जंगल राज (कविता )
डॉ दलजीत कौर, चण्डीगढ़, मो. 9463743144
जलाकर जंगल राजा
सेक रहा अलाव
चिड़िया मर रही रोज
नहीं लेता कोई सार
मूँड़ ली गई भेड़ें
ऊन का चला व्यापार
चंद सियार ले गए
कंबल और लिहाफ
ठगी रह गई गाय
‘‘माँ’’ का मिला पुरस्कार
वफादार कुत्ता हो गया
घोषित गद्दार
आँखे मूँद बैठा रहा कबूतर
बिल्ली कर गई शिकार
रिश्वत में परोसे गए
बत्तख़ और ख़रगोश
ठंड इतनी पड़ी
ठिठुर गया देश
ठंडा हुआ लहु
सर्द हो गई संवेदनाएँ
बर्फ हो गए इंसान
बढ़ने लगी कब्रें
मच गया हाहाकार
अंधा-बहरा हुआ राजा
वर्षों से ऐसा था
जंगल राज !!