‘यात्रीगण कृपया ध्यान दें -रोजमर्रा के जीवन को अभिव्यक्त करती कहानियाँ

 समीक्षा

समीक्षक- डाॅ. नीलोत्पल रमेश, पुराना शिवमंदिर-बुधबाजार-गिद्दी-ए, हजारीबाग-झारखण्ड-829108, मो. 9931117537

यात्रीगण कृपया ध्यान दें‘ राम नगीना मौर्य का चैथा कहानी संग्रह है, जो हाल ही में प्रकाशित होकर आया है। इसके पूर्व इनके तीन कहानी- संग्रह, ‘आखिरी गेंद‘ (2017), ‘आप कैमरे की निगाह में हैं‘ (2018) तथा ‘साफ्ट काॅर्नर‘ (2019) प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी कहानियाॅ देश की सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। इस संग्रह की भी अधिकांश कहानियाॅ विभिन्न पत्र-प़ित्रकाओं में प्रकाशित होकर प्रशंसित हो चुकी हैं।

राम नगीना मौर्य समकालीन कथा-साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। इनकी कहानियाॅ रोजमर्रा के जीवन से बुनी हुई होती हैं। जिन विषयों पर हम बातचीत करते रहते हैं, उन विषयों पर कथाकार राम नगीना मौर्य कहानियाॅ लिख देते हैं। इनकी कहानियों के विषय जीवन की भाग-दौड़ में घटित घटनाओं तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि निर्जीव वस्तुओं तक फैले हुए हैं। ये कहानियाॅ कुछ कहती हैं। इनके विषय कुछ संदेश छोड़ने में सफल रहते हैं। जब कहानियाॅ अंत तक पहॅुचती हैं, तो पाठक को बहुत कुछ सोचने पर विवश कर देती हैं। यही कारण है कि समकालीन कथाकारों में राम नगीना मौर्य का नाम अग्रगण्य है। इनकी कहानियों के अभाव में समकालीन कथा-साहित्य पर कोई भी बात पूर्ण नहीं होगी।

राम नगीना मौर्य ने अपनी कहानियों के संदर्भ में ‘अपनी बात’ में स्पष्ट लिखा है कि ‘‘यह संतोष की बात है कि मैं अपनी जमीनी सच्चाइयों से बखूबी वाकिफ हॅू। मुझे अगर अपनी खूबियाॅ पता हैं, तो अपनी सीमाएं भी मालूम हैं। कम-अज-कम इस मुद्दे पर मैं किसी मुगालते में नहीं हॅूू। मेरा अनुभव रहा है कि शब्दों, विषयवस्तु, शिल्प या भाषा-शैली आदि किसी भी सीमा में बॅधकर उम्दा लेखन संभव नहीं, इसके लिए तो हमें ऐसे सभी पूर्वाग्रहों, विधागत औपचारिकताआंे, स्थापित तथ्यों, फार्मूले आदि से मुक्त होना होगा।...लिखना मेरे लिए बुद्धिविलास नहीं, बल्कि जीवन के सुख-दुख, सरोकारों को साझा करने का माध्यम, जीने का सबब और मकसद भी है।‘’ ये कथन कथाकार के हृदय से निकले हुए हैं। इसमंे कथाकार की ईमानदारी स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती हंै। कथाकार इतने सहज और सरल हैं कि आम बोलचाल की भाषा में भी बहुत कुछ कह जाते हैं। इनकी यही सहजता कहानियों में भी देखी जा सकती है। इनका बेबाकीपन मन मोह लेता है।

‘यात्रीगण कृपया ध्यान दें‘ कहानी के माध्यम से कथाकार ने यात्रा के दौरान होने वाले अनुभव को अभिव्यक्त करने की कोशिश की है। यात्रा के दौरान कथानायक के सामने एक नवविवाहिता बैठी हुई थी। इसके बारे में कथानायक अनेक कपोल-कल्पनाएॅ कर लेता है। लेकिन जब वास्तविकता से उसका सामना होता है, तो उसके होश उड़ जाते हैं। वह नवविवाहिता को घॅूंघट से बाहर देखते, सोचते जा रहा था कि ‘यात्रीगण कृपया ध्यान देें‘ की उद्घोषणा ने कथानायक की तंद्रा भंग कर दी। जब वह नवविवाहिता को घॅूंघट से बाहर देखता है तो उसका मन गहरे क्षोभ और ग्लानि से भर उठता है। अंत में लेखक ने लिखा है-‘‘गाहे-बगाहे सुनी-पढ़ी, एसिड अटैक सर्वाइवर्स से जुड़ी ढ़ेरों घटनाएं, मुद्दे, अमानवीय त्रासदी, उनका संघर्ष, उनके दर्द की भयावहता, मानो किसी चलचित्र की भाॅति मथुरादास की आॅखों के सामने घूम गये।‘‘

‘रोटेशन सिस्टम से‘ कहानी के माध्यम से कथाकार ने निर्जीव वस्तुओं से संवाद स्थापित करने की कोशिश की हैं। अनेक कथाकारों ने अपनी कहानियों एवं उपन्यासों में, जीव-जन्तुओं से संवाद स्थापित करवाया है, लेकिन राम नगीना मौर्य ने घर के डाॅयनिंग-टेबल के पास रखी छह कुर्सियों में इस तरह से संवाद करवाया है कि ये घर के शुभ-चिंतक हैं। ये सभी घर की सारी गतिविधियों के केन्द्र में हैं। घर की मालकिन, मालिक, बेटे-बेटी का व्यवहार उनके साथ कैसा है, ये सब आपसी बातचीत में अभिव्यक्त कर देते हैं। कथानायक को इनसे हमदर्दी हो जाती है। वह दो अन्य कुर्सियों को भी डाॅयनिंग-टेबुल के पास रोटेशन सिस्टम से लगाने को तैयार हो जाता है। यह कहानी मानवीय व्यवहार को निर्जीव वस्तुओं के साथ हमारे संबंधों को उद्घाटित करती है।

‘फुटपाथ पर जिंदगी‘ कहानी के माध्यम से कथाकार ने फुटपाथी जीवन जी रहे लोगांे केे दुख-दर्द को मार्मिक ढंग से वर्णन किया है। कथानायक अपने ड्राइवर और सहकर्मी के साथ लखनऊ से दिल्ली आया था। फिर लौटते वक्त उसकी दृष्टि फुटपाथ पर जीवन की जद्दोजहद करते लोगों पर पड़ती है। वह अत्यंत भावुक हो जाता है। दिल्ली से लखनऊ लौटते वक्त उन्हें खाने की चिंता थी। इस बीच वे एक ठेले वाले के पास रूकते हैं। वहाॅ बैठे-बैठे कथानायक को उनकी जिंदगी में आयी अनेक परेशानियाॅ दृष्टिगोचर होनेे लगती हैं। ये किन मजबूरियों में रोड के किनारे ठेला लगाते हैं, वहाॅ बैठे-बैठे कुछ ही देर में कथानायक समझ जाता है। कन्हैया का यह कथन फुटपाथी-जीवन जी रहे लोगों के दुख-दर्द को अभिव्यक्त करता है-‘‘सर जी, हमें तो लगभग रोज ही ऐसों से साबका पड़ता रहता है। यहाॅ ठेला लगाने के लिए ये टैक्स जो भरना पड़ता है। इन्हीं लोगों की बदौलत तो हम यहाॅ फुटपाथ पर ठेला लगा पाते हैं।‘‘ ये टैक्स सरकारी टैक्स नहीं है, बल्कि पुलिस के रौब का है।

‘तुमने कहा जो था‘ कहानी के माध्यम से कथाकार ने पति-पत्नी के आपसी रिश्ते को मजबूती प्रदान की है। ये रिश्ते जब मजबूत होंगेे, तो जीवन की गाड़ी जीवन भर पटरी पर चलती रहेगी, कभी बाधा नहीं आएगी। मजबूत-रिश्ते का होना खुशहाल जिंदगी के लिए आवश्यक है। इस कहानी में सत्यजीत और सुनेजा के द्वारा कथाकार ने ससुराल में अचानक पहुंचे, दामाद सत्यजीत की पत्नी प्रेम को ही वाणी दी है। पहले तो वे ससुराल मंे हो रही शादी में नहीं आने वाले थे, पर एकाएक उपस्थित होकर उसने सभी को अचंभित कर दिया। यह कहानी पति-पत्नी के आपसी संबंध के मधुर क्षणों को उद्घाटित करती है। उनकी उपस्थिति मात्र से पत्नी उत्साहित होकर कहती है कि ‘‘आपने मेरा मान रख लिया।‘‘ इस पर सत्यजीत ने कहा कि ‘‘मेरा नहीं....हमारा मान कहो। अरे भाई।़ तुमने कहा जो था। मेरे आने से चार लोगों के बीच हम सबका मान-सम्मान ही बढ़ेगा। तभी तो तुम्हारी इच्छा को आदेश मानते, शिरोधार्य करते, तुम्हारे सामने हाजिर हो गया।‘‘

‘शेष भाग आगामी अंक में‘ कहानी के माध्यम से कथाकार ने एक बुजुर्ग लेखक को अस्पताल में उपचार के दौरान एक युवती के द्वारा अपमानित होने, फिर उस युवती द्वारा लेखक के पास पहॅुचकर क्षमा माॅगने का वर्णन किया है। युवती अल्पना निधि लेखक के पास पहुंचकर अस्पताल में अपने द्वारा किए गए व्यवहार के लिए क्षमा माॅगती है। वह रविवारीय अखबार में एक कहानी पढ़ रही थी। उसमें फोटो देखकर और अंत में पता पढ़कर वह लेखक के पास पहुॅच जाती है। उसके भाई ने ही उसे बताया था कि ‘‘अरे दीदी, ये तो वही वाले अंकल जी हैं, जिनसे तुम हाॅस्पिटल में बेवजह ही भिंड़ गयी थी। वे बार-बार साॅरी-साॅरी कह रहे थे, पर तुम बार-बार उनकी बातें अनसुनी करते उन्हें कोसे जा रही थी।‘‘ युवती लेखक के पास पहुॅचकर कहानी के शेष भाग को भी जान जाती है, जो कहानी के अंत में लिखा हुआ था- ‘शेष भाग आगामी अंक में‘। बातचीत के क्रम में ही लेखक ने युवती से कहा कि ‘‘कहानी को एक कहानी की तरह ही लेना चाहिए। यह ठीक है कि लिखते समय एक रचनाकार के अपने अनुभव होते हैं। वह यथार्थ और कल्पना के बीच उड़ान भरते, एकालाप, तो कहीं बहुलाप। कहीं संक्षिप्त तो कहीं विस्तार, कहीं हर्षातिरेक तो कहीं विषाद से परिपूर्ण, शब्दों की बाजीगरी बिखेरते अपनी बातें प्रस्तुत करता है। साथ ही प्रस्तुतीकरण में उसका भावनात्मक स्तर, देश-काल- स्थिति-परिस्थिति, उसके अपने परिवेश की भी महती भूमिकाएं होती हैं।‘‘ यानी कहानी में रचनाकार का परकाया प्रवेश ही होता है।

‘उन्होंने नाम नरेश ‘समथिंग बताया था‘ कहानी के माध्यम से कथाकार ने कार्यालयों की घटिया कार्य प्रणाली का उल्लेख किया है। यह कहानी उस माहौल में व्याप्त लोगों की मानसिकता की पड़ताल करती है। एक ओर बूढ़े-बुजुर्गों की समस्याएँ हैं तो दूसरी ओर युवाओं की भागम-भाग है। युवा अपने घर के अंदर मौजूद बूढ़ों को समय नहीं दे पाते हैं, जबकि वे बूढ़े चाहते हैं कि वे उनके पास बैठकर कुछ बातचीत करेें। इस अंतर को कहानी में बहुत ही बढ़िया ढंग से कथाकार ने प्रस्तुत किया है।

‘ठलुआ चिंतन‘ कहानी के माध्यम से कथाकार ने नाई की दुकान मंे बैठे एक व्यक्ति के चिंतन को कहानी का मुख्य विषय बनाया है। वहाॅ बैठे-बैठे कथानायक जो कुछ सोचता है, महसूस करता है, कथाकार ने इस कहानी में उसी का आॅखों देखा हाल का वर्णन कर दिया है। ‘बेचारा कीड़ा‘ कहानी के माध्यम से कथाकार ने कथानायक को दो प्रेमिकाओं के बीच झूलते हुए दिखाया है। लेकिन जब प्रेमिकाएॅ अपना-अपना निर्णय कथानायक को सुनाती हैं, तो उसे यथास्थिति का बोध होता है।

‘से चलकर, के रास्ते, को जाते हुए‘ कहानी का शीर्षक ही अनूठा प्रयोग सा लग रहा है। कथाकार ने कथानायक द्वारा अपनी दिनचर्या सेेेेेेेेेेेेेेेेेेेे अलग सोचने की प्रक्रिया को अनूठा प्रयोग बताया है। हमारे दैनिक क्रिया-कलाप में कुछ-न-कुछ अजीब अनुभव शामिल जरूर होते हैं। जब हम सोचते हैं, तो यह अनुभव बड़े दिलचस्प लगते हैं।

‘फिर जहाज पर आयो‘, कहानी के माध्यम से कथाकार ने पति-पत्नी के नित्य होते नोक-झोंक को वाणी देने की कोशिश की है। पति-पत्नी में प्रायः झगड़े होते रहते हैं। लेकिन मनोचिकित्सकों का कहना है कि ये झगड़े दोनों को और करीब लाने में कारगर सिद्ध होते हैं। रिश्तों की प्रगाढ़ता के लिए दोनों में कुछ मनमुटाव का होना आवश्यक है। यह कहानी प्रेम की अनुभूति को और मजबूती प्रदान करती है।

‘यात्रीगण कृपया ध्यान देें‘ कहानी-संग्रह के माध्यम से कथाकार राम नगीना मौर्य ने पाठकों को यह ध्यान दिलाने की कोशिश की है कि कहानी के लिए किसी विषय-वस्तु का होना जरूरी नहीं है, बल्कि दैनिक क्रिया कलापों के बीच में आए प्रसंगों पर भी कहानी लिखी जा सकती है। कथाकार ने निर्जीव वस्तुओं में संवाद करवाकर एक नई राह की ओर पाठकों का ध्यान आकृष्ट किया है। इनकी भाषा सहज, सरल और आम बोलचाल की है। कहानियों की पठनीयता गजब की है। एक बार कहानी पढ़ना शुरू करने के बाद बिना उसे पूरा किए छोड़ने का मन नहीं करता है। पुस्तक की छपाई साफ-सुथरी है। प्रूफ की गलतियाॅ नहीं हैं।

पुस्तक-‘यात्रीगण कृपया ध्यान देें‘( कहानी संग्रह), कथाकार-राम नगीना मौर्य, प्रकाशक-रश्मि प्रकाशन, लखनऊ-226023, 204-सनशाइन अपाॅर्टमेंट, बी-3, बी-4, कृष्णानगर- लखनऊ-226023, मूल्य-रूपये 180/- पृष्ठ-133 (वर्ष-2020)

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