तब (प्रेम में समर्पण)
डाॅ. उमा त्रिलोक, मोहाली, चण्डीगढ़, मो. 9811156310
धरती सजी थी
रंग-बिरंगे परिधान में
बिदिंया भी चमकी थी
चूड़ियाँ भी ख़नकी थीं
नीला आसमान बहा था झरना बनकर
देह में गन्ध भी महकी थी
तब
मैंने भी एक गीत गाया था
उस नीली चिड़िया के लिए
उड़ गई थी जो
सारे बन्धन तोड़ कर
उफ़न कर उमड़ कर
तब
आया था मेरा मन मेरे हाथों में
जो
मैंने तुम्हें सौंप दिया था
पेड़, पत्ते, टहनियाँ सभी ने देखा था
पत्तों की चादर पर लेटे हम दोनों
जब गिनते रहे थे तारे अनन्त तक
तब
समय नहीं था