समीक्षा


निशिगंधा, नई दिल्ली, मो. 9810957504


मुंशी प्रेमचंद की पांचवी पीढ़ी की कथा लेखिका निशिगन्धा का कहानी संग्रह ‘‘एकलमन’’ मेरे समक्ष है। उक्त संग्रह की कहानियाँ मनोवैज्ञानिक कहानियों के अन्तर्गत आती हैं जिनका आरम्भ जैनेन्द्र कुमार और ‘अज्ञेय’ की कहानियों से हुआ था। कभी-कभी अकेलापन जीवन के सारे हरेपन को समाप्त कर देता है। ऐसा ही ‘एकलमन’ के प्रमुख पात्रों के जीवन में घटित हुआ है।


कहानियों की भाषा परिस्थितियों और पात्रों की मानसिकता के अनुकूल है। वह न सरल, न कठिन है, वरन भाव के साथ जन्मी सहज भाषा है।


मेरा विश्वास है कि साहित्य के सिंहद्वार पर सुधि पाठकों द्वारा ‘एकलमन’ का समुचित स्वागत किया जायेगा। उक्त संग्रह की कहानियाँ पाठकों को अमरीका, कनाडा और यूरोप के निवासियों की मानसिक स्थिति का परिचय देता है, क्योंकि वहाँ के भौतिकता और व्यस्तता से बोझिल जीवन में अकेलेपन का भाव मन का स्थायी भाव बन गया है। मेरी हार्दिक बधाई।


22 जुलाई 2016


प्रोफेसर सोम ठाकुर, पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान


लखनऊ (उ.प्र.)



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