संगीता की कविताएँ
संगीता कुजारा टाक, राँची, मो. 9234677837
1.
नानी कहा करती थीं
'एक कांधे सुख होता है
और एक कांधे दुख
'यही जीवन की रीत है
ऐसे ही बना रहता है
जिंदगी का संतुलन'
आज आईना देखा
एक काँधा मेरा
कुछ ज्यादा झुका दिखा मुझे...
2.
लालच बुरी बला है!
प्रेम को
जीवित रखने के लालच ने
मुझे हर बार
तुम्हारी तरफ ढकेला
और मैं गई भी
उसके मुँह में मुँह डालकर
साँसें भरी मैंने
दम-भर
लेकिन
उसे पता चल गया
तुम्हारी साँसों की गैरमौजूदगी का
अब
उसकी मृत्यु तो निश्चित थी
मुझे बेमौत मरना पड़ा
बुजुर्ग
ठीक कहते हैं
लालच बुरी बला है।
3.
मैंने 'हाँ'कर दी
मैं
तुम्हारी
कनफोड़ू ख़ामोशियाँ सुन सकता हूँ
और रुक सकता हूँ
तुम्हारी गूँगी आवाज पर,
जब कहा उसने-
तो फिर मैंने 'हाँ' कर दी
मैं
चल सकता हूँ तुम्हारे साथ
उन रास्तों पर
जो कही नहीं जाती
और ठहर सकता हूँ ताउम्र
..... ........ ..अडिग
संघर्षों के दलदल में,
जब कहा उसने-
तो फिर मैंने 'हाँ'कर दी
मैं
जानता हूँ
तुम्हारी प्यास की भाषा
और समझता हूँ
तुम्हारी भूख का सब्र,
जब कहा उसने-
तो फिर मैंने 'हाँ' कर दी।
4.
फ़लसफ़ा
एक दिन
पूछा था मैंने
माँ से-
‘दिनभर क्यों रहती हो
रसोई में ?’
पकड़ कर हाथ मेरा, उसने
तब बैठाया अपने पास
और कहा था
आ! देख! समझ!
यहीं
इसी अँगीठी में
समाया हुआ है
फ़लसफ़ा जिंदगी का
लकड़ी, शोला, आग
और फिर राख ही राख...।
5.
फ़र्क़
न्यूटन ने
गिरते हुए सेब को देखा
और विज्ञान की धारा बदल दी
हम भी देखते हैं
गिरती हुई चीजों को
लोगों को,
और
हँस पड़ते हैं...!
6.
जेनेटिक डिज़ीज़
ईश्वर की
सृजनात्मक व्याकुलता का
परिणाम है
यह दुनिया!
मेरा कविता लिखना
कोई खुराफात नहीं
बस
वंशज रोग है ये...
7.
पहली बात
जिस
ज़बिये से
खड़े होकर
तुम देखा करते थे मुझे
अब भी
खड़ी है वहीं
खिलखिलाती-सी
मेरी नादान, निर्दोष जवानी
उम्र, मेच्योरिटी, ग्रे हेयर....
ये दूसरी बात है
पहली बात तो यह है
कि मेरा हरापन तुमसे है।