द्रौपदी का दामन
द्रौपदी क्यों चुप रही उस वक्त बोलो
कह दिया होता तभी जब
बाँटा कुंती पांडवों में
माँ ! नहीं मैं पाँच की
जीता है मुझको तो केवल पार्थ ने
मत्स्य की आँखों को बेधा एक अकेला
फिर क्यों होऊँ पाँच की मैं ?
तुम नहीं सर्वस्व स्त्री जात थी तब
यूँ खड़ी निर्वस्त्र कौरव की सभा में
अपनी दामन को बचाने कृष्ण को तुमने पुकारा
हाथ अपने यूँ पसारे
सोच क्या होता
प्रभु न थामते गर तेरा दामन ?
पांडवों ने जो भी हारा पा लिया फिर
क्या तुम्हें मिल पाया जो तुमने गँवाया?
दिव्य जन्मा द्रौपदी भी बनके रह गई एक वस्तु
एक ने जीता, एक ने बाँटा, एक ने हारा द्यूत में।
तुम हुई बदनाम भीषण युद्ध की कारण बनी तुम
भाई भाई से लड़े
पर इसमें क्या तेरी ख़ता थी?
क्या भला आसान था सब कुछ यूँ सहना ?
पाँच पतियोंवाली ताना हर पल सुनना?
है किसी को गम कि क्या बीती है तुझपे ?
सीता हो या हो अहल्या या फिर कोई रेणुका हो
साक्षी है इतिहास नारी की मर्यादा के हनन का
अपमान के अध्याय में एक पृष्ठ तुमने भी क्यों जोड़ा?
पूछती है प्रश्न नारी जाति तुझसे आज भी ये
अग्निजा हे द्रौपदी!
क्रोध के खंजर तुम्हारे थे कहाँ तब ?
क्यों बन गई पाँचों की पत्नी
काश कह देती तभी तुम
क्यों मैं होऊँ पाँच की माँ ?