खुदआगाही
सुरेन्द्र भुटानी, पौलेंड, इमेल: suren84ind@gmail.com
मैं ख़ुद का भी कभी मुहाफ़िज़ न हो सका
तुम बेवजह वफ़ा मुझसे क्यों मांग रही हो ?
वक़्त की तिजारत में कई बार बिक चुका हूँ
तुम दीवार पे मेरी तस्वीर क्यों टांग रही हो ?
मुझे खुद से गफ्तगू करना भी नहीं आता
तेरे ज़िक़र के साथ क्या इन्साफ करूँ ?
शीरिनिये-मोहब्बत के अंदाज कहां बचे हैं
तू मुझे और अब मैं तुझे क्या मुआफ करूँ ?
बरसों से ज़िन्दगी का नूर रूपोश हुआ है
गोया हर शय को भूल गए हों तहखाने में
किसी लतीफ झोंके की गुंजाईश नहीं है
हर बात का जादू टूटा है मेरे फ़साने में
किन जज़्बाती तक़ाज़ों का इन्क्शाफ करूँ
जज़्बा-ए -शौक़ की उमर होती है नातमाम
हसरतों में जब दिन गुज़रते जाते हो पैहम
हर पल की धड़कन से क्या पूछे कोई पैग़ाम ?