शिशु को चाँद दिखाती माता!
शिशु को चाँद दिखाती माता!
खिली चाँदनी कुन्द-कुसुम-सी, मधुर पवन लहराता आता!
शिशु को चाँद दिखाती माता!
आँगन में ले गोद ललन को-
कहती-‘चन्दा-मामा देखो!’
किलक-किलक बह नन्हीं-नन्हीं बाँह उठाता-हाथ न आता!
शिशु को चाँद दिखाती माता!
असफल हो, रो उठता निर्बल,
भाव जताता-’दे माँ, दे चल!’
अश्रु बहाता, माँ थुपकाती, लोरी गाती, वह सो जाता!
शिशु को चाँद दिखाती माता!
ऐसे ही, मानव जीवन भर-
रोता सुख के लिए निरन्तर,
धरती-माता-बहला देती, वह रो-धो कर चुप हो जाता!
शिशु को चाँद दिखाती माता!
साभार: रामेश्वरलाल खण्डेवाल ‘तरुण’ की पुस्तक हिमांचला के सौजन्य से