ग़ज़ल


अपर्णा पात्रीकर, भोपाल


जहां तक नज़र है नज़ारा तेरा ।

ख़्यालों पे है बस इजारा तेरा ।।

मुझे इक तेरी बस तेरी जुस्तजूं । 

हुआ दिल दीवाना दुबारा तेरा ।।

अगर हो सके तो दवा कोई कर । 

कहां जाए घायल बेचारा तेरा ।।

मसीहा नहीं तू ये माना मगर ।

है टूटे दिलों को सहारा तेरा ।।

किसी और पर यूं न इल्ज़ाम दे ।

तेरे तीर का ही है मारा तेरा ।।

तग़ाफुल तेरा है जरा देर का ।

नहीं होगा हम बिन गुज़ारा तेरा ।।

हमारी जगह ख़ुद तू रहकर दिखा ।

सितम होगा हर इक गवारा तेरा ।।

दुआएं मुसलसल यूं मिलती रहें ।

सलामत रहेगा सितारा तेरा ।। 

****


दिलो जां वार दे ऐसा कोई मुश्किल से मिलता है ।

उसे मायूस न करना जो तुमसे दिल से मिलता है ।।

मचलती है जवां लहरें हवाओं की सदाओं पर।

समंदर होता है मजबूर तब साहिल से मिलता है ।।

नज़र में इश्क़ है जिनके गुनाह उनसे कहे कोई ।

ख़ुदा मौजूद होता है जहां दिल, दिल से मिलता है ।।

फक़त कोशिश नहीं काफी मुक़द्दर भी ज़रूरी है ।

मुसाफिर लाख चाहे पर कहां मंज़िल से मिलता है ।।

दुआओं के असर पर तब यकीं सा होने लगता है ।  

कि जब भी चारागर ख़ुद ही किसी बिस्मिल से मिलता है ।।

****


सबको गिला है ये कि धुरंधर नहीं मिलता ।

क्यूं कोई मु़क़द्दर का सिकंदर नहीं मिलता ।।


हर चीज़ तो हासिल नहीं होती है सभी को ।

मिलता है किनारा तो समंदर नहीं मिलता ।।


बिस्तर मिले हैं उनको तो है नींदें नदारद । 

है नींद मयस्सर जिन्हें बिस्तर नहीं मिलता ।।


रुकता ही नहीं खर्च भले मर भी जाओ तुम ।

बिन पैसे कफ़न भी तो यां गज़ भर नहीं मिलता ।।


जी भर के मेरे ऐब गिनाता है मुझे तू ।

क्या ऐब तुझे वो तेरे अंदर नहीं मिलता ।।


मिलते हैं कई नकली ख़ुदा वाले जहां में ।

अब ढूंढे से भी असली कलंदर नहीं मिलता ।।


बस तेरे सिवा और नहीं कुछ दुआ मेरी ।

फिर क्यूं मुझे तू इक मेरे दिलबर नहीं मिलता ।।


जैसे कि मिला है सिला ये पारसाई का । 

यूं ही तो सरे राह में रहबर नहीं मिलता ।।


गुज़रें हैं नज़र से हमारी कितने हसीं पर ।

उस जैसा कहीं भी कोई सुंदर नहीं मिलता ।।


बेकार समझना न कभी ताश में जोकर । 

रोते हैं रमी में जिन्हें जोकर नहीं मिलता ।।

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