अनकही

प्रतिभा जौहरी, फरीदाबाद, मो. 9958272734

आज बहुत मन कर रहा है कि मैं आप सब लोगों से बात करूँ। वैसे मैं बोलती नहीं पर आज अपनी बात कहने की इच्छा हो रही है और मैं अपनी इस इच्छा को दबाना नहीं चाहती क्योंकि मैं मौन रहने के परिणाम को अनुभव कर रही हूँ। आप लोग सोच रहे होंगे कि आखिर मैं हूँ कौन तो मैं अपने परिचय के साथ अपने मन की बात कहने का कारण भी बताती हूँ।

“मैं हूँ ऋतु और ये सम्पूर्ण सृष्टि है मेरा घर। ये सृष्टि और मैं, अटूट सम्बन्ध है हमारा। अपने घर में मैं अकेली नहीं रहती। मेरा भी परिवार है। मेरे भाई हैं तपन और शरद और मेरी बहन है वर्षा लेकिन मेरे भाई बहन एक साथ नहीं आते। एक जाता है तो दूसरा आता है। वैसे एक बात बताऊँ तीनों एक साथ आ भी नहीं सकते। आ जाएँ तो बड़ा अस्वाभाविक सा लगेगा।

तीनों का स्वभाव जो एक दूसरे से विपरीत है विशेषकर भाइयों का शरद जितना ठंडा तो तपन उतने गर्म स्वभाव का। अब इसी से देख लीजिए कि जब शरद आता है तो हमे सूर्य देव की ओर आकर्षित करता है। उसका सामीप्य हमे मन भावन लगता है, उसकी गरम धूप को हम अनुभव करना चाहते हैं। इसके विपरीत जब तपन आता है तो उसी धूप से हम दूर भागते हैं। तपन अपने साथ झुलसाने वाली गर्मी जो ले आता है वो तो कहो वर्षा उसे सम्हालने आ जाती है, झर झर पानी बरसा समस्त प्राणियों व प्रकृति को तपन द्वारा झुलसाई गर्मी से राहत देती है। इसके पश्चात समस्त सृष्टि का हृदय शरद के स्वागत के लिए तैयार हो जाता है।

मैं अपने बहन व भाइयों में ऐसा रमी रहती हूँ कि मेरे रूप व स्वभाव में भी परिवर्तन आने लगता है। उस परिवर्तन को भाइयों के आने पर आप केवल अनुभव करते हैं पर जब बहन आती है तो आप देख भी सकते हैं। वो मेरे घर भर को हरे भरे परिधान जो पहना देती है। पेड़ो पर झूले पड़ जाते है और उन पर बैठी स्त्रियों द्वारा मुखरित गीत नन्ही नन्ही बँदियाँ तो कहीं अबकी बरस भेज भैया को बाबुल जैसे गीत वातावरण में गूंजने लगते है।

मेरे भाई बहन के अलावा मेरा एक राजा भी है। वो न आए तो सब अधूरा सा लगता है। पूरे वर्ष प्रतीक्षा करवाता है मेरा प्रिय। जब आता है तो मैं ही नहीं समस्त सृष्टि खिल उठती है। बसंती रंग पहनकर आता है और फिर अपने रंग की ऐसी मोहनी चलाता है कि जहाँ देखो बसंती रंग की छटा फैल जाती है। बसंती बयार बहने ही लगती है। मानव व प्रकृति सब नवीन बसंती रंग के परिधान धारण कर उसके स्वागत के लिए तैयार हो जाते हैं। कोयल कूकने लगती है। कवि की लेखनी उसकी प्रशंसा में चलने लगती है। गायक भी पीछे नहीं रहते। उन्होंने तो राग ही रच डाला ‘राग बसंत‘ । वो झूमकर गा उठते हैं।

मेरा राजा तो कामदेव को भी लुभा लेता है। उन्हीं दिनों वो धरती का भ्रमण करने निकल पड़ते हैं। उसका सब से अधिक प्रभाव पड़ता है युवा दिलों पर। वो मद मस्त हो जाते हैं। वातावरण प्रेममय हो जाता है। लोगों ने उसका नाम ही रख दिया ऋतुराज। मुझे ये नाम बहुत अच्छा लगा। मैं हूँ ऋतु और वो मेरा राजा। कितना प्यारा और उपयुक्त गठबन्धन कर दिया लोगों ने। यद्यपि मेरा राजा अधिक दिन नहीं ठहरता? पर इतने कम समय में ही अभूतपूर्व सुख दे जाता है। उसके जाते ही तपन के आगमन का आभास होने लगता है।

मेरा ये चक्र सदियों से व्यवस्थित ढंग से चल रहा था पर अब इस में व्यवधान पड़ने लगा है और परिणाम स्वरूप सब अस्त व्यस्त होने लगा है। ये मेरी व्यथा का कारण बनता जा रहा है। अतएव आज कल मैं अत्यन्त व्यथित और उदास रहने लगी हूँ।

वैसे तो मुझे अपने सब भाई बहन प्रिय है। उनका आना मुझे अच्छा लगता है लेकिन इसके साथ मुझे अपने घर की भलाई भी देखनी पड़ती है। किसी भाई बहन का आवश्यकता से अधिक ठहरना घर के निवासियों के लिए सुखकर नहीं होता मुझे इसका ज्ञान है। मैंने बताया था न और आप सब जानते भी है कि मेरा भाई तपन स्वभाव से गर्म है, उस कारण दूसरे भाई-बहन से उच्छृखल और शक्तिशाली है। 

इधर उसकी उन दोनों आदतों में वृद्धि हो गई है और विडम्बना ये है कि इसके उत्तरदायी हैं मेरे ही घर के निवासी ये मानव जो इसे मानवीय विकास की संज्ञा दे तपन को उकसा रहे हैं। उनके हस्ताक्षेप से मेरे सदियों से चले आ रहे चक्र में बाधा पड़ रही है। वो इस सच्चाई की उपेक्षा कर रहे हैं कि इस चक्र से पूरी कायनात जुड़ी हुई है हमारी आस्थाएँ, नियम सामाजिक मान्यताएँ हमारी भावनाएँ। ऐसा ही रहा तो वो बसंत के आगमन पर हृदय का प्रेम रस से ओत-प्रोत होना वर्षा में हरे वस्त्रों से सजी धरती, सावन की फुहारों में पेड़ों पर पड़े झूलों में झूलती युवतियों का मधुर संगीत, जाड़े में धूप की गुनगनाहट का अनुभव सब इतिहास बनकर रह जाएगा।

मेरे घर का भविष्य अंधकारमय हो रहा है। मैं बहुत दुखी हूँ। शरद ने जतन करके अपनी ठंडक से बर्फ की श्वेत चादर बिछा ग्लेशियर बनाए थे वो पिघल रहे हैं। वास्तव में वो पिघलते हुए ग्लेशियर नहीं मेरे आँखों से बहते हुए आँसू हैं जिन्हें मैं चाह कर भी नहीं रोक पा रही। ये पिघलते हुए ग्लेशियर समुद्र तट में विस्तार कर धरती और वृक्षों को निगलते जा रहे हैं। लोग घर से बेघर हो रहे हैं। जीव जन्तुओं का अस्तित्व प्रश्न चिन्ह बनता जा रहा है लेकिन मैं क्या करूँ? जो स्वयं चिंतित हो वो क्या उत्तर दे। तपन को तो मानव ने उसे ऐसा उकसाया कि उसे बहन की भावनाओं का ख्याल ही नहीं। शरद अपनी ठंडक से मुझे सांत्वना देने का प्रयास तो कर रहा है मगर उसकी शीत? नाकाम हो रही है और उधर वर्षा तो हो ही गई है बेबस। इस सब से जलवायु में परिवर्तन हो रहा है और ये घातक परिणाम की ओर अग्रसर होने का संदेश है।

लोग इसे ‘ग्लोबल वार्मिग‘ का नाम दे रहे हैं। इसका कारण भी समझ रहे हैं लेकिन उस से होने वाले दुष्परिणाम के प्रति जागरूक क्यों नहीं हो रहे, क्यों नहीं सोचते कि जिसे वो मानवीय विकास कह रहे हैं वास्तव में वो विनाश का मार्ग है। ये औद्योगीकरण वाहनों व फैक्ट्रियों से उगलता धुंआ जहर है विध्वंस मचा रहा है और दिनोदिन बढ़ता ही जा रहा है। कुछ लोगों के लिए ये सोचने का विषय हो रहा है पर कुछ ठोस नहीं किया जा रहा। अभी तो समय है आरम्भ है इसीलिए बोल पड़ी हूँ मैं। जागो मानव चेतो, अब और विलम्ब न कर रोको। इस ‘ग्लोबल वार्मिंग‘ नाम के दैत्य को और पाँव न फैलाने दो। इस विनाश लीला को बंद कर ईश्वर की इतनी सुन्दर रचना को नष्ट होने से बचाओ।

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