नीर-प्रीति का बरसा दो
निशा नंदिनी भारतीय, तिनसुकिया, असम, मो. 9435533394
गीत गाते गुनगुनाते
वेदना को तुम सुला दो।
दीन-अकिंचन के जीवन में
नीर-प्रीति का बरसा दो।
झोंपड़ी में बैठा एक
तरस रहा दाने-दाने को
दूजा बैठ महल के अंदर
ऊब गया उस खाने कोे।
सब उसकी ही लीला है
उस लीला में जीवन भर दो
दीन-अकिंचन के जीवन में
नीर-प्रीति का बरसा दो।
चू रहा फूस का छप्पर
ठिठुर-ठिठुर कर गई यामिनी।
स्वर्ण नक्काशी के बिछावन
क्षण एक न नयन लगे।
सब उसकी ही रचना है
उस रचना की झोली भर दो।
दीन-अकिंचन के जीवन में
नीर-प्रीति का बरसा दो।
भिक्षा पात्र लिए हाथ में
घूम रहा वो देखो दर-दर।
सैर सपाटे को दुनिया की
उड़ चला वो पंख लगाकर।
सब उसका ही अभिनय है
उस अभिनय में आसव भर दो।
दीन-अकिंचन के जीवन में
नीर-प्रीति का बरसा दो।
गीत गाते गुनगुनाते
वेदना को तुम को सुला दो।
दीन-अकिंचन के जीवन में
नीर-प्रीति का बरसा दो।