प्रकृति व इन्साफ








अरुणा शर्मा, दिल्ली, मो. 9212452654


उसने देखा रहते हुए सुख से उनको    

किया था फ्तवा जारी

बेघर होने के लिए 

हुआ था लहु जिगर का 

सुनकर देखकर एक दूजे को

था हक्का बक्का निशब्द चेहरा

खुली थी बस पथराई आँखें 

काले घनघोर अंधेरों को देख 

धड़क रहा था दिल जोरों से

सोच में था हर शक्श आने वाले कल को लेकर 

क्योंकि 

अपना आशियाँ व् सपनों का घर  

होता है प्यारा सभी को ... 


कबूतरों का समूह भी रुक गया दाना चुगने से 

होली का रंग भी हुआ फीका 

फूलों का हुआ रंग बेरंग 

अपनों की बदहाली देख... 


उजड़ना क्या होता हैं !!

चिड़िया ही बता सकती हैं बेहतर 

जब बंदर नोचता हैं उसके अरमानो का घोसला करता हैं तार तार

निर्दयता से 

व 

लगाता हैं छलांग एक डाल से दूसरे पर मस्त होक़र

जैसे जीता हो कोई वीर रणभूमि और लौट रहा हो घर को बड़े शान से... 


मासूम निहत्थे बेबस पर करता हैं जब भी कोई वार 

रोती हैं इंसानियत

तो आता हैं फरिश्ता 

स्नेह का दीप लेकर वक़्त के हाथो 

लगाता हैं उजाले का मरहम

लाता हैं अनन्त खुशियां उनके मुरझाए चेहरों पर

और 

देता हैं दिलासा प्रकृति के इन्साफ का...




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