1 जुलाई 2019, बेस्ट बस यात्रा से उपजी कथा: बस कंडक्टर

   नंदलाल सिंह, मुम्बई, मो. 9167474049


लड़की सोचती थी कि आजकल तीन स्टॉप की  दूरी भी पैदल तय करने में दिक्कत होती थी !

माँ का बिस्तर पकड़ लेना... फिर घरों में जाकर उसके काम को संभालना कि छूट न जाए काम और एक मात्र आय का श्रोत भी बंद न हो जाए और उसकी  पढ़ाई टांय टांय फिस्स..... 

पैसे निकाल कर रखती थी कि टिकट मांगे.. न मांगे... कंडक्टर एकाध बार अनदेखा करता.. या उसके पास तक पहुँचता ही नहीं था !

एक दिन बस से उतरते ही चेकिंग टीम सामने !

-ओह्ह्ह.. क्या बचा अब तो... !

तब तक कंडक्टर की जोर की आवाज से चेकिंग टीम भी चैंकीथी वह भी मुड़ी थी !

- अरे वो तेजी वाली बच्ची... टिकट तो लेती जा.. !

टिकट लेकर चेकर को पकड़ाती निकल गई थी !

आँखें बरस रहीं थीं उसकी लेकिन उसे आभास हो रहा था कि बुद्ध की  करुणा बरस रही थी !

दूसरे दिन बस में कंडक्टर को पैसा बढ़ाते कुछ कहने को थी कि उसने उसके पैसे लौटाते, टिकट पकड़ाते बोला था !

- आपकी माँ का इतना कर्ज है कि जाने कितने जन्मों में उतार  पाऊंगा? 

वह टिकट पकड़े हतप्रभ थी !

रात को माँ से उसने पूरी घटना सुनाते पूछा था उस कंडक्टर के बारे में... माँ हँसते बोली थी !

- अरे वो रहमान है !बहुत बदमाश है !

- बदमाश है? 

- अरे वो ऐसे ही मदद करता रहता है कि जकात का एक रूप ड्यूटी में भी निभ जाए तो.... क्या समझती हो वो बिना टिकट सवारी ले जायेगा? बेटा हमारे दिन कठिन हैं पर बिना टिकट यात्रा की  कभी नहीं सोचना मेरी बच्ची !

काम के बाद भी पैदल जाने की शक्ति उसे मिल गई थी !

एक दिन रहमान बस स्टॉप पर दिखे तो वह मुस्कराती  बोली थी !

- काकू  ईद  में माँ के साथ आउंगी !

रहमान काकू की आँखे खुशी से भर गईं थी उसे खुश खुश पैदल जाते देख कर !

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