'सबसे पहले मैं अपने आपको एक भारतीय लेखक मानता हूँ...' - अमिताभ घोष

हेमलता दीक्षित, इन्दौर, मो. 9165614428


राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा के ऐन पहले तीन सदस्यों ने अपने आपको निर्णायक मंडल से अलग करके दिये जाने वाले इनामों के प्रति असंतोष व्यक्त किया है। उनका कहना था कि ज्यूरी के कुछ सदस्यों ने, राजनीति से प्रेरित होकर, बैठक से पहले ही इनाम तय कर लिये थे। दूसरी तरफ फिल्मकार गौतम घोष और वरिष्ठ अभिनेता सौमित्र चटर्जी ने इन इनामों को लेने से इंकार कर दिया है। प्राय: विभिन्न क्षेत्रों में दिये जाने वाले पुरस्कारों और सम्मानों के निर्णय के बारे में सभी को पूरा संतोष कभी नहीं हो पाता है और अक्सर उनके पीछे कुछ ना कुछ कहानी जुड़ी ही रहती है।


अंग्रेज़ी के प्रतिष्ठित ‘कॅमनवेल्थ राइटर्स प्राइज़' के संबंध में भी इन दिनों बड़ी हलचल मची हुई है। किस्सा यह है कि साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अंग्रेज़ी के लेखक अमिताभ घोष ने अपने नव प्रकाशित उपन्यास 'द ग्लास पैलेस' को इस प्रतियोगिता से वापिस ले लिया है। उनकी यह पुस्तक पहले दौर में चयनित होकर अंतिम सूची में शामिल कर ली गई थी। अप्रैल में इस इनाम की घोषणा होगी। इसके अंतर्गत विजेता को दस हजार पाउण्ड की सम्मान राशि दी जाती है। अमिताभ ने फाउण्डेशन को पत्र लिखकर उनकी कृति को 'कॉमनवेल्थ लिटरेचर' का दर्जा दिये जाने पर आपत्ति जताई है, साथ ही अंतिम सूची में शामिल किये जाने की एक हजार पाउण्ड राशि भी लौटा दी है। एक साक्षात्कार में घोष ने बताया कि इसके पहले भी प्रकाशकों द्वारा, उन्हें बिना बताये, उनकी रचनाएँ इस इनाम के लिये भेजी जाती रही हैं, जो ग़लत था। मगर उन्हें मालूम इसी बार पड़ा। उनका कहना है जो लोग उन्हें और उनके लेखन को ठीक से समझते हैं, वे जानते हैं कि पुस्तक को वापस लेकर वे न तो कोई विवाद खड़ा करना चाहते हैं और न ही ख़बरों में बने रहना चाहते हैं।


सन् 1983 में सलमान रुश्दी ने एक निबंध लिखा था 'कॉमनवेल्थ लिटरेचर अस्तितत्व में नहीं हैं।' घोष ने यह निबंध नहीं पढ़ा है। जब उन्हें बताया गया कि पिछले वर्ष के अवार्ड समारोह में रुश्दी स्वयं उपस्थित थे जबकि उनका उपन्यास 'द ग्राउण्ड बीनीथ हर फीट' प्रतियोगिता में शामिल था। यह उचित नहीं था। इस पर घोष की प्रतिक्रिया थी कि दूसरे लेखक इस इनाम को लेकर क्या-क्या करते आये हैं इससे उन्हें कुछ भी लेना-देना नहीं हैं। फाउण्डेशन को पत्र लिखने के साथ-साथ घोष ने इस पुरस्कार से सम्मानित अपने एक मित्र को भी पत्र लिखा है जिसमें लिखा है “तुम्हें यह जानकर आश्चर्य होगा कि मैंने 'द ग्लास पैलेस' को इस प्रतियोगिता से वापस ले लिया है। मैं तुम्हें इसलिये लिख रहा हूँ ताकि तुम यह न समझो कि मैं पूर्व में इस इनाम को प्राप्त करने वाले लेखकों की आलोचना कर रहा हूँ। असल में मेरी पुस्तक कुछ निश्चित ऐतिहासिक परिस्थितियों से संबंधित है। यह बात दूसरी पुस्तकों पर लागू नहीं होती। अत: यह तथ्य उनके लिये प्रासंगिक नहीं है। इसलिये मैं समझता हूँ कि तुम्हारे संदर्भ में ये प्रश्न क्यों नहीं उठे।"


'द ग्लास पैलेस' की यह कह कर आलोचना की जा रही है कि इसमें घोष का साम्राज्यवादी स्वर अधिक उभरा है। कहीं इस आलोचना से बचने के लिये ही तो उन्होंने पुस्तक को प्रतियोगिता से वापस नहीं लिया है। उत्तर में अमिताभ ने बताया कि फाउण्डेशन को लिखे अपने अठारह मार्च के पत्र में उन्होंने ऐसा करने के अपने निजी कारण बताए हैं। उनके इस कदम को सही बताते हुए उन्हें कई पत्र और सन्देशे प्राप्त हुए हैं, यानी कि लोग उनके निर्णय और विचारों से सहमत हैं। उन्हें ब्रिटेन से एक भारतीय विद्यार्थी का पत्र मिला है जिसमें उसने लिखा है कि ब्रिटेन में एक भारतीय विद्यार्थी होने के नाते उसे यह बात बहुत अच्छे से समझ में आ गई है कि अंग्रेज़ पूरी साम्राज्यवादी कवाइद और उसकी तथाकथित महानता को कैसे देखते हैं और हम भारतीय उसे कैसे देखते हैं। उसने आगे लिखा है कि हमारे बहुत सरल अंग्रेज़ी भाषा में समझाने पर भी उनकी समझ में क्यों नहीं आता कि वे उस तरह ही क्यों सोचते हैं। अन्त में उसने घोष को इस संदिग्ध श्रेणी कॉमनवेल्थ लिटरेचर' पर आपत्ति जताने के लिये धन्यवाद दिया है। यह बात वह स्वयं भी एक विस्तृत संदर्भ में कई दिनों से कहना चाह रहा था।


क्या दूसरे पुरस्कारों में भी विसंगतियाँ नहीं है, पूछने पर अमिताभ कहते हैं कि सामान्य तौर पर उन्हें साहित्य के अन्य इनामों से कोई शिकायत नहीं है। उन्होंने बहुत ज़ोर देकर साफ कहा कि किसी भी साहित्यिक पुरस्कार में सबसे अहम चीज़ साहित्य होना चाहिए, न कि उसको देखने का एक खास पुराना या नया दृष्टिकोण और न ही साहित्य को लेकर कोई खेमेबाजी होनी चाहिए। उनके मतानुसार 'कॉमनवेल्थ' शब्द हमेशा से ही भूत और वर्तमान समय के संदर्भ में ही उपयोग में लाया जाता रहा है और यह उनकी पुस्तक की भावना के विरुद्ध है। अन्य इनाम जैसे - एल.ए. टाइम्स, गार्जियन, क्रॉसवर्ड, आनंद पुरस्कार आदि का ऐसा अभिप्राय नहीं है। उनकी नज़र में यदि कुछ पुस्तक विक्रेता या अखबार समूह किसी साहित्यिक पुरस्कार की स्थापना करते हैं, तो यह उचित है। मगर किसी तम्बाकू कंपनी या राजनैतिक पार्टी या इसी प्रकार के अन्य इनाम पर बहुतों को आपत्ति हो सकती है। वे कहते हैं “यदि इनाम देने वाले यह सोचते हैं कि उन्हें लेखकों के बारे में निर्णय करने का अधिकार हैं तो उन्हें यह भी जाने लेना चाहिए कि लेखकों को भी इनामों के बारे में निर्णय करने का हक़ है।"


अमिताभ घोष अपने लेखन को कैसे परिभाषित करते हैं, पूछने पर उनकी त्वरित प्रतिक्रिया थी “सबसे पहले मैं अपने आप को एक भारतीय लेखक मानता हूँ। इससे मेरा तात्पर्य यह है कि मेरे साहित्य की जड़ें भारतीय अनुभव में हैं। इस महत्वपूर्ण तथ्य की उपेक्षा करते हुए मेरे लेखन को किसी अन्य श्रेणी में बाँटा जाना मुझे पसंद नहीं है। अंग्रेज़ी में भारतीय लेखन ये शब्द मेरे लेखन को बेहतर परिभाषित करते हैं।"



साभार: अतीत की करतनों से


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