फिर उग आया हूँ

   सुजाता काले, पंचगनी, मो. 9975577684


कट गया पर उग आया हूँ,

देख तेरे सहर में फिर आया हूँ।


रात ही तो बीती थी कटने के बाद

मैं जिंदा हरा भरा दिल लाया हूँ।

जड़ से उखाड़ दिया, धड़ से गिरा दिया

बाजू कटी है मेरी पर मैं खिल आया हूँ। 

देख तेरे सहर में फिर आया हूँ।


तनिक गम नहीं है कट जाने का

पर जिंदा हूँ इसलिए जीवन लाया हूँ।

बज्र नहीं गिरी मुझ पर आरी चलाई है।

कितने हिस्सों में बँटा हूँ, कहने आया हूँ।

देख तेरे सहर में फिर आया हूँ।


एक उम्र बिताई थी इस हसी गुलशन में

तेरे चमन को मैं बहारदार बनाने आया हूँ।

घौसले उजड़ गए हैं मेरे कटने के बाद

गुल गुलशन की दुनिया आबाद करने आया हूँ।

देख तेरे सहर में फिर आया हूँ।

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