मैं जिंदगी की डोर हूँ
डॉ. सीमा शाहजी, झाबुआ (म.प्र.), मो. 7987678511
छत पर गिरी बून्द हूँ मैं
जिधर चाहोगे बह जाऊंगी
पर यह मत भूलो
कि मेरा जन्म
समुद्र से आसमान की
अछोर यात्रा के बाद हुआ है,
महज पानी की बूंद नही
मैं जिंदगी की डोर हूँ .....
मुझमें छिपी है शक्ति
समुद्र की गहराई की
आसमान की ऊंचाई की
ओर सूर्य के तपिश की
मैं सिर्फ सावन ही नही
मैं हु प्रकृति की ताकत
बरसती है जो सब पर
खेतो में होती फसलें
बगिया सारी खिल जाती
नदियां झरने सब बहते
हर दिल मे उमंग जगाती
मिलन की तलब बढ़ाती
मैं केवल पानी की बूंद नही
प्रेम का प्रतिरूप हूँ
मैं जिंदगी की डोर हूँ.....
मैं ताकत हूं समुद्र की
मैं देन हूँ अनमोल उस विधाता की
जो, पत्थर में भी देता है जीवन
ओर,अग्नि में भी देता है मुक्ति
सीप में गिरूं तो मोती बन जाऊं
कदली में गिर कर
कपूर बन जाऊं
जो धारण करले सर्प कहीं
तो मैं विष का रूप बन जाऊं
जो अपने क्रोध में आ जाऊं
तो, धरा पर विनाश का आगाज कर दूं ,
ये बाढ़, ये सुनामी
मेरे ही रूप है
इसलिए
मत भूल करना मुझे
कमजोर और तुच्छ समझने की
मैं ऊर्जा हु आसमान की
मैं ही जीवन का रूप हूँ
मैं महज पानी की बूंद नही
मैं जिंदगी की डोर हूँ.....