और विस्तार दे जाता हैं। किस्सा कह देने से सत्यापान करने-करवाने के झंझट से भी मुक्ति मिल जाती है। सभी जानते हैं कि किस्सों में सच को ढूंढा नहीं जाता, सिर्फ़ उस में छिपे रहस्य व भेद द्वारा और दिए गए संकेतों के माध्यम से ही कही बात को समझा जाता है। इस लिहाज़ से ये कथाएँ, किस्से ही अधिक प्रतीत होती है। इन में घटनाओं का विस्तार बहुत है। इन में शामिल पात्रों या चरित्रों को एकाध बार नहीं, एक से अधिक बार, इम्तहानों से गुज़रना पड़ता हैं। हर बार एक नयी घटना या चरित्र इन में शामिल हो कर उसे एक नये ही मोड़ पर ला कर छोड़ जाता है।


इस संग्रह की कहानियां कई प्रकार की हैं, जिनमें से कुछ कथाएँ दार्शनिक तथ्यों के द्वारा चिन्तन की ओर अग्रसर करती हैं, जिन के माध्यम से जीवन की वास्तविकताओं से परिचय होता हैं। जैसे: ‘किस्सा जाम का’ में बिलकीस बेगम द्वारा मिट्टी के ऐसे जाम की फरमाईश करना कि जो इन्सान की मिट्टी से ना बना हो। सभी प्रकार के यत्न करने के बावजूद जो जाम हाथ में आता है, वो इस सच्चाई को ही प्रगट करता है कि मिट्टी से निर्मित इन्सान, मनुष्य होने के अपने अंह भाव को कभी भूल नहीं पाता, जबकि उसकी नियति अंत में मिट्टी में समा जाने की ही हैं। ‘कहानी बेल की’ भी कुछ ऐसे सत्य को उद्घाटित करती है कि मोर, शेर और सूअर के स्वभाव मनुष्य को कैसे प्रभावित कर सकते हैं। मोर की भांति वह कम पाकर भी अपनी मस्ती में अधिक मगन रह सकता जबकि शेर की तरह ज्यादा पाकर जंगलीपन से गुर्रा सकता है और सूअर की तरह की सोच से वह संसारिक कीचड़ में ही लिपटा रहेगा। व्यक्ति को भोलेपन के कारण दुनिया के सभी सुख और धन-संपत्ति आसानी से मिल सकते हैं, जबकि मनुष्य का लालच उसे उस की स्थिति को ‘बद से बदतर’ भी कर सकता है। ‘चतुर दरवेश’ के शाहज़ादे को यह समझ में नहीं आता कि उस ने जिस लड़की से शादी की है, उसके आने के बाद से वह स्वयं सूखने क्यों लगा है। यह राज समझने में उसकी मदद एक दरवेश करता है। जिसके मशवरे पर अमल करते हुए भी वह जान नहीं पाता है कि वह परीज़ाद नहीं, एक नागिन है। उसे तंदूर में जला देने के पश्चात्, भले शाहज़ादे को उससे मुक्ति मिल जाती है, मगर वह बाद में जान पाता है कि दरवेश ने किस चतुराई से उस की मदद करने के बहाने असल कीमिया को हासिल कर लिया है। दरवेश की चतुराई इसी में थी कि उसने शाहज़ादे को एक नागिन से मुक्ति भी दिला दी और अप्रत्यक्ष रूप से अपना भी भला कर लिया। चतुराई इसी को ही कहा जाता है, जब दूसरे का नुकसान किये बिना अपना फायदा साध लिया जाये। आज भी बहुत से ऐसे हिमायती हमारे पास जमा रहते हैं, जो हमारा भला करने के एवज़ में अपना फायदा ज्यादा कर ले जाते हैं।


‘बुद्विमान’ कहानी अत्यन्त ही रोचक है और यह बताती है कि समझदारी सदा दूसरों को पहचानने और उनका भला करने में सहायक होती है। जैसे इस कहानी में एक व्यापारी के तीन लड़कों ने बिना देखे ही, सिर्फ़ छोटी-छोटी बातों से कैसे पता लगा लिया कि अरब का ऊँट एक आंख से काना है, उस पर बैठी स्त्री गर्भवती है और ऊँट के एक ओर सिरका और दूसरी ओर शहद लदा था। साथ में यह कि इतना धनी अरब असल में एक रसोइये की औलाद है। यह कहानी इस ओर संकेत करती है कि अक्सर हम लोग जिन छोटी-छोटी बातों की ओर ध्यान नहीं देते या उन्हें महत्वपूर्ण नहीं मानते, वह बहुत पते की होती हैं। उन के माध्यम से साधरण बातें भेद में लिपटी प्रतीत होती है, जिसे अमीरी-गरीबी से नहीं समझा जा सकता। उस के लिये ज़रुरत है, सिर्फ़ थोड़ी सी समझदारी और सजगता की, जिस से बड़े से बड़े रहस्य को सहजता से जाना जा सकता है।


कई बार स्वभाव से भीरु होने पर भी कुछ मामूली सी चीज़ों को सही समय पर सही ढ़ग से इस्तेमाल करने से वे बहुत बड़ी ताकत बन जाती है। ऐसा ही कुछ ‘डरपोक देव’ कथा से मालूम होता है। एक बूढ़े व्यक्ति ने अपनी ज़िन्दगी की सारी कमाई के तौर पर एक ढ़ोलक और पिपिहारी अपने इकलौते पुत्र को सौंप कर, उसे खाने-कमाने को कह दिया। उन मामूली चीज़ों को अलग-अलग स्थानों पर सही ढ़ग से इस्तेमाल कर अंतत: वह एक बहुत बड़े बाग का मालिक बन गया। भारी संपत्ति और ज़मीन-जायदाद विरासत में मिलने से कोई भी धनी बन सकता है। प्रत्येक साधरण व्यक्ति को भी प्रकृति उसी शक्ति से नवाजती है, जो हमें लगता है कि वह विशेष व्यक्तियों के ही हिस्से आती है।


अधिकतर कहानियां बादशाहों, धनी व्यापारी, अमीरों से आरंभ होती है, जो किसी न किसी मुसीबत से दो-चार होते रहते हैं। वास्तव में कथा-कहानी तभी रोचक बनती है, जब उसमें तनाव नज़र आये। सीधी-सीधी लकीर सी चलती कोई भी कहानी श्रोताओं या पाठकों को लुभा नहीं पाती। इन लोक कथाओं से ही मार्गदर्शन ले कर आज के दौर की कहानी कला आगे बढ़, शिखर छू रही हैं।


लोक कथाओं में जब भी कोई व्यक्ति परेशानी या संकट से घिर जाये, उसे इस संकट से उबारने के लिए प्राकृतिक तौर पर परियां या देव सामने आते हैं, यदि उसकी नीयत ठीक हो। वह किसी से फरेब या ठगी ना करे तो कुदरत भी उसकी सहायता करती है। और यदि उसकी नीयत में खोट हो तो उसे डरावने और हब्शी सताते और उसे उसके अन्ज़ाम तक पहुंचाते है। ऐसी अनेक कहानियों का ज़िक्र किया जा सकता है, जैसे:  ‘सब्ज़ेकबा व शक्करहवा, खुने बर्फ और खूनगीर , नारंगी की लड़की, सोने की अण्डोंवाली मुर्गी, समुद्र चलगीस, कई कथाओं का नाम लिया जा सकता है। जिनमें मददगारों की सहायता से रास्ते में आने वाली मुशिकलों से आसानी से निपटा जा सकता है। ऐसी कहानियों के अंत में सब कुछ ठीक हो जाता है और पात्र सुखी हो जाते हैं।


इन कथाओं में ‘सात बहनें, परीज़ाद, समुद्र चलगीस, नारंगी की लड़की, चालीस चाबियां जैसी कहानियां कथाओं के लिहाज़ से काफी बड़े आकार की हैं। इनमें एक कहानी ‘लोमड़ी’ जानवरों से संबंधित हैं। लोमड़ी की चालाकी और चतुराई सदा उसे हर स्थिति का सामना कर, उस से निकलने का रास्ता सुझा ही देती है।


‘किस्सा जाम का’ कथा-संग्रह हमें ईरान की लोक कथाओं के माध्यम से वहां के जन-जीवन, उन लोगों की साधरणता और असाधरणतया का ही परिचय नहीं मिलता, बल्कि इन के माध्यम से मनुष्य के शश्वत स्वभाव और गुणों-विकारों का भी परिचय मिलता हैं। नासिरा शर्मा ने इन कथाओं को फारसी से सीधे हिन्दी में लाने में जितनी भी मेहनत की, वह सार्थक प्रतीत होती है। एक ओर हिन्दी साहित्य का क्षेत्र इस से विस्तृत हुआ और दूसरी ओर लेखिका ने अपने ईरानी प्रवास को इन कथाओं के तोहफे से ईरानी और हिन्दी दोनो भाषाओं के साहित्य में अपने योगदान को अमूल्य बना दिया।



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