स्त्रीत्व मुबारक हो
डॉ. मेधावी जैन, गुरुग्राम
तुम्हें तुम्हारा प्रकृति होना
तुम सृजन में समर्थ हो
धैर्य तुम्हारी पूंजी है
तुम रजस्वला हो
ज़माने से चाहे जितना समानता के
एक दिन ख़ुद स्वीकारोगी कि तुम
स्त्री बन तुम तय करोगी
स्वयं की सुंदरता पर मोहित होने
तुम स्त्री क्यों हो
इस भाव तक का सफर
मैं अगले जनम में भी स्त्री ही
से लेकर
मैं इस जनम में भी स्त्री क्यूँ
तक की डगर
जब तुम्हारी देह का निचला हिस्
वही औरतों वाली बीमारी से ग्रसि
उठते, बैठते, करवट बदलते
छींकते, खाँसते
भर भर कर रक्त स्रवित होगा
एक बार नहीं, बार बार होगा
कुछ दिन नहीं, लगातार होगा
उस दिन तुम स्वयं जानोगी
कि स्त्री नरक का द्वार क्यूँ है?
पुरुष हेतु नहीं अपितु स्वयं हे
तुम संपूर्ण नहीं, लगभग संपूर्ण
थोड़ी दोषसहित, थोड़ी कलंकित
बाकी परिपूर्ण हो
और समाज संपूर्ण परिपूर्णता की
दायित्व (liability) की नहीं
परिसंपत्ति (asset) की आशा करता
इसीलिए तो तुम्हारे जनमने पर
ख़ुशी की फीकी लहर दौड़ती है
दुनिया ताउम्र तुमसे समर्पण की
ओ स्त्री, तुम्हें स्त्रीत्व मु