आरती स्मित, दिल्ली, मो. 8376837119 समय जब-जब करवट बदलता है, परिस्थितियाँ जब- जब वेगवती होती हैं, इतिहास जब-जब कुछ नया रचने की माँग करता है, एक युगपुरुष पैदा होता है जो संक्रांत क्षणों को इतिहास के पन्नों पर स्वर्णाक्षरों से लिख जाता है और छोड़ जाता है अमिट छाप अपनी.... कालजयी हो जाता है। और आधुनिक हिंदी भाषा-साहित्य के इतिहास में भारतेन्दु हरिश्चंद्र, आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के पश्चात यदि कोई नाम आता है तो वह है कथाकार प्रेमचंद का, जिन्होंने गद्य साहित्य को नया जीवन दिया। प्रेमचंद हिंदी कथा जगत का एक ऐसा नाम है जिसे 7-8 वर्ष के बच्चे से लेकर 95 वर्षीय वृद्ध भी जानते हैं, जिन्होंने उन्हें पढ़ा ही नहीं, अपने-अपने अनुसार गुनने-धुनने का भी काम किया है और निष्कर्ष भी सुनाया है... 'प्रेमचंद हमारे टाइप के लेखक हैं, उन्हें समझने के लिए बहुत दिमाग नहीं लगाना पड़ता'। तो क्या प्रेमचंद की सभी रचनाएँ इतनी सरल है कि उसमें कोई गूढ़ार्थ नहीं, किसी विमर्श की गुंजाइश नहीं, उनकी कृतियों से संदर्भित किसी मुद्दे पर बहस की आवश्यकता नहीं ? क्या वह आम जनों की पीड़ा या प्रसन्नता व्यक्त करती आम जन