कविता

     अरविंद अवस्थी, मिर्जापुर (उ.प्र.), मो. 9648388889, 9161686444

 ज़िद

ज़िद्दी होती है वह हवा

जो निर्दोष दीये को

बुझा देती है एक झोंके में

ज़िद्दी होती है वह नदी

जो उफनती है बरसात में

और लील जाती है

कई मासूम बस्तियाँ

ज़िद्दी होती है वह आग 

जो एक चिंगारी से 

भड़कती है और

जलाकर खाक कर देती है

भूखी- प्यासी झोपड़ियाँ

वैसे तो

अच्छी नहीं होती ज़िद

अगर ज़िद कर ले सूरज

कि नहीं उदय होगा पूरब में

ज़िद कर ले बादल कि

नहीं बरसेगा धरती पर एक बूँद

कभी अच्छी भी होती है ज़िद

जब अंधेरे को भगाकर

आता है उजाला

जब जुड़ते हैं 

टूटे हुए रिश्ते

जब बहती है कोई गंगा

इस धरती पर.


भरोसा

वह भरोसा ही था

जब बचने के लिए

बाबूजी की डाँट से

छिप जाता था माँ के आँचल में

वह भरोसा ही था

जब तैरना न जानते हुए भी

बाबूजी के हाथों के सहारे

तैरते हुए चला जाता था

गहरे पानी तक

वह भरोसा ही था

जब बेटी

छोड़कर बाबुल का आँगन

चली गई थी ससुराल

भीगी आँख लिए

बड़ा ताकतवर होता है भरोसा

वे खो देते हैं 

अपना वजूद

जो तोड़ते हैं

किसी का भरोसा.



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