"स्वर्ण कलश गुजरात" में लबालाब भरी गुजरात की स्त्री की कथाएं


नीलम कुलश्रेष्ठ, अहमदाबाद, मो. 9925534694


अजना संधीर, हिंदी साहित्य में एक बेहद जाना पहचाना नाम है। जब अमेरिका रहीं तो वहाँ के कहानीकारों व कवियों को खोज खोजकर उनकी रचनाओं की पुस्तक सम्पादित की। गुजरात में रहने आ गईं तो यहां भी साहित्यिक संगठन के काम को करने से नहीं चूकीं पता नहीं कहाँ-कहाँ से आहिन्दी भाषी प्रदेशों के रचनाकारों को खोजकर दो पुस्तकें सम्पादित कर डालीं। एक कवयित्रियों की रचनाओं की स्वर्ण आभा गुजरात व दूसरी कथा लेखिकाओं की 'स्वर्ण कलश गुजरात'। इस पुस्तक का विमोचन कमल किशोर गोयनका जी के कर कमलों से विश्व पुस्तक मेले में सन् 2017 में हुआ था जिसमें हम पांच छ;सहभागी कथाकार उपस्थित थीं।


अंजना संधीर ने एक बहुत विवेकपूर्ण काम करके उनके प्रतिनिधि साहित्य को कहानियों के रूप में जीवित रखने की कोशिश की है। एक विशिष्ट बात बता रही हूँ कि जब 'स्वर्ण आभा गुजरात' का गुजरात विद्यापीठ में, जिसमें अंजना व्याख्याता हैं, विमोचन होना था तब इस लेखिका ने 100 से ऊपर गुजरात की लेखिकाओं को आमंत्रित किया व उनके कृतित्व व फोटोज़ की प्रदर्शनी भी लगाई। इन सभी फोटोज़ की प्रदर्शनी को विद्यापीठ की लाइब्रेरी में अंजना के प्रयास से स्थायी भी कर दिया। महिला रचनाकारों को साहित्य से खदेड़ा जाता है, उसी के सशक्तीकरण की ये पहल थी। इसलिए अस्मिता, महिला बहुभाषी मंच, अहमदाबाद ने सन 2016 में अपना नारी सशक्तिकरण सम्मान देकर इन्हें सम्मानित किया था। इनके विशेष परिश्रम को देश में कहीं न कहीं सम्मान व पुरस्कार मिलता रहता है।


मैं जबसे गुजरात में रहीं हूँ तब से शीर्षस्थ पत्रिकाओं के लिए लिख रहीं हूँ इसलिए इस पुस्तक के लिए कुछ उदासीन थी कि अंजना ने पता नहीं कहाँ कहाँ से 41 कथा लेखिकाएं खोजकर खाना पूर्ति कर दी है क्योंकि इनमें से दो चार की कहानियां ही अच्छी पत्रिकाओं में पढ़ीं थीं.इसे तब थोड़ा उलट पुलट कर रख दिया था। हुआ ये कि मधु गुप्ता [सोसी] जी के आग्रह पर मैंने उनकी कहानी डब्ल्यू टी सी पढ़नी आरम्भ की जो कि गुजरात के रबारियों (दूध का व्यापार करने वाले) में दो परिवारों के बीच लड़कियों की शादी के लिए अदला बदली करने की परम्परा पर आधारित है। 'डब्ल्यू टी सी जैसी लम्बी लड़कियों का हश्र भी अमेरिका की इसी इमारत की तरह होता है। शायद यही वह संयोग था कि मैं इस पुस्तक पर लिखने के लिए मजबूर हो गई क्योंकि ज्यों ज्यों और कहानियाँ पढ़नी शुरू कीं तो मेरा गर्व धाराशायी होता गया कि हम ही गुजरात के अच्छे कहानीकार हैं क्या इसकी कहानियां पढ़ती जा रही हूँ और स्त्री जीवन से जुड़ी भारत ही नहीं अमेरिका तक पहुँची कहानियों से परिचित होती जा रही हूँ।


इस पुस्तक को पढ़ने से एक बात समझ आई कि अहिन्दी प्रदेश की बहुत सी प्रतिभाएं साहित्य में अपना स्थान नहीं बना पा रहीं। क्योंकि इनके लिए कोई मार्गदर्शन नहीं होता। इस कारण इनमें वह संघर्ष का मादा नहीं जाग पाता कि ये साहित्य की मुख्य पत्रिकाओं में अपनी जगह बनाने की कोशिश करें। इनमें न धीरज होता कि अच्छी पत्रिकाओं से बार बार कहानी लौटने पर अपना मनोबल बनाये रक्खें, और मेहनत करें तो और ऊंचाई तक पहुँच सकतीं हैं।


इस में कांति अय्यर, डॉ सुधा श्रीवास्तव जी, डॉ. प्रणव भारती, डॉ कमलेश सिंह, आशा टंडन, निर्झरी मेहता, डॉ. उषा उपाध्याय, रंजना सक्सेना, डॉ बिंदु भट्ट, डॉ रानु मुखर्जी जैसी वरिष्ठ रचनाकारों की सशक्त कहानियां है। शैली की परिपक्वता साफ़ झलकती है। उधर मधु प्रसाद, डॉ. मालिनी गौतम, मल्लिका मुखर्जी, अर्चना अनुप्रिया, पूनम गजरानी प्रभा जैन, जानकी पालीवाल, प्रतिभा प्रसाद विप्रदास, संतोष लंगर सुहास, इन्दु मित्तल, जैसी अन्य कवयित्रियों की भी ऐसी कहानियां हैं जिन्होंने कहानी लिखना आरम्भ ही किया है। फिर भी ये कहानियां निराश नहीं करतीं। इस संग्रह में गुजरात की आई पी एस डॉ. मीरा रामनिवास, चिकित्सक डॉ सुषमा अय्यर, भारी पानी संयंत्र. वडोदरा के परमाणु ऊर्जा विभाग की सहायक निदेशक डॉ. रश्मि भार्गव, वरिष्ठ अभियंता व संगीतज्ञ वनता ठक्कर ए जी ऑफिस की अकाउंट ऑफिसर मल्लिका मुखर्जी, से लेकर पत्रकार, वैज्ञानिक अध्यापक, प्रोफ़ेसर, नाटक कर्मी व धारावाहिक लेखिका तक की कहानियाँ शामिल हैं इसलिए हम बहुत से क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं व उनके सहयोग करनेवाले या न करने वाले पतियों के विषय में जान पाते हैं।


हम कह सकते हैं कि जो स्त्रियाँ शिक्षित होकर बाहर दुनियाँ देख रहीं हैं, वे इस दुनिया के विषय में अपनी कलम से कोई कहानी अभिव्यक्त करना चाहती हैं जैसे हिमयुग की कहानी सेडना का ग्रहिका बनना' एक हैवी वॉटर प्रोजेक्ट के परमाणु प्रोजेक्ट में सहायक निदेशक में काम करने वाली रश्मि जी ही लिख सकती हैं। फ़िलेडेल्फिया में बसी पन्ना नायक अपनी कहानी रीयल भाग्योदय में एक पिता के दर्द को बयान कर सकतीं हैं जिसकी बेटी एक अश्वेत के साथ लिव-इन में रहती है व माँ बनने वाली है. निशा चंद्रा की कहानी 'मुक्तिधाम हमें वृन्दाबन की बंगाली विधवाओं के विकट जीवन का दर्शन करवाती हैं। इस तरह से ये संग्रह जीवन के दो विपरीत आयामों को परचित करवाता चलता है.... कहाँ अमेरिका ,कहाँ वृन्दाबन।अंजना संधीर को साधुवाद कि वे स्त्रियों के जीवन के विभिन्न पहलुओं का कहानी संग्रह के रूप में एक खूबसूरत व सशक्त कोलाज बना सकीं।


किसी दौर में मांयें अपनी बेटी शिक्षा प्राप्त करने को अच्छा नहीं समझती थीं लेकिन आज भी ऐसी माँयें हैं ये बताती है साधना श्री की कहानी "हृदय परिवर्तन''। यदि पति इतना बर्बर हो जो स्त्री पर प्रहार सा करता 'बेटा 'माँगता रहे तो ऐसे पति का मंगलसूत्र [बिंदु भट्ट] फेंका जा सकता है। साराभाई वर्सेज़ साराभाई [स्टार वन] जैसे लोकप्रिय टी वी धारावाहिक की लेखिका काजल ओझा वैद्य की एक सशक्त कहानी 'खून पी जाता' भी इस संग्रह में है' ये कहानी इसलिए चौंकाती है की अपने पति के दुश्चरित्र होने का ढिंढोरा पीटने वाली पत्नी की बेटी के सामने जब सच आता है तो उसकी आँखें खुली की खुली रह जाती हैं। इसमें चित्रित उस बेटी का दुःख दिल चीर जाता है जो अपने पिता व माँ की लड़ाई के कारण देश से ही पलायन कर जाती है।


अपने कहानी लेखन के लिए व कहानी संग्रह के लिए सर्वप्रथम गुजरात की अखिल भारतीय पुरस्कार पाने वाली नीलम कुलश्रेष्ठ की कहानी हैवनली हेल एक अनोखी कहानी इसलिए है कि एक औद्योगिक महिला व शहर के एक बेहद समृद्ध व्यक्ति के व्यवसात्यिक युद्ध की कहानी है यानि कि एक ऐसे शिकारी की कहानी है जो स्त्री को सिर्फ शिकार समझता है। उस उद्यमी महिला के दृढ़ व्यक्तित्व के कारण मुंह की खाता है। हिन्दी साहित्य में किसी शिकारी पर लिखी ये पहली इतनी विस्तृत कहानी है। नॉटनल ऑनलाइन पब्लिकेशन ने इसी कहानी के शीर्षक से व कुछ और शीर्षक से नीलम के कहानी संग्रह की तीन ई-बुक्स प्रकाशित की हैं।


एक और विशिष्ट कहानी अधिकाँश स्त्रियों के जीवन के कटु सच को उद्घाटित करती है कि किसी स्त्री को शादी के दस वर्ष--पंद्रह--या--बीस --वर्ष तक पता नहीं चलता कि उसका पति बहुगामी है यानि कि अपनी तुष्टि के लिए किसी के पास भी जा सकता है तब तक वह अपने घर में मगन रहती है लेकिन जब उसे पता लगता है तो घर टूटने तो नहीं देती लेकिन शादी की आडम्बरयुक्त गोल्डन जुबली [डॉ .सुधा श्रीवास्तव] नहीं मनाने देती। इस पुस्तक ने हैवनली हैल 'व 'गोल्डन जुबली 'दो कहानियों के माध्यम से लगभग सभी कामकाजी स्त्रियों के जीवन का परिदृश्य प्रस्तुत किया है कि वह बाहर निकल कर किसी की नज़रों में शिकार बन जाती है, घर पर बाहर की स्त्रियों के लिए उपेक्षित की जाती है। बहुत सी घरेलु स्त्रियों का कोई रिश्तेदार ही शिकारी की तरह पीछे लगा रहता है बाद में अखिल भारतीय स्तर पर डॉ. प्रणव भारती को जयपुर की, डॉ नीलिमा टिक्कु की संस्था 'स्पंदन से अपनी कहानी के लिए पुरस्कृत किया है। निशा चंद्रा अपनी लघु कथा के लिए 'स्पंदन से पुरस्कृत की गई हैं। मधु सोसी गुप्ता की कहानियों को अखिल भारतीय स्तर पर चयनित करके प्रतिलिपी डॉट कॉम ने अन्य कहानीकारों की कहानियों के साथ ई -बुक बनाई है।


मानवीयता से ओत प्रोत निर्मला युग की कहानी 'राबिया की धड़कन एक अलग किस्म की कहानी है जिसमें राबिया को दो पालनहार मिल जाते हैं। यू. एस.ए में रहने वाली डॉ विशाखा ठाकर की 'पेशेंट पार्किंग' का ज़िक्र अलग से बहुत ज़रूरी है क्योंकि अमेरिकन परिवेश की कहानी एक एल्बम व कुछ केसेट्स में कैद है। केसेट्स भी वो जिसमें फ़ोन पर हुए वार्तालाप रिकॉर्ड हैं। इस कहानी में बहुत रचनात्मक अनूठापन है।


विदेश बस गए बच्चों की उपेक्षा डॉ सुमन शर्मा की कहानी 'रहोगी तुम वही' सुप्रसिद्ध लेखिका सुधा अरोड़ा जी की इसी शीर्षक की कहानी की याद दिलाती है लेकिन बस बयान बनकर रह गई है। अर्चना अनुप्रिया की कहानी 'शारदा' इस बात को इंगित करती है कि समृद्ध स्त्रियां चाहें तो अपने घर की सेविका को सशक्त बनाने का काम कर सकती हैं। पूनम गुजरानी की कहानी' मोमबत्ती में एक दो नावों पर सवार व्यवसायिक स्त्री की कश्मकश है ,जो डॉक्टर है। वह घरेलु परंपराएं भी निबाह रही है उधर एक मरीज़ गंभीर है। बस गनीमत ये है कि पति बहुत समझदार हैं। प्रश्न ये है इतने अच्छे समझदार ऐसे पति कितनों को मिलते हैं ?


वन्दना भट्ट दलित व सवर्ण के भेदभाव पर कलम चलाती रहीं हैं। उनकी कहानी 'अँधेरे का रंग' बहुत कलात्मकता से हिन्दु मुस्लिम कट्टरवाद के विरुद्ध अभिव्यक्ति करती है.उधर अपर्णा भटनागर ने अपनी बहुत भावप्रवण शैली में 'माही बह रही थी' से स्त्री भ्रूण हत्या के विरुद्ध बहती हुई नदी की कलकल सी अपनी बात कह जाती है।


गुजरात तो उत्सव प्रियता का प्रदेश है। यहां का गरबा तो भारत भर के त्योहारों का राजा हैं। अंजना से बस एक शिकायत रह गई है इस में कोई भी कहानी इस उत्सव प्रियता विशेष कर गरबा पर नहीं मिली थी तो वे किसी से लिखवा सकती थीं।


अंजना जी को व सिंधी लेखिका विम्मी सदारंगाणी को भी नहीं पता होगा कि उन्होंने कैसे स्त्री लेखन के इतिहास में एक शोध बिंदु दे दिया है। ऐसा माना जाता रहा है कि विश्व में स्त्री लेखन सन पंद्रह सोलह से आरम्भ हुआ है। मैंने वडोदरा की भूतपूर्व महारानी चिमनाबाई की अंग्रेज़ी पुस्तक 'पोज़ीशन ऑफ़ वीमन इन इंडियन सोसायटीज़' को पढ़करमुझे इस पुस्तक से ही पता लगा कि ग्यारहवीं शताब्दी में दो जापानी स्त्रियों मुरास्की दो शिकिबु ने एक उपन्यास 'जेजी मोनोगावरी' व 'शोनेगौन' ने सामाजिक विषय पर एक अभूतपूर्व पुस्तक लिखी थी मकुरानो जोशी ये जानकारी इसलिए भी प्रामाणिक है क्योंकि महाराजा साल में अधिकतर विदेश घूमते रहते थे . विम्मी जी ने अपने इस लेख [स्वर्ण कलश गुजरात --- संपादक -अंजना संधीर] में बताया है कि सिंधी साहित्य में महिला लेखन का आरम्भ सुरमा दौर की मिर्खा शेखा [१२ वीं शती ]से माना जा सकता है। ये सिंधी भाषा की पहली कवयित्री हैं। उन्होंने अपने आराध्य संत खेरल पीर की प्रशंसा में कविता लिखीं। अर्गुन काल [१५१६ वीं सदी ] में जदल जतनी और शाह शुजाह का नमा आता है।


वरिष्ठ लेखिका दिवा भट्ट ने अपनी कहानी 'अ-रचित' को प्रयोगात्मक शैली में बहुत खूबसूरती से लिखा है। वह अपनी कलम से उकेरतीं हैं किस तरह किसी स्त्री की कलम को पृथ्वी की कोई भी चीज़ बेचैन करती है, "तू हमारी हरियाली लिख, लहराना लिख, मुस्कारना लिख, पशुओं की जुगाली में बसे स्वाद को लिख और हमारी हरियाली के अंदर बसे रक्त और दूध को लिख... सर्दियों की धूप कहती है.... मेरा गुलाबी गुनगुनापन, अपनापन लिख।


इसी तरह से हर लेखिका लिख रही है.... अधिकाँश इन लेखिकाओं के नाम आपने नहीं सुने होंगे लेकिन स्त्री लेखन के विशाल फलक को जानने के लिए आप इस स्वर्ण कलश के ऊपर लगे ढक्कन को उठा कर संस्कृत के सूर्य नमस्कार मन्त्र की तरह स्त्री जीवन के सच को जानिये यानि पृष्ठों को पलट कर इसके अमृत का रसास्वादन अवश्य करें यानि कि ये पुस्तक अवश्य पढ़ें।


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