विदाई


निर्मला डोसी, मुम्बई, मो. 9322496620


देहरी पर विदा होती बेटी के पास 

सुबकती माँ खड़ी है

कलेजा मुसा जा रहा है उसका

भीगी आँख लिये खड़़ी है भावज

हम उम्र संगिनी बहन जैसी ननदिया के साथ

पिता का कांपता हाथ माथे पर धरा है

हाथ के कंपन को महसूसती है बखूबी

भाई की आंखों का बांध टूट गया है

ढल-ढल ढुलके पड़े हैं आंसु गालों पर

अब की गई कब आयेगी वापस इस घर में

यही दृश्य तो देता है उसे ताकत

तीखी धूप में सावणी बयार का सुखद अहसास

इसी भावभीनी विदायी के लिये ही तो

नहीं खोलती अपने अंदर सुलगते ज्वाला मुखी

का बंद ढक्कन

जिस दिन थक कर खोल देगी

और चाहते, न चाहते हुए भी पूरी करने लगेंगे

सूदखोरों की अंतहीन मांगे

भरने लगेंगे किश्तें चक्रवर्ति ब्याज की

चुकाने लगेंगे बेटी पैदा करने का कर्ज

तब क्या ऐसी नेह पगी विदायी होगी उसकी

मगर मांगत चुकाने का कारण तो वही होगी

तब आश्चर्य क्या बेटी नहीं बोझ लगने लगे

फिर करना छोड़ दे बेटी के आने का इंतजार

हर विदायी पर लें राहत की लम्बी सांस

चलो हुई इस बार तो भरपाई 

आगे फिर तब बुलायेंगे जब तक जोड़ न लेें

जमानती मोटी रकम बुलाने बेटी को पैरोल पर

उस आजीवन कारा से।



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