डाॅ. अहिल्या मिश्रा: त्याग और समर्पण की प्रतिमूर्ति

 मंतव्य

ज्ञानचंद मर्मज्ञ, कवि, लेखक, संपादक, अध्यक्ष: साहित्य साधक मंच बैंगलोर
पूर्व सदस्य, टेलीफोन सलाहकार समिति, बैंगलोर, भारत सरकार, 
मो.: 9845320295, marmagya.g@gmail.com

दक्षिण भारत की सुप्रसिद्ध साहित्यकार, अग्रणी  हिंदी सेवी व समाज सेविका डाॅ. अहिल्या मिश्रा जी से कई साहित्यिक कार्यक्रमों में मिलने का सुवसर प्राप्त हुआ है। मैं उनसे जब भी  मिला हूँ, मेरा साक्षात्कार एक ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व से हुआ है, जिसकी जीवंतता उसकी विनम्रता, जीवटता और समर्पण के रूप में प्रतिध्वनित होती है। मंचों से उनका तेजस्वी उद्बोधन इस बात का प्रमाण होता है कि उनके शब्द प्राणवान हैं। उनके उद्बोधन में उनके विश्वास की तेजस्विता सत्य का सम्बोधन और समय की पदचापों की अनुगूंज बन कर मुखरित होती है। जीवन की यात्रा में हमें अनेक रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है। यही रास्ते हमारे भविष्य की संभावनाओं को तय करते हैं। समयानुसार सही विकल्प का चुनाव हमारे सपनों को नई दिशा और गति प्रदान करता है तो गलत चुनाव हमें ठहरने पर विवस कर देता है। ठहरा हुआ जीवन जीवन पर्यन्त स्वयं की परिधि नापने में ही बीत जाता है। डाॅ. अहिल्या मिश्र जी ने अपने जीवन में उस कठिन विकल्प का चुनाव किया। जिसे अंगीकार करने का साहस कम ही लोग कर पाते हैं। उन्होंने पर्वत की तरह अपनी ऊंचाई से आकाश को नापने का विकल्प नहीं चुना बल्कि नदी की तरह तरल होकर बहने का संकल्प लिया। किसी व्यक्ति के विचारों में इतना प्रवाह, प्रकृति में इतनी विनम्रता और आचरण में सेवा भाव की प्रचुरता नदी का ही सौंदर्य गुण हो सकता है। वे नदी की भांति तरल और सरल तो हैं ही परन्तु जीवन के झंझावातों से जूझते हुए अपने गंतव्य की तरफ बढ़ते चले जाने की जिजीविषा उन्हें विशेष बनाती है। वे अहिल्या अवश्य हैं परन्तु अहिल्या की तरह पत्थर में ढल कर मौन रहना उनके प्रकृति में नहीं है। वे इस तथ्य को जानती हैं कि चाह कर भी बहना सबके लिए संभव नहीं है। बहना केवल नदी के भाग्य में होता है जो अपने रास्ते  में आने वाले पत्थरों के खुरदुरे स्वभाव और नुकीले अहंकार को प्रेम से सहला कर सुडौल बना देती है। पत्थर कभी नहीं बहते, उनकी किस्मत में तो टूट कर बिखर जाना होता है।  

मानवीय सन्दर्भों के प्रति डाॅ. अहिल्या मिश्र जी की  संवेदनशीलता और लोक संसिक्त विचार उनके सामाजिक कार्यों को अति विशिष्ठ मानव-सेवा के रूप में प्रतिष्ठापित करते हैं। उन्होंने  लगभग 10 हज़ार आर्थिक रूप से कमजोर बच्चो को शिक्षित कर उनके जीवन में नया सूरज उगाने का अभूतपूर्व कार्य किया है। ये बच्चे न केवल अपने जीवन को बेहतर बनाने में सक्षम होंगे बल्कि सभ्य, सुसंस्कृत होकर राष्ट्र निर्माण में भी अपनी महती भूमिका निभा सकेंगे। सच कहें तो शिक्षा सबसे बड़ा मानव धर्म है जो पीढ़ियों को संस्कारित कर विनयशीलता प्रदान करती  है। शिक्षा जहाँ हमें नई सोच की शक्ति देती है, वही हमारी सोच को परिष्कृत भी करती है। सकारात्मक ऊर्जा के केंद्र में स्थापित विचारों की गरिमा भी हमें हमें शिक्षा से ही प्राप्त होती है। इस तरह नई पीढ़ी को शिक्षित कर डाॅ. अहिल्या मिश्रा ने समाज सेवा का उत्कृष्ट एवं अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है जो राष्ट्र निर्माण की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान है। 

साहित्य की अनेक विधाओं को अपनी लेखनी से समृद्ध करने वाली अप्रतिम साहित्यकार डाॅ. अहिल्या मिश्र जी का हिंदी के प्रति समर्पण प्रणम्य है। हिंदी के प्रति जब उनके विचार शब्द रूप लेते हैं तो ऐसा लगता है जैसे हिंदी स्वयं अपनी पीड़ा व्यक्त कर रही है। डाॅ. अहिल्या मिश्र ने हिंदी के दर्द को जिया है। उनके संस्पर्श की अनुभूतियाँ ही उनके विचारों में उद्घाटित होती हैं। भाषा का उपयोग तो सभी लोग करते हैं परन्तु उसकी पीड़ा को कम ही लोग महसूस कर पाते हैं और जो महसूस कर लेते हैं, उनके लिए भाषा को संरक्षित करने से लेकर उसके संवर्धन की चिंता प्रति पल बलवती होती जाती है। यह कार्य वैसा ही है जैसे पाँवों में नूपुर की जगह छालों का चयन करना। दक्षिण  भारत में राष्ट्र भाषा हिंदी के प्रचार प्रसार का अध्याय डाॅ. अहिल्या मिश्र के बिना अधूरा ही रह जाता। भाषा का प्रचार एक ऐसा अभियान है, जिसके लिए असाधारण त्याग की आवश्यकता होती है। यह दुष्कर कार्य वही कर पाते हैं, जो जीवन के अभिप्राय को अपनी सांसों में ढाल सकने का सामथ्र्य रखते हैं। डॉ. अहिल्या जी के जीवन का हर आयाम मानवीय संवेदना का पर्याय है, जहाँ समय की अनुभूतियों  के साथ समाज, भाषा और राष्ट्र के स्वर गुंजायमान होते हैं। इतने सारे मानवीय आयामों को एक साथ जीने वाली डाॅ. अहिल्या जी का जीवन स्वयं एक उदाहरण है, जो आने वाली पीढ़ियों को सदा उत्प्रेरित करता रहेगा। हिंदी के संवर्धन की दिशा में डाॅ. अहिल्या मिश्र का समर्पण निश्चय ही अतुलनीय है।  

डाॅ. अहिल्या मिश्र जी का विपुल साहित्य संसार उनके व्यक्तित्व का शाश्वत दर्पण है। उनके साहित्य के अनगिनत अध्याय उनके जनवादी विचारों को विस्तार देते हैं। अहिल्या जी के लिए जीवन जीना अगर उम्र के गणित का हिसाब किताब रखना होता अथवा सांसों की लम्बाई का लेखा जोखा होता तो आज दक्षिण भारत के फलक पर उगा हुआ सूरज अपनी किरणों के पंख नहीं फैला पाता। अहिल्या जी का जीवन उद्देश्य की प्रतिवद्धता के संकल्प से अनुप्राणित है जिसमें मातृभूमि,मातृभाषा, मानवता और समय की सार्थक प्रतिध्वनि समाहित है। बात चाहे नारी अस्मिता को हो या फिर अन्य सामाजिक विसंगतियों की, अहिल्या जी की लेखनी ने हमेशा उन्हें सांसो साँस जिया है। अनेक राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से विभूषित होने के बावजूद आज तक उनकी विनम्रता के धवल रंग पर कोई अन्य रंग नहीं चढ़ सका क्योंकि उनके समर्पण भाव में मानवीय मूल्यों के प्रखर चिंतन का विराट रंग भी है। डाॅ. अहिल्या मिश्र जी उन लोगों के लिए सपनों का इंद्रधनुष बुनती हैं, जो रंगों के व्याकरण से अनभिज्ञ होते हैं। अपने हिस्से की चटकती धूप के रंगों से दूसरों के सपनों को रंगने वाली डाॅ. अहिल्या वस्तुतः समर्पण और त्याग की प्रतिमूर्ति हैं। अहिल्या मिश्र जी ने जिन सार्थक रंगों के सूरज को सामाजिक अनुशीलन के आकाश में बोया है, उसी की रश्मियां उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व की आभा को सुशोभित करती हैं।

मैं उनके दीर्घायु होने की कामना करता हूँ। 

अशेष शुभकामनाओं के साथ:-

सन् 27 जनवरी 2005 में प्रसिद्ध उपन्यासकार लेखिका अलका सरावगी के साथ ज्योति नारायण, 
संपत देवी मुरारका, डाॅ अहिल्या मिश्रा व डॉ. रमा द्विवेदी कादम्बिनी क्लब की सदस्यायें 

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