हाइकु काव्य
खेत है सूखा
हिमालय में वर्षा
देश अभागा।
हिमालय को
क्रुद्ध व नंगा कया
आधुनिकों ने।
प्रकृति बोली
मुझे बिगाड़ोगे तो
खुद मिटोगे।
बौना है बेटा
माँ-बाप की ऊँचाई
छू नहीं पाता।
रेत रेत है
पहाड़ पहाड़ है
यही सच है।
हाइकु वही
गढ़ सके छवि जो
साद शब्दों से।
लाल ओढ़नी
ओढ़ लो चिता पर
यही विदाई।
चाहिए बस
राम ही तोड़ने को
पूज्य पिनाक।
आतंकित है
प्रभुवर भक्तों के
ढकोसले से।
बहेलिया भी
फँस जाता है कभी
महाजाल में।
नलिनीकान्त, अंडाल, पं. बंगाल, मो. 9474699126