डाॅ. अहिल्या मिश्र: एक गतिशील व्यक्ति

मंतव्य


डाॅ. शिव शंकर अवस्थी, -महासचिव, ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंण्डिया

डाॅ. अहिल्या मिश्र का नाम जैसे ही मेरे सामने आता है, उनके बहुत सारे रूप मेरे सामने आ जाते हैं। वे एक उत्कृष्ट साहित्यकार हैं, उन्होंने गद्य, पद्य, निबंध और अन्य विधाओं को अपनी लेखनी में समाहित किया है। वे एक सफल सम्पादक भी हैं और उनकी ‘साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सृजनात्मक अभिव्यक्ति की त्रैमासिक पत्रिका-पुष्पक साहित्यिकी में उनके सम्पादन कौशल्य को बड़े स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। वे शैक्षिक क्षेत्र में भी बहुत सक्रिय हैं और दो-दो विद्यालयों का संचालन कर रही हैं। वे सामाजिक कार्यकत्र्ता भी हैं। और हैदराबाद की अनेक संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं। साहित्य और सामाजिक क्षेत्रों में उनकी सेवाओं को समाज ने भी स्वीकार किया है। इसलिए बहुत सारे पुरस्कारों से वे नवाजी गई हैं। ऐसा बहुआयामी व्यक्तित्व बहुत ही कम महिलाओं में देखने को मिलता है इसलिए मैं उन्हें कई बाद चकित निगाहों से निहारता हूँ कि क्या एक महिला इतने सारे रूपों को इतनी सरलता से आत्मसात कर सकती हैं ?

डाॅ. अहिल्या मिश्र से मेरा परिचय माॅरीशस यात्रा के दौरान हुआ था। बात बहुत पुरानी है, 1988 के आसपास की। हम लोग माॅरीशस यात्रा पर गए थे। शाम को काव्य कोष्ठी का आयोजन था। अहिल्या जी की कविता से कार्यक्रम शुरु हुआ। माॅरीशस बासी भोजपुरी, मैथिली अच्छी तरह से समझते थे, उनके पूर्वजों को अंग्रेज जबरदस्ती गन्ने के खेतों में काम कारवाने के लिए ले गए थे। अहिल्या जी की भोजपुरी, मैथिली बोली सुनकर उन्हें अपना वतन याद आ गया। रोचक बात तो यह है कि इन माॅरीशस वासियों ने अभ भी अपनी हिन्दुस्तानी संस्कृति को गले लगा रखा है। खूब तालियाँ बजीं और अहिल्या जी किसी स्टार के रूप में उभरीं। इस प्रकार से काव्य कोष्ठी का प्रारंभ अत्यंत सफलतापूर्वक हुआ। फिर मेरा नम्बर आया। मैंने एक हास्य कविता सुनाई। इस कविता में मैंने विवाह को मीठा-मीठाा लड्डू कहा था।

बस क्या था! अहिल्या जी को मौका मिल गया और उन्होंने मेरा नाम लड्डूू जी रख दिया। मैं उन्हें आंटी कहता था और वे मुझे बड़े प्यार से लड्डूू जी पुकरती थीं। तब मुझे अहिल्या जी का एक गुण बहुत अच्छा लगा था। बात-बात पर हँसना और हँसाना। इस गुण से वे सबका दिल जीत लेती हैं। लड्डू और आंटी का रिश्ता समूची माॅरीशस यात्रा के दौरान रहा फिर समय की गहराईयों में खो गया जिन्दगी में बहुत लोग मिलते हैं, बहुत सारे बाद में नहीं मिलते लेकिन कुछ मिल जाते हैं।

सौभाग्य से ईश्वर ने मिलने का सिलसिला तय कर रखा था। जब मैंने ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव का उत्तरदायित्व संभाला, तो नागपुर में गाँधी, अम्बेडकर और साहित्य पर अधिवेशन का आयोजन हुआ। इसी वार्षिक अधिवेशन में अहिल्या जी से पुनः मुलाकात हुई। माॅरीशस और नागपुर के बीच काफी कुछ हो चुका था। पता चला कि अहिल्या जी कैंसर से पीड़ित रहीं, ऑपरेशन करवाया और कैंसर पर विजय प्राप्त कर वापिस ‘फाॅर्म’ में आ चुकी थीं।

यह भी सत्य था कि अब बहुत कुछ बदल चुका था। हम अब एक विशेष उत्तरदायित्व के साथ मिल रहे थे। ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का सुनहरा अतीत था, उस सुनहरी विरासत को संजोते हुए आगे संगठन को मजबूत करना था। और अहिल्या जी ने इस उत्तरदायित्व को बखूबी संभाला। विभिन्न भाषाओं व क्षेत्रों के लेखकों को ऑथर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया के झण्डे तले लाने में अहिल्या जी ने पहल की। वे हैदराबाद चैप्टर की संयोजिका थी। सबसे पहले तो उन्होंने इस चैप्टर में नए लेखकों की भर्ती की, उसका विस्तार किया और नए-नए कार्यक्रमों की श्रृंखला से चैप्टर पर चार चांद लगा दिए। हैदराबाद के अलावा उन्होंने दिल्ली, आगरा, गोवा आदि से भी नए होनहार लेखकों को उन्होंने संगठन में शामिल करवाया। अभी कुछ समय पहले ही ऑथर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया का कर्नाटक चैप्टर भी खुला है, कुछ समय पहले ही उसका उद्घाटन हुआ। इस चैप्टर के निर्माण में भी अहिल्या जी की 

प्रेरणा थी। कर्नाटक चैप्टर की संयोजिका डाॅ. उषारानी राव अहिल्या जी की बहुत आदर करती हैं और उन्हीं के आशीर्वाद से उन्होंने कर्नाटक में चैप्टर खोलने के लिए कार्य करना शुरु किया और अब चैप्टर बन जाने के बाद उसे एक सशक्त चैप्टर बनाने का बीड़ा डाॅ. उषारानी राव ने उठाया है। अपने लक्ष्य के प्रति निष्ठा और कार्य के प्रति प्रतिबद्धता अहिल्या जी में भरपुर है।

हैदराबाद में आॅथर्स गिल्ड आॅफ इण्डिया का अधिवेशन 2015 में हुआ। इस आयोजन को सफल बनाने में अहिल्या जी ने कोई कसर नहीं छोड़ी। इस वार्षिक अधिवेशन में देश के विभिन्न भागों से आए 180 लेखकों ने भाग लिया। पुस्तक संवर्द्धन-समस्याएं एवं संभावनाएं पर आयोजित इस अधिवेशन में मंच पर राजनैतिक एवं साहित्यिक जगत की अनेक हस्तियां मौजूद थी। सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं गोवा की तत्कालीन राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा, तेलंगाना के तत्कालीन गृहमंत्री श्री नयनी नरसिम्हा रेड्डी, सुलभ इण्टरनेशन तथा आॅथर्स गिल्ड आॅफ इण्डिया के अध्यक्ष पद्य विभूषण डाॅ. विन्देशवर पाठक, जाने माने तेलुगु कवि एन. गोपी, ऊर्दू की प्रसिद्ध लेखिका पद्मश्री जीलानी बानों जैसे ऐसे माननीय व्यक्ति ये जो कि अधिवेशन अत्यंत ही सफल रहा, जिसका श्रेय आदरणीय अहिल्या जी को ही जाता है।

अहिल्या जी की सफलता के पीछे उनकी ममत्व की भावना है। खूब प्रेम बांटती हैं और उनकी इस भावना को मिलने वाला बड़ी सरलता से महसूस करता है लेकिन इस ममत्व के साथ उनके स्वभाव की दृढ़ता भी है जिसके कारण से वह निर्णय लेने में देरी नहीं करतीं। ऑथर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया के हैदराबाद चैप्टर की यह विशेषता है कि इसमें महिलाओं की बहुतायत है और सभी महिलाएं अहिल्या जी के नेतृत्व में मिलकर काम करती हैं- अहिल्या जी से प्यार मिलता है तो डांट भी और आश्चर्य यह कि डांट को हंसते हुए अथवा मौन रह कर सह लेते हैं। बुरा कोई इसलिए नहीं मानता क्योंकि उन्हें पता है कि इस क्रोध के पीछे ममत्व छिपा है। क्रोध न तो सीमा पार करेगा और न ही अधिक समय तक रहेगा। बहुत जल्दी सब कुछ स्वाभाविक हो जाएगा। 

ऑथर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया के हैदराबाद चैप्टर की यह विशेषता है कि इसमें महिलाओं की बहुतायत है और सभी महिलाएं अहिल्या जी के नेतृत्व ऑथर्स गिल्ड और इण्डिया के हैदराबाद चैप्टर के साथ अहिल्या जी का नए विशेष संबंद्ध है। उन्होंने उसे स्थापित किया, तब बड़े ही भव्य ढंग से चैप्टर का उद्घाटन हुआ था। तब ऑथर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया के महासचिव मेरे पिता जी अर्थात् डाॅ. राजेन्द्र अवस्थी थे। अभी पिछले वर्ष ही हैदराबाद चैप्टर की ही एक जयंती मनाई गई। उल्लेखनीय बात तो यह है कि कार्यक्रम दो अन्य संस्थाओं से मिल कर किया गया था और इस सभी संस्थाओं की स्थापना भी अहिल्या जी ने की थी। ये थीं साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति तथा कादम्बिनी क्लब। साहित्य गरिमा पुरस्कार समिति के अन्तर्गत प्रत्येक वर्ष किसी साहित्यकार को उसकी उत्कृष्ट रचना के लिए पुरस्कृत किया जाता है जबकि कादम्बिनी क्लब के अन्तर्गत साहित्यिक गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है। ऑथर्स गिल्ड ऑफ इण्डिया का हैदराबाद चैप्टर की रजत जयंती के अवसर पर सम्मानीय अतिथि के रूप में मुझे भी शामिल होने का गौरव प्राप्त हुआ। यह अत्यंत ही भव्य कार्यक्रम था। इस अवसर पर कवयित्री पंखुरी सिन्हा भी उपस्थित थीं। साहित्य और साहित्यकार पर चर्चा हुई जिसका सभी उपस्थित लेखक बंधुओं ने भरपूर मज़ा लिया। परस्पर संवाद भी हुए जिससे वर्तमान साहित्यिक स्थिति और लेखकों के बीच गुटबाजी और तनाव से साहित्य की क्षति पर प्रकाश डाला गया। सबसे महत्वपूर्ण बात रजत जयंती की यह थी कि इसमें ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के पूर्व महासचिव तथा कादम्बिनी के पूर्व संपादक डाॅ. राजेन्द्र अवस्थी के साहित्यिक अवदान पर खुल कर चर्चा हुई। कुल मिला कर इस कार्यक्रम ने हैदराबाद के साहित्यिक तथा बौद्धिक मंच पर धूम मचा दी। कार्यक्रम की सफलता के लिए मैंने अहिल्या जी और उनकी सहकर्मियों को हार्दिक बधाई दी। 

ईश्वर ने अहिल्या जी को भरापूरा परिवार दिया है। उनके पुत्र मानवेंद्र मिश्र बहुत ही संस्कृतिवान हैं, सब उन्हें प्यार से गुड्डु जी के नाम से पुकारते हैं। गुड्डु जी अपनी माँ के प्रति पूर्ण तौर से समर्पित हैं और उनके प्रत्येक कार्य अथवा कार्यक्रम में उनकी दिल से भागीदारी होती है। वे स्वयं व्यवसायी हैं लेकिन हैदराबाद के सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन में आगे बढ़कर भाग लेते हैं। अहिल्या जी की बहू आशा मिश्र अर्थात् मुक्ता जी भी अहिल्या जी की भांति न केवल विदुषी हैं बल्कि सास जी के साथ उनके कार्यों में बड़ी उत्साह व लगन से कार्य कर रही हैं। उनका पोता आयर्व मिश्र खिलाड़ी हैं और मेधावी छात्र भी। उसका बिट्स पिलानी में चयन हो गया है। पोती अक्षीती छोटी है, स्कूल में पढ़ रही है। वह जिमनास्टिकम भी है। और अनेक पुरस्कार जीत चुकी चुकी हैं। घर में अहिल्या जी के देवर की सुपुत्री भी हैं जिन्हें पूरा परिवार बेटी की तरह प्यार देता है। दिव्या को प्यार से घुंघरु पुकारते हैं और इंजिनियरिंग करने के पश्चात वह पेरिस से एम.बी.ए कर रही है। सभी अहिल्याजी के कार्यक्रम में पूरे उत्साह से भाग लेते हैं। मैं इस परिवार को आदर्श भारतीय परिवार के रूप में देखता हूँ।

इन दिनों अहिल्या जी के व्यक्तित्व में एक नया निखार आ रहा है और हम उसमें एक नए रूप को पाते है। वह है चिन्तक का। मेरे सामने पुष्पक साहित्यिकी पत्रिका का जनवरी-मार्च 2020 का अंक है जिसमें लेखिका ने ‘चिंतन के क्षण’ कालम में आकाश और अवसर पर अपने हृदय के द्वार खोलने का सफल प्रयास किया है। उनका मानना है कि आकाश और अवसर दोनों की आपके निकट होते हुए भी एमदम से दूर भाग सकने का सामथ्र्य रखते हैं। इसलिए वे सावधान करती हैं - "सावधान रहिए अपने अवसर को पहचानिए। इसे हाथ बढ़ाकर पकड़ लीजिए और इसके साथ आकाश की और दौड़ लगा लिजिए।"

उनकी एक कविता ‘शब्दों का सौदागर’ हमें बहुत पसन्द है। इस कविता में मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक विसंगतियों का मार्मिक वर्णन है।

आजकल औरों की तरह 

बोलने लगी हूँ मैं,

जुबां के बंद ताले

खोलने लगी हूँ मैं

जी हाँ हुजूर, अब तो

बोलने लगी हूँ मैं

शब्दों की गुफाओं में

अपने को तौलने लगी हूँ मैं’’।

मैं ईश्वर से अहिल्या जी के लिए शतायु की कामना करता हूँ।           





संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में तुलसीदास के सामाजिक चिंतन पर आयोजित दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल के साथ विशिष्ट अतिथि के रूप में भाग लेते हुए डाॅ. अहिल्या मिश्र

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