कुपवाड़े से भागे वे लोग


(1)

कोई नहीं जानता उसे यहाँ

उसके नाम से

जो बैठी है गुमसुम

लकड़ी के बोटे पर वहाँ,

आरे-मशीन में

काट-डाला गया बेटा जिसका

उसकी पहचान

बस इतनी ही है यहाँ।

(2)

उस रात

जब वे छोड़ कर भागे थे

अपना गाँव घर

धुंधआते चूल्हे

और अधपकी रोटियाँ

कौन आये थे उस रात की पहली रात

उनके घरों में?

और उस रात के बाद

उन्होंने नहीं खोली थी खिड़कियाँ

अपने-अपने घरों की

वे अभी कह भी नहीं पाये थे कि

उस रात के बाद

वे क्यों नहीं देख पाये थे

अपनी लड़कियों की आँखों में

कि एक चिनार अरअराता हुआ गिर पड़ता है।

वे आखिर नहीं ही कह पाये बात

अपनी।

(3)

उनकी स्मृतियों में है...

उनका घर

और घर के पिछवाड़े खिला अकेला फूल।

और वह तख़्त

जिसे भागते वक्त

घर के बाहर बारिश में भीगता

वे छोड़ आये थे उस रात।

उनकी स्मृतियों में है और

उनके संवाद, कहकहे और मीठी धूप

और वह सब

जिन्हें वे नहीं ला सके साथ अपने

और उन्हें

जिनकी उंगलियाँ पकड़

वे चारागाहों में

दूर-दूर तक दौड़ते चले जाते थे कभी

बर्फ पिघलने के बाद के दिनों में।

(4)

उनकी जड़ों में

घोल दी गई बारूद

और वे ज़मीन से अलग हो गए

किसी ने उनके कानों में

जाने क्या कह दिया

और वे ज़मीन से अलग हो गए।

बर्फीली आंधियाँ कहरी

और टूट गये चिनार

कहाँ जायेंगे

सूखेंगे

जलेंगे

जानते हैं हम भी

उनकी तरह

जानते हैं हम भी

उनकी राख फिर भी लौटना चाहेगी

अपनी घाटियों में ही

(5)

तम्बुओं के बाहर खेलती लड़की

नहीं आई पास हमारे,

लाख हमारे बुलाने पर भी

नहीं आई।

वह भाग कर

अपने तम्बू के दरवाजे पर

रस्सियाँ पकड़ कर खड़ी हो गई।

मानो नहीं घुसने देगी वह

किसी को भी अब,

अपने घर में।

जिन्हें नहीं पहचानती वह

वे अजनबी चेहरे

अब नहीं रौंद सकेंगे

उस का

यह घर।

(6)

कुछ लोग जो मिलते हैं

वहाँ फिर भी

बड़े खूलूस से

मानों

भय को पराजित कर आये हों वे

चीड़ों की मज़बूती लिये

अखरोट की लकड़ियों की तरह कोमल

वे लोग।

(7)

उनके घर आई है दुल्हन

अपने तम्बू से

मात्र दस कदम चलकर

अपने घर।

गीत गाए हैं उन्होंने

जो नहीं जानते थे कल तक

एक दूसरे को

दो दिनों के लिये भूल गये लोग

पहाड़ों से चट्टानों के गिरने की आवाज़

कहवे में केसर की तरह

दुल्हन की वह रात।

(जम्मू प्रवास के दौरान लिखी गई कविताएँ)

 

-कल्पना सिंह, चिटनिस, 6 BEARPAW #2D IRVINE, CA 92604 USA

Popular posts from this blog

अभिशप्त कहानी

हिन्दी का वैश्विक महत्व

भारतीय साहित्य में अन्तर्निहित जीवन-मूल्य