पत्र

 आदरणीय बहल जी, सादर प्रणाम !

‘अभिनव इमरोज़’ व ‘साहित्यनंदिनी’ को  हाथ में लेकर पढ़कर जो सुखद अनुभूति हुई है, मैं बता नहीं सकती। ‘साहित्य नंदिनी’ में मीरा कान्त जी का आलेख व जयदेव तनेजा की ‘नेपथ्य कथा’ बहुत रोचक व महत्वपूर्ण लगी। अद्भुत थे श्री मोहन राकेश जी जो उन्होंने कश्मीर के शिकारे वालों के साथ कुछ महीने रहकर अनुभव इकठ्ठे किये। आपको धन्यवाद इस दुर्लभ सामग्री प्रकाशन के लिए। कश्मीर से विस्थापन के दर्द को बहुत गहराई से उकेरा है ‘अभिनव इमरोज’ में चंद्रकांता जी की कलम से  कहानी ‘बदलते हालात में’ पढ़ी। ये घर से जुड़ी संवेदनाओं से झकझोर गई। इसी बात को आगे बढ़ाने वाली डॉ अंजना संधीर सहित कश्मीर पर संवेदनशील कवितायें पढ़ने को मिलीं। मंटो व कश्मीरी लोकगीत व अन्य रचनाओं ने जैसे कश्मीर की वादियों में पहुंचा दिया।

‘अभिनव इमरोज’ और पढ़ती चली गई ऐसा लग रहा था कि अग्निशेखर जी के ‘जंग तृतीया’ से वहां महिला दिवस मना रहीं हूँ। मीरा कांत जी की कहानी ‘रूपोश’ से सशंकित हो डरी-डरी कश्मीर में घूम रहीं हूँ। मंटो कश्मीरी थे व उनके परिवार के विषय में ये पहली बार पढ़ा। मैं डॉ अंजना संधीर ‘रंजना’ प्रकाशित हो गया है, की कवितायें हों या उनकी सम्पादित पुस्तक की समीक्षा हो या डॉ. ऊषा रानी राव की ‘मूलोच्छेदन’ क्या शब्द प्रयुक्त किया है। लगता है कि जलते कश्मीर में घूम रहे हैं। कश्मीर की दूसरी यात्रा में गुलमर्ग से पहले गुमटी में आर्मी केंटीन में चाय पीते व समोसे खाते ठिठुरते मैं परेशां थी कि ऐसी ठंड में कैसे हमारे फौजी रहते व युद्ध करते होंगे। ब्रिग्रेडियर उस्मान के विषय में आपने लेख प्रकाशित कर इसे पूर्णता दी है। राहत है पत्रिका की सामग्री का अंत ‘कश्मीर में बहार की आमद पर’ डॉ. प्रेमी रोमानी,से होता है। सही है आपने अपने उन्माद, मेहनत व साहित्य सपर्पण को कोरोनाकाल में जिंदा रक्खा इसलिये हम वर्ष के आरम्भ में ये बेशकीमती सम्पादकीय व अंक पढ़ पा रहे हैं और मैं ‘अभिनव इमरोज़’ में प्रकाशित अपनी कहानी ‘जन्नत की मुस्कान फकत सात लाख रूपये’ को याद कर रहीं हूँ। 

नीलम कुलश्रेष्ठ, अदमदाबाद, मो. 9925534694


Popular posts from this blog

अभिशप्त कहानी

हिन्दी का वैश्विक महत्व

भारतीय साहित्य में अन्तर्निहित जीवन-मूल्य