बदलता चैनल

अजित कुमार राय, कन्नौज, Mob. 9839611435


अपनी प्रेयसी को पत्र लिख रहा था

कि श्रीमती जी टेबिल पर चाय रख गईं।

बीच में उनकी छाया पड़ते ही

कविता को ‘ग्रहण’ लग गया।

फिर कविता शुरु हुई-

प्रिये! चाय ‘रस’ हो गई है

और बूँद-बूँद पी रहा हूँ मैं तुम्हें।

इतने में सौ डिग्री सेल्सियस पर

खौलती हुई श्रीमती जी आईं।

मैंने अपना चैनल बदला-

आओ, तुम्हारे सिर पर चाय रख हूँ,

ताकि गर्म हो जाय।

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