भारत प्रेमी प्रोफेसर श्य्वे ख छयाओं का हिंदी में योगदानः एक विशेष आलेख

 समीक्षा

समीक्षक : डाॅ. अनिर्बाण घोष, मो. 09422905742

भारत प्रेमी प्रोफेसर श्य्वे ख छयाओं 

श्य्वे ख छयाओ का जन्म अप्रैल 1945 में चीन के ल्याओ निंग प्रदेश में ता ल्येन में हुआ था। बचपन से ही उनका भारत की लोककथा, इतिहास, भूगोल आदि विषयों के प्रति एक गम्भीर रूचि थी और वे भारत के बारे में जानना चाहते थे। हिंदी भाषा सीखने के बाद भारत के प्रति उनका आकर्षण और बढ़ गया था। लेकिन उनमें भारतीय भाषा हिंदी को सीखने की बचपन से उनका जिज्ञासा रही थी, क्योकि उनको बचपन से ही भारतीय कहानियाँ पढ़ने की शुरुआत हो गई थी। मिडल स्कुल का अध्ययन समाप्त होने के बाद उनका परिवार से जापानी भाषा पढ़ने के लिए उनको उतप्रेरित किया गया था, लेकिन सन्‌ 1964 में उन्होंने पीकिंग विश्वविद्यालय के पूर्वी एशियाई भाषा विभाग में हिंदी भाषा का अध्ययन शुरु किया था।  “मैंने सन् 1964 में हिंदी पढ़ने शुरु किया था पीकिङ विश्वविद्यालय में। “हमारे शिक्षक थे हिंदी के कई जानेमाने शिक्षकों जैसे प्रोफेसर चिन खमू, प्रोफेसर इन हुंग य्वान, प्रोफेसर ल्यु आनवू आदि। प्रोफेसर ची श्येनलिन संस्कृत के शिक्षक थे। सन्‌ 1966 में चीन में हुई में “सर्वहारा सांस्कृतिक आंदोलन” शुरु होने के कारण हमारे हिंदी अध्ययन में क्षति हुई। उसके बाद सन्‌ 1987 में भारत में आगरा स्थित केंद्रीय हिंदी संस्थान में छह महीने के लिए आये थे हिंदी सीखने के लिए”, यह बात उन्होंने  पीकिङ में सन्‌ 2017 की अक्टूबर महीने में एक खास बातचीत के समय कहा था ।    

दरअसल चीन में सन् 1942 से ही हिंदी का पढ़ाई शुरु हो गया था और पीकिंग विश्वविद्यालय में लगभग 1949 में हिंदी भाषा का अध्ययन-अध्यापन शुरु हुआ था। सन् 1960 तक पीकिङ विश्वविद्यालय में लगभग 100 से ज्यादा विद्यार्थी हिंदी भाषा एवं साहित्य अध्ययन कर चुके थे। उस स्मय पीकिङ विश्वविद्यालय में हिंदी के कई अध्यापक मजूद थे, जिनमे से चिन खमू थे, जिन्होंने पहले विश्वभारती शांतिनिकेतन में चीन भवन (सन् 1937 में स्थापित हुआ था) के विद्यार्थी रहे थे। पीकिंग विश्वविद्यालय के पूर्वी एशीयाई विभाग की स्थापना में प्रोफेसर चिन खमू एवं प्रोफेसर ची श्येनलिन का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इसके अलावा प्रोफेसर ल्यु कुओनान, प्रोफेसर ल्यु आनवू, प्रोफेसर इन हुंग य्वान आदि विद्वान भी पीकिंग विश्वविद्यालय के पूर्वी एशीयाई विभाग में मौजूद थे। लेकिन सन् 1960 के बाद भारत और चीन के बीच सीमा विवाद शुरु होने के कारण हिंदी विभाग में विद्यार्थियों की संख्या कम हो गए थे। सन्‌ 1966 में चीन में “सर्वहारा सांस्कृतिक आंदोलन” शुरु होने के कारण हिंदी अध्ययन छोड़कर श्य्वे ख छ्याओ मिडल स्कुल में काम करने चले गए जहाँ उन्होंने चीनी भाषा के शिक्षक के रूप में कुछ दिन काम किए। सन्‌ 1979 में चीनी समाज विज्ञान अकादमी में योगदान करने के बाद उनका हिंदी अध्ययन-अध्यापन फिर से शुरु हुया था और उन्होने सन्‌ 1982 में हिंदी में एम.ए. की पढ़ाई पुरी की थी। उनका शोध परियोजना कार्य था जयशंकर प्रसाद की कविता ‘कामायनी’ पर था और उनके शोध निर्देशक पीकिंग विश्वविद्यालय के वरिष्ठ हिंदी प्रोफेसर ल्यु कुओनान रहे थे। 

फोटोः पायतु वेवसाइट से लिया गया है।

हिंदी भाषा के उच्चतर अध्ययन के लिए उन्होंने सन् 1987 की अक्टूबर से सन् 1988 की मई महीने तक आगरा स्थित केंद्रीय हिंदी संस्थान में लगभग छह महीने हिंदी भाषा का गहन अध्ययन किया है। “आगरा में हम दोनों विद्यार्थी चीन से आये थे हिंदी सीखने। मेरे अलावा द्वितीय विद्यार्थी का नाम था छन कुआंगछाओ। भारत में हिंदी अध्ययन के साथ साथ बहुत पुस्तक मैं खरीदे थे जो चीन में ले गए। उसके बाद हिंदी - चीनी अनुवाद और अध्ययन के काम में डूब गए”, उनके साथ बातचीत के बाद यह जानकारी मिली थी। उन्होंने अपने कर्मजीवन में कई बार भारत भ्रमण किया था। सन् 1999 में वे दो हफते के लिए भारत दौरे पर गए। सन् 2000 की फरवरी से सन्‌ 2002 की फरवरी तक उन्होंने दिल्ली स्थित चीनी दूतावास में सांस्कृतिक विभाग में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इसके बाद सन् 2003 की जुलाई से सन् 2004 अगस्त महीने के बीच उन्होंने कई बार भारत दौरा किया है। सन् 2005 में चीनी समाज विज्ञान अकादमी से सेवा निवृत्त हुए प्रोफेसर श्य्वे ख छ्याओ ने अपना बहुमुल्य जीवन भारत एवं हिंदी भाषा को सेवा करने में समर्पित किया है। हाल ही में भारतीय तंत्रविद्या का अध्ययन में उनका काफी रुची है। सन् 2011 की मई में “भारत-चीन मैत्रीपूर्ण संबंध वर्ष” के उपलक्ष में कोलकाता स्थित चीनी कनस्युलेट कार्यालय द्वारा आयोजित उदघाटन समारोह में उनकी सक्रिय भागिदारी थी। सन् 2011 की 3 मई को कोलकाता स्थित टाउन हॉल में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने गुरुदेव के 150वीं जयन्ती पर आयोजित “रवींद्रनाथ टैगोर और मेइ लानफांग” शीर्षक विषय पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया था।  

 श्य्वे ख छ्याओ चीनी समाज विज्ञान अकादमी में वरिष्ठ शोध निर्देशक के रूप में दीर्घकाल कार्य किया था। उनके द्वारा प्रकाशित कई महत्वपूर्ण पुस्तकें है, जैसे ‘श्वान त्चांग’  (संयुक्त रूप से लेखन कार्य किया गया, सन् 1982), ‘छान थान’ (ल्याओ निंग जनवादी प्रकाशन संस्थान, सन् 1986)। इसके अलावा उन्होने कई हिंदी उपन्यासों को चीनी भाषा में अनुवाद किया है जैसे मुंशी प्रेमचंद की आत्मकथा ‘कलम का सिपाही’ (संयुक्त रूप से लेखन कार्य किया गया, क्यापिटाल नर्माल विश्वविद्यालय प्रेस, सन् 1989), फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास ‘मैला आँचल’ (शांग हाई अनुवाद प्रकाशन संस्थान, सन् 1994), चीन-भारत संस्कृति से संबंध ‘बौद्धधर्म एवं चीनी संस्कृति (ओवरसीज चीनी प्रकाशन संस्थान, सन् 1995), ‘चीन एवं दक्षिण एशीयाई देशों के बीच सांस्कृतिक संबंधों पर आलेख’ (शांगहाई जनवादी प्रकाशन संस्थान, सन् 1998), ‘चीन-भारत सांस्कृतिक संगम का कहानी’ (कमर्शियल प्रेस, सन् 1999), भारतीय लोक साहित्य तथा इसके अलावा शाक्यमुनि के उपर एक डक्युमेंटरी की स्क्रिप्ट तैयार की गई थी। इसके अलावा सन् 2010 में 12 जून को पेईचिंग स्थित भारतीय दूतावास ने उनको विशेष सम्मान प्रदान किया था, और उस कार्यक्रम में उन्होंने “मेरे नजर में भारतीय लोग” शीर्षक विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया था। उन्होंने 2014 में भारत और चीन दोनों देशों के विद्वानों के द्वारा प्रकाशित ‘भारत - चीन सांस्कृतिक संबंध का शब्दकोश’ प्रकाशित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसके अलावा उनके कई सारे अकादमिक शोधपत्र समय- समय पर प्रकाशित हुए है। प्रोफेसर छ्याओ ने चीनी समाज विज्ञान अकादमी से सेवा निवृत्त होने के बावजूद अपने अनुवाद एवं लेखन कार्य में अभी भी अत्यंत व्यस्त रहते हैं। पिछले दो दशक भारत में चीनी अध्ययन का विकास होने के साथ साथ चीन में भी भारतीय भाषाओं जैसे हिंदी, बंगला, तामिल आदि का अध्ययन बढ़ता जा रहा है । अभी ज्यादा से ज्यादा नई विद्यार्थियों ने इन भाषाओं को रोजगार मिलने की उम्मीद से अध्ययन कर रहे है। 

प्रोफेसर श्य्वे ख छ्याओ की संघर्ष पूर्ण जीवन एवं अध्ययन-अध्यापन के द्वारा हिंदी भाषा के प्रति योगदान चीन में हिंदी भाषा चर्चा में निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाया है। प्रोफेसर ची श्येनलिन, चिन खमु, ल्यु आनवू, चिन तिंगहान और हाल में प्रोफेसर च्यांग चिंगखोए जैसा विद्वानों के तरह चीन में भारतीय परंपरा, भाषा, साहित्य और संस्कृति चर्चा में उनका भी बहुत बड़ा योगदान रहा है। उनका पत्नी पीकिंग विश्वविद्यालय में उनके साथ काम करते थे, अपने परिवार में उनका एक कन्या है और पीकिंग में एक साधारण कमरा में रहते है। अब तक उनके हाथ में स्मार्ट फोन नहीं रहता है, ऐसा ही सरल एवं साधारण जीवन है। अपने जीवन के स्वर्णिम समय को भारतीय हिंदी भाषा के प्रति समर्पित कर दिया है प्रोफेसर श्य्वे ख छ्याओ ने।    

’यह आलेख अक्टूबर 2017 एवं नवंबर 2018 में पेईचिंग में प्रोफेसर श्य्वे ख छ्याओ के साथ खास बातचीत के उपरांत तैयार किया गया है। लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) में चीनी भाषा के सहायक प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है।      

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