केनवस
रमेश दवे, भोपाल, मो. 9406523071
इतने शून्य
निराकार
निस्तब्ध,
खाली खाली
क्यों हो
केनवस?
यह मौन
क्यों
इतना गौण?
बोलते क्यों नहीं
केनवस?
यह कहते कहते
रख दी अंगुली मैने
केनवस की छाती पर
बोल उठा
मूक केनवस
अंदर से निकलने लगीं
छवियां
शून्य को आकार में
बदलते रंग
रंगों में भरे भरे
दृश्य
अर्थ
बोलने लगा
केनवस
पूछो उनसे
जो
समझते नहीं
दर्द
मेरे मौन का
मेरे शून्य का!