मेरी माँ
मीनाक्षी मेनन, होशियारपुर, पंजाब, मो. 91 94174 77999
आँसू भर-भर आते हैं, माँ की याद दिलाते हैं ।
वो होती तो ऐसा होता, वो होती तो वैसा होता ।
वो होती तो - पापा कुछ ज्यादा मुस्कुराते,
ज़रा ज्यादा खिलखिलाते, ठहाके लगाते ।
घर में बसती रूह का अहसास दिलाते,
कभी मनुहार करते, ‘ चलो शील जी !
आज पकोड़े बना लो ।' ऐसी आवाज़ लगाते -
माँ तो पकौड़े बनाना भी एक त्यौहार की तरह मनाती,
आलू , गोभी , मेथी, पालक सब की हाट सजाती ।
बनती कभी अनारदाने की तो कभी, कच्चे आम की चटनी - और हाँ ……
जब इमली की मीठी चटनी बनाती, तो पापा के हाथ हम दोनों बहनों का हिस्सा
कांच की शीशियों में भर कर जरूर पहुंचाती ।
बच्चे इन्तजार में होते, नानू आएंगे,
गर्म- गर्म पकौड़े और चटनी लाएंगे,
जाने लगते पापा तो कहते, " अरे भई,
ये लो अपनी - अपनी जेब - खर्ची , नानी ने भेजी है । "
याद है मुझे एक दिन जाने क्यों, मुझे बच्चों से जलन हो आई ।
जाने क्यों ? मेरी आंख भर आई और मैं कह बैठी "
पापा, मुझे भी कभी-कभी बिना त्योहार जेब-खर्ची दिया करो न ।
पापा मुस्कुराए, कुछ नोट मेरी ओर बढ़ाए
और बोले," पगली, आंख क्यों भरती है ?
तूं तो अपने घर की रानी है तुझे पैसों की क्या कमी है ?
"पापा कैसे समझाऊँ आपको, पैसों की कमी तो नहीं है पर -
इन पैसों का को रखना पड़ता है हिसाब -
और आपसे मिली जेब-खर्ची का तो अलग ही स्वाद ।
आम , खरबूजे , तरबूज, आज भी घर में आते हैं ।
पर वो जो माँ भेजती थी और फ़ोन पर कहती थी
' सुन मिठ्ठी' , आम नए किए हैं आज,
पापा को भेजा है तुम्हें दे आने को ।
वो आपके भेजे फ़लों का स्वाद अब
घर पे आने वाले फलों से गायब है ।
माँ के साथ ही चला जाता है मायका, बड़ी अजीब रिवायत है ।
अब मैं ऐसा करती हूँ, बनाती हूँ जब भी
काली गाजर की कांजी
या बनाती हूँ कच्चे पपीते की परांठी ।
तो पापा को को अपने यहां बुलाती हूँ
और प्यार से खिलाती हूँ ।
मेरी बेटी जब कहती है उनसे ,
"नानू , बिल्कुल नानी माँ की परांठी के जैसी
बनी है न आज परांठी ।
तो मेरी आँख भर आती है।
माँ तो बस जाती है,
बेटी के दिल, रूह और हाथों में ।
वो जा के भी कहां जाती है।