‘बिहार’ जन्मभूमि की गौरवगाथा

मंतव्य

आचार्य भगवत दुबे, अध्यक्षः कादम्बरी, जसूसा सिटी, जबलपूर
मो. 9691784464

डाॅ. अहिल्या मिश्र, हिन्दी जगत की प्रख्यात लेखिका हैं। उन्होंने अपनी जन्म भूमि सागापुर सकरी, मधुबनी (बिहार) का स्वाभिमानी एवं गौरवशाली स्मरण ‘बिहार’ नामक ग्रन्थ में किया है। वैदुष्मती लेखिका वर्तमान समय में, हैदराबाद, आन्ध्र प्रदेश में स्थायी रूप से बस गई हैं। वे नवजीवन बालिका विद्यालय की प्राचार्य, महिला नवजीवन मंडल की मानद प्रशासक एवं नवजीवन वोकेशनल अकादमी रामकोट की निर्देशक हैं। डाॅ. अहिल्या मिश्र का लेखन विविधवर्णी, एवं बहुआयामी है। अब तक आपके 5 कविता संग्रह, 3 कहानी संग्रह दो उपन्यास 6 निबन्ध संग्रह। नाटक एवं 2 समीक्षा ग्रन्थ प्रकाशित एवं प्रशंसित हो चुके हैं। आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर शोध कार्य भी संपन्न हो चुके हैं। आप ‘पुष्पक’ नामक साहित्यिक पत्रिका की संपादक हैं। देश भर की लगभग 200 साहित्यिक गोष्ठियों में आपके स्तरीय व्याख्यानों के परिप्रेक्ष्य में देश की शताधिक संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित किया जा चुका है। हमारी संस्था ‘कादम्बरी’ ने भी आपको ‘प्रज्ञाश्री’ अलंकरण से विभूषित किया है।

डाॅ. अहिल्या मिश्र ने अपनी जन्मभूमि वाले सभ्यता के द्योतक राज्य बिहार की गौरवगाथा अनेक आलेखों के माध्यम से ‘बिहार’ नामक ग्रंथ में रेखांकित की है। बिहार (पाटलिपुत्र) के प्राचीन स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए आपने गुप्त काल के स्वर्णयुग की चर्चा की है जिसके अंतर्गत अंग प्रदेश, तिरहुत, मिथिला एवं वैशाली की सांस्कृतिक विरासत का सगर्व उल्लेख किया है। उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, झारखंड एवं नेपाल से बिहार की सीमाएँ सटी हुई है। गंगा, गंडक आदि नदियों ने बिहार की भूमि को उर्वरा बनाया है। यहाँ के लोग परिश्रमी एवं सीधे-सादे हैं उन्हें अपनी संस्कृति, से बहुत प्रेम है। छठ पूजा यहाँ का सबसे बड़ा त्यौहार है। जहाँ अस्ताचलगामी सूर्य को अध्र्य दिया जाता है।

नालंदा, तक्षशिला एवं विक्रमशिला विश्वविख्यान, शिक्षा के केन्द्र रहे हैं। आदि शंकराचार्य से शास्त्रार्थ करने वाले श्री मंडन मिश्र एवं उनकी विदुषी पली भारती इसी पुण्य भूमि की देन है। भगवान श्री राम की अर्धांगिनी भगवती सीता भी मिथिला की ही बेटी थी। चन्द्रगुप्त महान तथा सम्राट अशोक यहाँ के प्रसिद्ध नरेश थे। अर्थशास्त्र के रचयिता महान कूटनीतिज्ञ चाणक्य इस प्रदेश की देन हैं।

विदुषी लेखिका डाॅ. अहिल्या मिश्र ने बिहार नामक पुस्तक में बहुत महत्वपूर्ण आलेख लिखे हैं। लेखिका ने यहाँ की सभ्यता को सिन्धुघाटी की सभ्यता से भी प्राचीन बताया है। इसी प्रान्त में भगवान महावीर एवं महात्मा बुद्ध का प्रादुर्भाव हुआ था। यहाँ बोली जाने वाली, भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका एवं गथ्जका प्रमुख बोलिया हैं। लेखिका ने मिथिलांचल में मांछ मखाना और मगही जन की लोक जीवन में शुभसूचक महत्ता का प्रतिपादन किया है। लेखिका ने तीज त्यौहारों एवं लोक जीवन से संबंधित गीतों के उद्धरण भी दिये हैं। गांधी जी की चंपारण यात्रा एवं निल्हों के अत्याचारों के विरुद्ध आन्दोलन की विस्तार से चर्चा की है यही आचार्य कृपलानी ने सरकारी नौकरी छोड़कर बापू का साथ दिया। भारत के ईमानदार मानवतावादी एवं सच्चे राष्ट्र भगत प्रथम राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद के राजनैतिक जीवन की पृष्ठभूमि भी गाँधी जी के संपर्क में आने के बाद ही तैयारी हुई थी। राजेन्द्र बाबू के बारे में लेखिका ने लिखा है ‘‘जब उनकी वकालत में सोना बरसना था उसी समय उन्होंने वकालत छोड़ दी और गाँधी जी की पुकार पर स्वाधीनता आन्दोलन में कूद पड़े।’’

विदुषी लेखिका डाॅ. अहिल्या मिश्र ने बिहार के प्रमुख साहित्यकारों के विषय में विस्तार से कई आलेख लिखे हैं। मानवीय भावों के कुशल चितेरे रामवृक्ष बेनीपुरी 1921 में आप साप्ताहिक तरुण भारत के सहयोगी संपादक बने बाद में किसान मिश्र गोलमाल, शुवक, कैदी, जनता तूफान हिमालय, जनवाणी आदि को भी संपादन किया। 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी की ओर से बिहार विधान सभा के सदस्य चुने गये। आपने लगभग दो दर्जन पुस्तकें लिखी हैं जिनमें बगुला भगत चिता के फूल, लाखतारा, माटी की मूरत, गेहूँ और गुलाब शकुन्तला, रामराज्य आदि प्रमुख है। ये बिहार के कालजयी साहित्यकार थे। छायावादीतर कवियों में गीतकार गोपाल सिंह नेपाली कवि थे जो सर्वाधिक जनप्रिय रहे। अपने अनेक फिल्मों के लिए भी गीत लिखे हैं। उनकी ये अधोलिखित पंक्तियां खूब चर्चित रही हैं।

‘‘हम धरती क्या आकाश बदलने वाले हैं
हम तो कवि हैं इतिहास बदलने वाले हैं।’’

उर्वशी की कथा गाथा लिखने वाले प्रेम श्रृंगार एवं अध्यात्म की त्रिवेणी के महाकाव्य के रचयिता अपने समय के सूर्य श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिन्दी साहित्य के जाज्ज्वल्यमान नक्षत्र की तरह दमकते रहेंगे। कुरुक्षेत्र, उर्वशी, रश्मिमुखी परसुराम की प्रतीक्षा, रसवंती आदि आपकी प्रमुख काव्य कृतियां हैं तथा संस्कृति के चार अध्याय भारतीय अस्मिता का गौरव ग्रन्थ है। आप दो बार राज्य सभा के सदस्य रहे। बाबू जयप्रकाश नारायण के समग्र कान्ति के आन्दोलन के समय दिनकर जी की यह पंक्ति ‘सिहासन खाली करो कि जनता आती है। जन-जन की जुबान पर चढ़ गई थी। प्रख्यात प्रगतिवादी आलोचक डाॅ. नामवर सिंह को लिखना पड़ा था कि ‘‘विपद्यापति के बाद 600 वर्षों तक यह भूमि किसी महाकवि की प्रतीक्षा करती रही और वह दूसरा महाकवि दिनकर के रूप में उसे मिला।’

बाबा नागार्जुन का मूल नाम पं. वैद्यनाथ मिश्र था। वे कट्टरपंथी जाति व्यवस्था के घोर विरोधी थे। आपने मैथिली में अनेक उत्कृष्ट ग्रन्थों की रचना की है। आपने बौद्ध धर्म स्वीकार कर परिब्राजक के रूप में लंका आदि देशों की यात्रायें की है। आपने बलचनवा एवं वरुण के बेटे नामक उपन्यास भी लिखे जो आंचलित शैली के लिखे गये है उनकी रचनाएं दीन-दुखियों की पीड़ा को मुखर करती रहीं। वे व्यवस्था के विरुद्ध सदैव आवाज उठाते रहे। आपात काल में उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

मार्क्सवाद से प्रभावित होने के कारण वास्तविक जनकवि के रूप में प्रसिद्ध हुए। 

छायावादीतर कवियों में संत कवियों के रूप निराला के वास्तविक उत्तराधिकारी आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री जी अपने काल के प्रतिनिधि कवि ही अपने कविता, गीत, गीत- नाट्य कहानी, उपन्यास, नाटक आदि अनेक विधाओं में प्रचुर मात्रा में स्तरीय लेखन किया है।

संपूर्ण क्रान्ति के उद्घोषक बाबू जयप्रकाश नारायण के बिना बिहार की चर्चा कभी पूरी नहीं हो सकती। आपकी पत्नी महिला अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करने गाँधी जी के आश्रम में रहने लगी थीं। अतः दोनों संन्यासी सा जीवन व्यतीत करने गले इसीलिए आपकी कोई संतान नहीं हुई। समाज शास्त्र के आप गहन अध्येता थे। वे साम्यवादी विचार धारा के पोषक थे। 1974 में आपने बिहार में छात्र आन्दोलन की बुनियाद रख दी। आपके आन्दोलन से घबराकर श्रीमती इन्दिरा गाँधी ने 25 जून 1975 को आपात काल की घोषणा कर दी। रातों रात आपके सहित हजारों नेताओं को जेल में ठूँस दिया गया। आपात काल हटने पर आम चुनाव हुए। सभी विपक्षी दल जनता पार्टी के रूप में एक हो गये। कांग्रेस पराजित हुई। मोरार जी के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनी किन्तु परम त्यागी जयप्रकाश जी ने कोई पद नहीं लिया। वे चाहते तो प्रधानमंत्री अथवा राष्ट्रपति बन सकते थे। 8 अक्टूबर 1979 को पटना में आपका देहावसान हो गया।

‘बिहार’ नामक इस अनमोल ग्रन्थ में राजनैतिक सामाजिक एंव पत्रकारिता से जुड़े अनेक गौरवशाली अध्याय विदुषी लेखिका डाॅ. अहिल्या मिश्र ने खोज-खोज कर जोड़े हैं। बधाई, कृति शोधपूर्ण सामग्री से परिपूर्ण है।

पुस्तक ‘बिहारः साहित्यिक सांस्कृतिक

लेखिका डाॅ. अहिल्या मिश्र, प्रकाशक गीता पुस्तक केन्द्र हैदराबाद, मूल्य कुछ नहीं/पुस्तक अमूल्य है।

डॉ. अहिल्या मिश्र नामवर सिंह को पत्रिका भेंट करते हुए

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