कविताएँ
एक आग
एक आग जो सदियों से सुलगती रही
मेरे भीतर
उगलती रही विप्लव की ज्वाला
और पीती रही हाला प्रलय की
बुझने ली फ्रिजों में
वातानुकूलित कक्षों में
मैंने तो अंगारे खाये थे
अंगारे गाये थे
अग्निपुंजों में जन्मा मैं
तुम्हारे मल्हार राग का
गायक कब था ?
लो, आग की एक और
भभकार निकली
तांडव की तैयारी में
डमरू बज उठा
और मैं एक और
ज़हरीली आग चबाने लगा
सपनों का सफर
हमने अपने दर से पूछा-
हमारा घर कहा है ?
दर ने कहा-
सारा जहां जहां है।
हमने सवाल किया-
बंधु,
फिर जहां कहां है ?
दर का जवाब था-
प्यार जहां जहां है।
डाॅ. श्याम सिंह शशि, नई दिल्ली, मो. 9818202120