मेरा शहर


मेरा शहर

कुछ दिन पहले मेरे बेटे ने 

मुझ से पूछा 

‘माँ तम्हारा शहर कैसा था?‘‘ 

कुछ सोचकर मैंने कहा-

‘‘बेटे तुम्हारे सपनों जैसा था।‘‘ 

फिर कुछ सोचकर उसने पूछा-

‘‘वो शहर तुम्हारा, जिसका नाम सुनते ही 

तुम खुश हो जाती हो, 

दूर कहीं खो जाती हो,

क्या अब भी वो वैसा ही है?‘‘ 

‘‘नहीं अब उसके मुँह पर 

कुछ खरोंचें उभर आई हैं। 

सुना है, सुबह-सवेरे सूरज 

जब वहाँ बिगुल बजाता है 

तो मेरे उस शहर में युद्ध का सा कोहराम मच जाता है 

चीखों और चीलों से आकाश छलनी हो जाता है। 

नजर नहीं आता अब वहाँ नील गगन 

हर तरफ होती हैं चीखें, शोर, घुटन 

सुना है हर शाम वहाँ मरघट सुलगता है 

और हर रात वो दर्द में सिसकता है। 

कहते हैं शहर रह गया है 

कुछ खोई सी आवाजों का 

कुछ टूटे-फूटे साजों का 

खोए हुओं की भीड़ अब भी 

अमीराकदल पुल से गुजरती है। 

कुछ जले-बुझे अरमानों की राख बिखेरती है। 

आया है वहाँ कहर कोई।

हर तरफ फिजाओं में 

घुल गया है जहर कोई।‘‘ 

मेरा बेटा कुछ देर चुप रहा 

फिर बोला‘‘तुम कहा करती थी तुम्हारे शहर में 

एक दरिया भी बहता है।‘‘ 

‘हाँ बेटे-शहर के बीचो-बीच 

दरिया-ए-जेहलम अब भी बहता है।‘‘ 

‘‘कब जाओगी तुम अपने शहर।‘‘ 

मैं कुछ देर खामोश रही 

फिर कहा उसको-

“अभी तो जेहलम का सारा पानी 

आग पे काबू पाएगा 

तो तू भी मेरे साथ मेरे शहर जाएगा।‘‘



और जेहलम तुम बहते रहे...

दरिया-ए-जेहलम 

मैं तुम से मुखातिब हूँ। 

सदियों से तुम जी रहे हो 

साधू-सन्तों के सपनों में 

देवताओं की आरजूओं में 

श्रद्धा से जुड़ी लोगों की अंजुलियों में। 

कई कहानियाँ हैं तुम्हारे आने की...

‘‘वैरीनाग से फूट गए, खुशाब से हो कर गुजरने की 

चट्टानों को तोड़ने और पत्थरों को गढ़ने की

और तुम लगातार बह रहे हो। 

सदियों से तुम ने देखे हैं नगर बसते और उजड़ते 

देखी है तुम ने जंग और तबाही

सच और झूठ की लड़ाई। 

सूरज हर तरफ उगता रहा 

और तुम्हारे पानी में डूबता रहा 

तुम्हारे पानियों से टकराई आवाजें 

आजान और देव घंटियों की 

तुम्हारी गति में उभरते-डूबते रहे लोगों के सुख-दुःख 

उनके सपने कमल बन कर तैरते रहे तुम्हारी लहरों पे

और तुम बहते रहे... 

जेहलम तुम सभ्यता और इतिहास की गवाही हो 

तुम समय से परे बहते रहे हो 

तुम्हारे लिये कुछ भी अजीब नहीं 

न मौत न जीवन, न शाप न वरदान 

न दुआएँ, न मनौतियाँ 

न कोयल की कूक का बंद होना 

न चाँद का मध्म पड़ना 

न काँगड़ी की आग का ठण्डा होना 

न विरहन का चिता होना।

आज तुम्हारे किनारों पर उल्टे पड़े हैं शिकारे, 

मुरझाए वासी फूल 

टूटी पतबारें

लवारिस लाशें। 

जाड़े की हाड़ कंपाती रातों में, तुम्हारे स्याह पानियाँ में 

प्रतिबिम्बित हो रही हैं आग की लपटें

और तुम निरंतर बह रहे हो। 

तुम बहते रहो...तुम बहते रहोगे 

तुम्हारे पानी में अभी बहुत धार है 

और अभी तुम्हारे किनारे हकतलफी और 

बेइंसाफी के अंबार है। 

जब तक समय का इन्साफ न हो जाए

तुम्हें बहते रहना होगा

यूंहि लगातार...


रानी नगिन्दर, 138-43 UNION TPKE, KEW GARDENS HILLS, YEW YORK, NY 11367-3250 (USA)

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