कविता
देश दंडकवन हुआ फिर से
हर तरफ आतंक का साया...
पहरूए हैं
कुर्सियों पर सुप्त
वेदना संवेदना
है लुप्त
नग्न होकर नाचती है
काल की छाया...
पार्टियां
झण्डे लिए कर में
गा रही हैं
वोट के स्वर में
समस्या हल हेतु बस
आयोग बैठाया
सूने-सूने हो गए
यादों वाले खेत..
मिलन फसल जब से कटी उन्मन मन की मेड़
आस-पास थे हर्ष के सूख गए सब पेड़
दूर-दूर तक है नहीं
ठंडक के संकेत...
आहों के बादल घिरे आंसू की बरसात
शायद दिल का खेत अब
आये नव सौगात
निकले अंकुर प्रीत के
निज परिवार समेत...
पं. गिरिमोहन गुरु, शिप संकल्प, साहित्य परिषद, नर्मदापुरम, (म. प्र.)