कहो किसको लिखूँ !
पुष्पा मेहरा, दिल्ली, Email : pushpa.mehra@gmail.com
दर्द की पाती कहो
किसको लिखूँ !
उमड़ते बादल दुखों के -
टीस किससे कहूँ ?
मौन की वेदना
समाई मौन में
मौन की तड़पती ब्यथा
किससे कहूँ ?
हर राह जीवन की
नुकीले पत्थरों से पटी
रक्त से लथपथ
शिराएँ हो रहीं,
चाँद के घर से
निकल कर चाँदनी
थक सिसक कर सो गई।
विश्वास के नाते
दिलों में काँच से
चुभने लगे
पत्थरों से दोस्ती
जिन्होंने भी करी
दिल की ख्वाहिशें
दिल में ले के रो रहे
उम्र गुजरती जा रही-
शिकवों भरी यह जिन्दगी
दर्द का हर जाम पी कर जी रही
आततायियों के वनों में
भटकती जिन्दगी को
चाह इक क्षण की अहो !
इतनी सी रही-
खुशनुमा अहसास का दरिया बहे
उसके शीतल श्रोत में
मन जरा सा डूब ले
पत्र को उसका पता मिल जायगा,
हर पल-छिन को
सुकून मिल जाएगा