डॉ. राजेश लेखनपाल, मुकेरियां, मो. 9815270285


एक आदमी रात को झोपड़ी में बैठकर एक छोटे से दीये को जलाकर कोई शास्त्र पढ़ रहा था।

आधी रात बीत गई

जब वह थक गया तो फूंक मार कर उसने दीया बुझा दिया।

लेकिन वह यह देख कर हैरान हो गया कि जब तक दीया जल रहा था, पूर्णिमा का चांद बाहर खड़ा रहा।

लेकिन जैसे ही दीया बुझ गया तो चांद की किरणें उस कमरे में फैल गई।

वह आदमी बहुत हैरान हुआ यह देख कर कि एक छोटे से दीए ने इतने बड़े चाँद को बाहर रोक कर रखा।

इसी तरह हमने भी अपने जीवन में अहंकार के बहुत छोटे छोटे दीए जला रखे हैं जिसके कारण परमात्मा का चांद बाहर ही खड़ा रह जाता है।

जब तक वाणी को विश्राम नहीं दोगे तब तक मन शांत नहीं होगा।

मन शांत होगा तभी ईश्वर की उपस्थिति महसूस होगी। 



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