‘बिहार साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत’

मंतव्य

डाॅ. हरपाल सिंह, -महामंत्री नागरी लिपी परिषद प्रधान संपादक नागरीलिपी नई दिल्ली

आपकी सद्य प्रकाशित कृति ‘बिहार साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत‘ प्राप्त कर हार्दिक प्रसन्नता हुई। बिहार के साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य को जानने के लिए यह एक महत्वपूर्ण कृति है। इसके प्रणयन के लिए आपको बहुत बहुत बधाई। आपका परिश्रम सफल एवं सार्थक है।

बिहार की साहित्यिक एवं राजनीतिक विभूतियों का परिचय विशेष उल्लेखनीय है। आपने इस पुस्तक को शोधपरक बना दिया है यद्यपि बिहार की लोक-संस्कृति को और भी विस्तार के साथ दिया जाता तो और भी उपादेयता बढ़ जाती। थोड़ा सा बज्जिका और अंगिका भाषा की जानकारी भी दी जा सकती थी। प्रवासी बिहारी, जो विदेश में रह कर हिंदी की सेवा (जैसे डॉ. विजय कुमार मेहता, न्यूयॉर्क) का भी उल्लेख किया जा सकता था। इसी प्रकार बज्जिका के साहित्यकार संपादक डॉ. ब्रजकिशोर वर्मा, अंगिका के डाॅ. रमेश बाबू शर्मा आत्मविश्वास और प्रख्यात राजभाषा हिंदी सेवी स्व जगदंबी प्रसाद यादव जैसे कुछ उल्लेखनीय लोगों के नाम छूट गए हैं। आप चूंकि हैदराबाद में रहतीं हैं, संभव है इनकी जानकारी आपको नहीं हो पाई होगी फिर भी जितनी जानकारी समेटी गई है, वह कम नहीं है। बिहार के साहित्य और संस्कृति पर शोध करने वाले छात्रों को विशेष रूप से महत्वपूर्ण सिद्ध होगी। मुखपृष्ठ विषय के अनुरूप है। छपाई त्रुटिरहित है। समर्पण विशेष आकर्षित करता है। इस आयु में आपने इतना महत्त्व पूर्ण कार्य संपन्न किया है, यह युवाओं के लिए प्रेरणास्पद है। इसका मूल्य उचित ही है।

पुनः इस महत्वपूर्ण एवं उपयोगी पुस्तक के प्रकाशन के लिए गीता पुस्तक केंद्र को विशेष बधाई। साभार।

सन् 2004 में संगोष्ठी में भाग लेती डॉ. अहिल्या मिश्र व अन्य अ. भा. कवयित्री सम्मलेन

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